बिहार में उद्योगों के विस्तार के लिए आवश्यक अमृतसर-दिल्ली-कोलकाता इंडस्ट्रियल कॉरिडोर अपने राज्य बिहार से हो कर गुजर रहा है. इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास की बड़ी संभावना है. अतः गया और कैमूर के बीच कम-से-कम दो औद्योगिक शहर स्थापित करने पर विचार किया जाना चाहिए. उद्यमियों के प्रोत्साहन राशि से संबंधित जो भी लंबित मामले हैं, उनका निबटारा शीघ्र किया जाना चाहिए. प्रोत्साहन राशि मिलने में विलंब से व्यवसायियों को कार्य में काफी बाधा आती है. बिहार में उद्योगों की स्थापना में भूमि का अभाव एक प्रमुख समस्या है.
औद्योगिक उपयोग के लिए राज्य सरकार द्वारा जगह-जगह पर इलाकों को चिह्नित कर इसकी घोषणा की जानी चाहिए कि यह जमीन केवल औद्योगिक उपयोग के लिए ही होगी, जिससे कि प्रोमोटर एवं जमीन मालिक आपसी समझौता से जमीन को औद्योगिक उपयोग के लिए सहजता से खरीद सकें. बियाडा की ओर से पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिक भूमि की कोई संतोषजनक व्यवस्था नहीं की गयी है, लेकिन औद्योगिक भूमि जिसका आवंटन पूर्व से कर दिया गया है, उसको रद्द करने से उद्यमियों को बियाडा के प्रति जो आत्मविश्वास था, उसका घोर अभाव व्याप्त हो गया है.
राज्य में उत्पादित सामग्रियों की सरकार के साथ-साथ सरकार के उपक्रम, सरकार द्वारा गठित एजेंसी सबसे बड़े खरीदार होते हैं. स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देने तथा उन्हें प्रतिस्पर्धा में सक्षम बनाने के लिए स्थानीय इकाइयों को सरकार द्वारा घोषित सामग्री खरीद अधिमानता नीति का लाभ स्थानीय उद्यमियों को दिया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा देखा जाता है कि विभिन्न विभागों द्वारा स्थानीय उद्योगों को रोकने के लिए निविदा में अनुभव एवं टर्नओवर जैसी शर्तें लगा दी जाती है, जिससे स्थानीय उद्योग वंचित रह जाते हैं.
राज्य में वर्तमान में लागू विद्युत दर काफी अधिक है और पड़ोसी राज्यों जैसे झारखंड एवं पश्चिम बंगाल से तुलना की जाये तो यह दर डेढ़ से दो गुणा अधिक होती है. ऊंची बिजली की दर की वजह से राज्य में अवस्थित उद्योगों की उत्पादन लागत पड़ोसी राज्यों की अपेक्षा अधिक आती है और यही कारण है कि पड़ोसी राज्यों का उत्पाद बिहार में आकर बिक रहा है एवं राज्य के उद्योगों का विस्तार संतोषप्रद नहीं हो रहा है. इस संदर्भ में सरकार को बिजली की दर को पूर्ण निर्धारण करके पड़ोसी राज्यों के समकक्ष किया जाना चाहिए अथवा उद्योगों को सब्सिडी के रूप में सहयोग राशि दी जानी चाहिए ताकि राज्य में उद्योगों को बंद होने से बचाया जा सके.
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा राज्य के औद्योगिक इकाइयों से संबंधित अगर कोई नया प्रावधान लाया जाता है, तो उसके कार्यान्वयन के पूर्व उद्यमियों को अच्छी तरह से जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कर जानकारी दी जानी चाहिए, राज्य में निजी व्यापार अथवा राष्ट्रीयकृत बैंक ऋण देने में काफी उदासीन भावना रखते हैं क्योंकि उनको ऐसी आशंका रहती है कि राज्य में अवस्थित किसी भी उद्योग को दिये जाने वाला ऋण का वापस भुगतान प्राप्त नहीं होगा. इस नकारात्मक दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है.
राज्य में स्थित बैंक सिर्फ जमा एकत्र करने वाले केंद्र के रूप में विकसित हो रहे हैं, उन्हें राज्यहित में ऋण देने के कार्य में कोई दिलचस्पी नहीं है. राज्य में जमा धनराशि का प्रयोग इन बैंकों द्वारा अन्य राज्यों में ऋण देने में किया जा रहा है जिसके फलस्वरूप, राज्य में सीडी रेशियो राष्ट्रीय औसत से काफी कम है. सरकार को रिजर्व बैंक या अन्य माध्यम से इन बैंकों पर दबाव बढ़ा कर राज्य में ऋण के प्रवाह को बढ़ाना चाहिए और असहयोगात्मक रवैया अपनाने वाले बैंकों को सरकारी जमा से वंचित किया जाना चाहिए.
Also Read: बिहार में शिक्षा का गौरवशाली इतिहास, अब भविष्य भी उज्ज्वल, हर जिले में खुले इंजीनियरिंग कॉलेज
हमारा राज्य उपजाऊ भूमि एवं मेहनतशील श्रम उपलब्ध रहने की वजह से खेती पर विशेष आश्रित है और इसके विकास की अपार संभावनाएं भी विद्यमान है. राज्य में फल, सब्जी, खाद्य एवं खाद्य प्रसंस्करण से जुड़े उत्पादों का निर्यात करके अर्थव्यवस्था में काफी योगदान प्राप्त किया जा सकता है. इस संबंध में मेरा सुझाव होगा कि राज्य में निर्यात की सुविधा प्रदान करने के लिए एक सहयोग संस्था का गठन किया जाना चाहिए जिससे कि जरूरतमंद लोगों को उनके उत्पादों के निर्यात के लिए आवश्यक जानकारी एवं सुविधा प्रदान की जा सके. इस संस्था की शाखाएं क्षेत्रवार स्थापित की जानी चाहिए ताकि लोगों को अपने निर्माण इकाइयों के नजदीक में ही सुविधा उपलब्ध हो सके.
-पीके अग्रवाल,अध्यक्ष, बिहार चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज