Rajendra Prasad Jayanti: देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने जीवन काल के दौरान भारतीय संस्कृति पर आधारित एक ईमानदार और त्यागी जीवन का आदर्श स्थापित किया. वो भारतीय राजनीति के एक ऐसे सितारे हैं जो सदियों तक लोगों को प्रेरित करते रहेंगे. राजेंद्र प्रसाद महात्मा गांधी के सबसे प्रिय थे. बापू ने एक बार कहा था कि अगर राजेंद्र बाबू को विष का प्याला भी पीने के लिए दें तो वो बिना हिचकिचाहट के पी लेंगे. चंपारण सत्याग्रह के दौरान भी राजेन्द्र प्रसाद की काफी अहम भूमिका थी. इस आंदोलन के दौरान वो बापू के काफी निकट रहें. इस दौरान महात्मा गांधी राजेंद्र बाबू से इतने प्रभावित हुए कि वो उन्हें अपना दायां हाथ मानने लगे थे. राजेंद्र बाबू का जन्म आज ही के दिन तीन दिसंबर 1884 को जिरदोई में हुआ था. आइए उनके जन्मदिन के मौके पर जानते हैं उनके बारे में कुछ रोचक तथ्य…
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
-
जीरादेई में जन्मे और वहीं से अपनी पढ़ाई शुरू की, छपरा जिला स्कूल के छात्र रहे.
-
18 वर्ष की आयु में कोलकाता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की
-
राजेंद्र बाबू ने कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से लॉ में पीएचडी की
-
हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, फारसी और बांग्ला पर समान नियंत्रण था
-
13 वर्ष की उम्र में उनका विवाह राजवंशी देवी से हुआ, वैवाहिक जीवन के दौरान उनकी पढ़ाई जारी रही
-
एक वकील के रूप में अपना करियर शुरू किया
-
महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे, कम से कम दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने और स्वतंत्रता-पूर्व सरकार में मंत्री रहे
13 वर्ष की उम्र में हुई थी शादी
देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म बिहार के जिरादेई में तीन दिसंबर 1988 को एक कायस्थ परिवार में हुआ था. पढ़ने लिखने में काफी तेज राजेंद्र बाबू किसी भी जाति या धर्म के लोगों के साथ आसानी से घुल-मिल जाते थे. जब वो 13 वर्ष के थे तो राजवंशी देवी से उनकी शादी करा दी गई.
पढ़ने में काफी तेज थे राजेंद्र बाबू
राजेंद्र प्रसाद पढ़ने में काफी तेज थे. उन्होंने 18 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय की परीक्षा पास की थी. इतना ही नहीं उन्होंने प्रथम स्थान हासिल किया था जिसके लिए उन्हें 30 रुपये की स्कॉलरशिप भी दी गई थी. इसके बाद साल 1902 में उन्होंने कलकत्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया. यहां से उन्होंने लॉ में डॉक्टरेट किया. राजेंद्र बाबू की बुद्धिमता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक बार परीक्षा कॉपी चेक करने वाले अध्यापक ने उनकी शीट पर लिख दिया था कि ‘परीक्षा देने वाला परीक्षा लेने वाले से ज्यादा बेहतर है’
स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस की स्थापना की थी
राजेंद्र बाबू कई तरह के सामाजिक कार्य भी किया करते थे. उन्होंने 1906 में बिहारियों के लिए एक स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस की स्थापना की. बेहद अलग किस्म के इस ग्रुप से श्री कृष्ण सिन्हा और डॉ. अनुग्रह नारायण जैसे कई बड़े नेता निकले. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद 1913 में डॉन सोसायटी और बिहार छात्र सम्मेलन के मुख्य सदस्यों में से एक थे.
लोगों की सेवा के हमेशा रहते थे अग्रसर
राजेंद्र प्रसाद काफी दरियादिल थे . उन्होंने 1914 में बंगाल और बिहार में आई भयानक बाढ़ के दौरान पीड़ितों की बहुत मदद की थी. 1934 के भूकंप और बाढ़ त्रासदी के बाद जब बिहार मलेरिया से जूझ रहा था, तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने स्वयं पीड़ितों के बीच कपड़े और दवाएं वितरित कीं थी
नमक सत्याग्रह में निभाई अहम भूमिका
राजेंद्र प्रसाद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और बिहार प्रदेश के एक बड़े नेता के रूप में उभरे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रभावित राजेंद्र बाबू 1931 के ‘नमक सत्याग्रह’ में एक तेज तर्रार कार्यकर्ता के रूप में नजर आए. इस आंदोलन के दौरान उन्हें बिहार का प्रमुख बना दिया गया था.
दो बार बने कांग्रेस के अध्यक्ष
डॉ. राजेंद्र प्रसाद 1934 से 1935 तक भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. डॉ. प्रसाद को 1935 में कांग्रेस के बॉम्बे अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद 1939 में सुभाष चंद्र बोस के जाने के बाद उन्हें जबलपुर अधिवेशन का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद राजेंद्र बाबू ने 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भी भाग लिया.
12 सालों तक राष्ट्रपति रहे राजेंद्र बाबू
राजेंद्र बाबू आजादी से पहले 2 दिसंबर 1946 को अंतरिम सरकार में खाद्य और कृषि मंत्री बने. वहीं जब देश स्वाधीन हुआ तो राजेंद्र बाबू देश के पहले राष्ट्रपति बने. राजेंद्र प्रसाद देश के इकलौते राष्ट्रपति हैं जो लगातार दो बार राष्ट्रपति चुने गए. वह 12 सालों तक राष्ट्रपति रहे.
बहन की मृत्यु के अगले दिन सलामी ने पहुंचे गणतंत्र दिवस समारोह में
राष्ट्रपति रहने के दौरान डॉ. राजेंद्र प्रसाद की बड़ी बहन भगवती देवी का 25 जनवरी 1960 की देर शाम निधन हो गया. बहन की मृत्यु से उन्हें गहरा सदमा लगा. वह पूरी रात शव के पास ही बैठे रहे. रात के अंत में, उनके परिवार के सदस्यों ने उन्हें अगली सुबह राष्ट्रपति के रूप में गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लेने की याद दिलाई. इसके बाद उन्होंने अपने आंसू पोंछे और तैयार होकर सुबह गणतंत्र दिवस समारोह में परेड की सलामी लेने पहुंच गए. समारोह के दौरान वह पूरी तरह शांत रहे.
1963 में हुआ निधन
1962 में जब वे राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त हुए तो भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ की उपाधि से सम्मानित किया. 28 फरवरी 1963 को उनका निधन हो गया. उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी, जो सभी को मंत्रमुग्ध कर देती थी.