जमुई में जारी है जीवन का सौदा
अपराध. बिना लाइसेंस की हैं जिले की 70 फीसदी फार्मेसी दुकानें फार्मासिस्ट के बगैर ही होता है दुकानों का संचालन प्रतिवर्ष होती है करोड़ों रुपये की उगाही जमुई : जिले में मेडिकल फार्मा व फार्मेसी के नाम पर लोगों के जीवन का खुलेआम सौदा किया जा रहा है. औषधि प्रशासन व ड्रग इंस्पेक्टर के घालमेल […]
अपराध. बिना लाइसेंस की हैं जिले की 70 फीसदी फार्मेसी दुकानें
फार्मासिस्ट के बगैर ही होता है दुकानों का संचालन
प्रतिवर्ष होती है करोड़ों रुपये की उगाही
जमुई : जिले में मेडिकल फार्मा व फार्मेसी के नाम पर लोगों के जीवन का खुलेआम सौदा किया जा रहा है. औषधि प्रशासन व ड्रग इंस्पेक्टर के घालमेल से जिले में इन दिनों कई फार्मेसी स्टोर सारे नियम कायदे को ताक पर रखकर दवाइयों के नाम पर जहर बेच रहे हैं. स्थिति यह है कि कहीं एक लाइसेंस पर एक से अधिक दुकानों का संचालन किया जा रहा है तो कहीं फार्मासिस्ट के स्थान पर दुकान में काम करने वाले नौकर दवा का व्यापार कर रहे हैं. जिससे गलत दवाओं के दिये जाने का खतरा बरकरार रहता है
व उसे खाने के बाद उससे फायदे की जगह नुकसान का खतरा रहता है. इसके अलावे दुकानों को लाइसेंस दिए जाने के पैरामीटर का ख्याल भी फार्मेसी संचालक नहीं रखते हैं. सूत्रों की माने तो इसके एवज में प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की उगाही की जाती है, व आंखें मूंदकर ऐसी दुकानों को धड़ल्ले से संचालित होने दिया जाता है.
यहां सारे नियम कानून हो जाते हैं फेल : राज्य में औषधि प्रशासन की ओर से कई नियम बनाये गये हैं. इसके तहत कोई भी फार्मासिस्ट एक से अधिक दवा दुकानों में केवल सर्टिफिकेट लगाकर काम नहीं कर सकेंगे. अब उन्हें उसी दुकान में काम करना होगा, जहां वह सशरीर उपस्थित रहेंगे. सभी फार्मासिस्टों को डिपार्टमेंट की ओर से एक ग्रीन कार्ड जारी किया जाएगा जो फार्मासिस्टों के लिए परिचय पत्र की तरह होगा, जिसे उन्हें हर वक्त साथ रखना होगा. हालांकि यह आदेश भी लागू नहीं हुआ व आज भी कई फार्मासिस्ट दवा दुकानों में अपना सर्टिफिकेट देकर ही वहां से अच्छी-खासी रकम कमा लेते हैं.
फार्मेसी ट्रिब्यूनल में हो रहा है खेल : फार्मेसीएक्ट के अनुसार कोई फार्मासिस्ट एक ही राज्य में निबंधन करा सकता है. हालांकि कई फार्मासिस्ट ने बिहार व झारखंड, दोनों राज्यों में निबंधन करा रखा है. कई दुकानों का निबंधन केवल फार्मासिस्ट सर्टिफिकेट की फोटोकॉपी पर ही कर दिया गया. इसके अलावे आधे से अधिक फार्मेसी बिना निबंधन ही संचालित किया जा रहा है.
ऐसे हो रही गड़बड़ी : विभागीय सूत्र की मानें तो ड्रग इंस्पेक्टरों व औषधि प्रशासन बिना ठोस कागजात के ड्रग लाइसेंस जारी कर रहे हैं. बिहार के फर्जी फार्मासिस्टों के निबंधन पर भी लाइसेंस जारी किये गये हैं. कई लाइसेंस तो ड्रग इंस्पेक्टरों के ऑफिस में रखी फार्मासिस्टों के सर्टिफिकेट की फोटो कॉपी से ही जारी कर दिए गये हैं. फार्मासिस्टों से इसके लिए सहमति भी नहीं ली गई है. कई फार्मासिस्टों को तो यहां तक पता नहीं है कि उनके नाम पर कितनी दवा दुकानें चल रही हैं. शहर सहित जिले के सभी प्रखंडों में करीब 70 प्रतिशत ड्रग लाइसेंस इन फर्जी कागजात के आधार पर ही जारी किए गये हैं.