जदयू में शामिल हुए राजद अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे अजीत सिंह, बोले- राजद कार्यकर्ताओं का कब्रगाह

इस मौके पर अजीत सिंह ने कहा कि उनको लालू प्रसाद यादव की जगह नीतीश कुमार ने ज्यादा प्रभावित किया है. इसी का असर है कि वो जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो हुए हैं, जबकि उनके पिता राजद के प्रदेश अध्यक्ष हैं और भाई राजद के विधायक. इस मौके पर जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा भी मौजूद थे.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 12, 2022 2:55 PM

पटना. राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के छोटे बेटे अजीत सिंह ने जदयू की सदस्यता ग्रहण कर ली है. पेशे से इंजीनियर अजीत सिंह को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने पार्टी की सदस्यता दिलायी. इस मौके पर अजीत सिंह ने कहा कि उनको लालू प्रसाद यादव की जगह नीतीश कुमार ने ज्यादा प्रभावित किया है. इसी का असर है कि वो जनता दल यूनाइटेड में शामिल हो हुए हैं, जबकि उनके पिता राजद के प्रदेश अध्यक्ष हैं और भाई राजद के विधायक. इस मौके पर जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा भी मौजूद थे.

नीतीश कुमार से रहे हैं प्रभावित

अजीत सिंह का कहना है कि वो बचपन से ही सीएम नीतीश कुमार के कामकाज को देख रहे हैं. राजद के प्रदेश अध्यक्ष का बेटा होने के बावजूद लालू प्रसाद से कहीं ज्यादा नीतीश कुमार ने मुझे प्रभावित किया है. मुझे आशा है कि जदयू में नीतीश कुमार के नेतृत्व में मुझे सीखने का मौका मिलेगा. इसलिए बिना शर्त जदयू में शामिल हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनके पिता उनकी विचारधारा से परिचित हैं और पिता से उनके रिश्ते खराब नहीं होंगे.

बगावत की यह पहली घटना नहीं

राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के चार बेटे हैं. दिवाकर सिंह, डॉ पुनीत कुमार सिंह, सुधाकर सिंह और इं अजित कुमार सिंह. जगदानंद सिंह के घर बगावत की यह पहली घटना नहीं है. जगदानंद सिंह के बड़े बेटे सुधाकर सिंह 2010 में बगावत कर चुके हैं. उस वक्त सुधाकर सिंह को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बना लिया था, लेकिन चुनाव में जगदानंद सिंह ने अपने बेटे के खिलाफ जमकर प्रचार किए और सुधाकर चुनाव भी हार गये. हालांकि अभी वो राजद के रामगढ़ से विधायक हैं.

राजद समर्पित कार्यकर्ताओं का कब्रगाह

जदयू में शामिल होने के बाद अजीत सिंह ने राजद पर जमकर हमला बोला. अजीत सिंह ने कहा कि लोग जानना चाहते हैं कि आखिर क्यों राजद छोड़ जदयू में लोग आना चाह रहे हैं. इसका कारण है कि राजद समर्पित कार्यकर्ताओं का कब्रगाह बन चुका है. धंधा कीजिए, बिजनेस कीजिये, ठेकेदारी कीजिए और चुनाव के वक्त अटैची लेकर राष्ट्रीय जनता दल के दफ्तर में पहुंच जाईए.. वहां से टिकट लीजिए और सांसद, विधायक से लेकर एमएलसी बन जाइए.

कार्यकर्ताओं को रोज किया जाता है जलील

यह बात सही है जिसे बिहार की जनता भी जानती है. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में राजद में कोई भविष्य नहीं है. वहां कार्यकर्ताओं को रोज जलील किया जाता है. जहां कार्यकर्ताओं की अनदेखी होगी और पूंजीपतियों को टिकट दी जाएगी वहां पार्टी गर्त में ही जाएगी. जदयू में शामिल होने का एक कारण यह भी है कि मैं अब अपने पिता को वहां जलील होते देख सकता था.

बिहार में विकास कार्य हो रहे हैं

अजीत सिंह ने कहा कि बिहार सम्राट अशोक की धरती है. इस गौरव को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आगे बढ़ा रहे हैं और भविष्य में यदि कोई इसे आगे बढ़ा सकता है, तो वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार है. उनके नेतृत्व में बिहार में विकास कार्य हो रहे हैं. इन तमाम जटिलताओं के बीच नीतीश कुमार के नेतृत्व समावेशी विकास हुआ है.

राजद में कोई भविष्य नहीं

राजद ए टू जेड पार्टी खुद को बताने के लिए प्रचार प्रसार में कर रही है, जबकि सच्चाई यह है कि ईब्लूएस का राजद ने खुल्लेआम विरोध किया था जो गैर राजनैतिक फैसला था. आम लोगों की दूरी राजद से पहले की तुलना बढ़ी है. आने वाले समय में राजद में कोई भविष्य नहीं है. अजीत सिंह ने कहा कि राजद में समर्पित कार्यकर्ताओं को रोज जलील किया जाता है. राजद नेता के सभी बेटे जदयू में शामिल हो रहे हैं, इसका कारण यह है कि वे अपने पिता को जलील होते देखते हैं.

बड़े बेटे सुधाकर भी कर चुके हैं बगावत

राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के चार बेटे हैं. दिवाकर सिंह, डॉ पुनीत कुमार सिंह, सुधाकर सिंह और इं अजित कुमार सिंह. जगदानंद सिंह के घर बगावत की यह पहली घटना नहीं है. जगदानंद सिंह के बड़े बेटे सुधाकर सिंह 2010 में बगावत कर चुके हैं. उस वक्त सुधाकर सिंह को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बना लिया था, लेकिन चुनाव में जगदानंद सिंह ने अपने बेटे के खिलाफ जमकर प्रचार किए और सुधाकर चुनाव भी हार गये. हालांकि अभी वो राजद के रामगढ़ से विधायक हैं.

अंतर्जातीय विवाह कर चर्चा मेंआये थे अजीत

अजीत सिंह तब चर्चा में आये थे, जब उन्होंने अंतर्जातीय विवाह किया था. जगदानंद सिंह ने अपने बड़े भाई और समाजवादी नेता सच्चिदानंद सिंह के खिलाफ चुनाव लड़कर ही राजनीति में अपनी पहचान बनायी थी. सच्चिदानंद सिंह उस समय के प्रभावशाली नेताओं में से एक थे.

Next Article

Exit mobile version