खरीदार के इंतजार में गन्ना किसानों की आंखें पथरायी
सोनो (जमुई): गन्ना की खेती में बेहतर पकड़ बनाने वाले क्षेत्र के कई गांव के किसानों को इस वर्ष औधे मुंह गिरने को मजबूर होना पड़ रहा है. उनके द्वारा उपजाये गन्ना से बने गुड़ का खरीदार ही नहीं मिल रहा है. महीनों से तैयार हजारों टिन गुड़ खरीदार की बाट जोह रहा है. व्यापारी […]
सोनो (जमुई): गन्ना की खेती में बेहतर पकड़ बनाने वाले क्षेत्र के कई गांव के किसानों को इस वर्ष औधे मुंह गिरने को मजबूर होना पड़ रहा है. उनके द्वारा उपजाये गन्ना से बने गुड़ का खरीदार ही नहीं मिल रहा है. महीनों से तैयार हजारों टिन गुड़ खरीदार की बाट जोह रहा है. व्यापारी के इंतजार में किसानों की आंखें पथरा गयी है. खेती के समय कर्ज देने वाले महाजन लगातार सर पर सवार हैं. मजबूरन किसान स्थानीय बाजार में अपने गुड़ को औने-पौने मूल्य पर बेचने की तैयारी में हैं.
प्रखंड के सर्वाधिक गन्ना उपजाने वाले गांव केवाली के किसान शंकर सिंह व गूंजेश सिंह कहते हैं कि गत वर्ष 25 किलो क्षमता वाले प्रति टिन गुड़ 600 से 650 रुपये में बेचा था, परंतु इस वर्ष तो खरीदार ही नहीं आ रहे हैं. फोन करने पर व्यापारी बताते हैं कि लोकल गुड़ की मांग ही नहीं है. स्थानीय बाजार के दुकानदार 450 से 475 रुपये प्रति टिन की दर से गुड़ खरीदना चाहते हैं. ऐसे में केवाली गांव के दर्जनों किसान सहित प्रखंड के अन्य क्षेत्र के गन्ना किसानों के समक्ष बड़ी मुश्किलें खड़ी हो गयी है.
चिंतित हैं किसान
सरकार की ओर से यहां किसानों के गुड़ खरीदने की कोई व्यवस्था नहीं है. धान, गेहूं व मूंग की फसल के बदले गन्ना उपजाने में न सिर्फ तीन फसल को छोड़ना पड़ता है बल्कि गन्ना बोने से लेकर गुड़ तैयार करने तक में बड़ी राशि पूंजी के रुप में लगाना भी पड़ता है. ऐसे में कर्ज की राशि का ब्याज भी बढ़ता जा रहा है. चिंतित किसानों को समझ में नहीं आ रहा है कि अब वे करें तो क्या करें.
पूर्व में कागेश्वर के अलावे झारखंड के व्यापारी किसानों के गांव व घरों पर आकर उचित मूल्य पर गुड़ भरे टिन उठा ले जाते थे. परंतु इस वर्ष किसानों को व्यापारियों का इंतजार करते कई माह बीत गया है. उनके समक्ष उत्पादित गुड़ को उचित मूल्य पर बेचने की समस्या आ खड़ी हुई है.
कहते हैं किसान
गन्ना किसान शंकर सिंह, सुभाष सिंह, निषेद सिंह आदि हताश भरे मन से कहते हैं कि खरीदार नहीं आने की स्थिति में मजबूरन औने-पौने दाम पर गुड़ बेचने से काफी अधिक नुकसान होगा. ऐसे में अगले वर्ष से गन्ना लगाने से परहेज करुंगा. किसानों ने कहा कि यदि सरकार की ओर से हमें अनुदान व प्रशिक्षण के अलावे बाजार भी उपलब्ध कराया जाय तो और अधिक पैमाने पर गन्ना की खेती संभव है. जिससे क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी.
कहते हैं कृषि पदाधिकारी
प्रखंड कृषि पदाधिकारी अनुज कुमार शर्मा कहते हैं कि गन्ना की खेती को लेकर यहां न तो कोई सरकारी प्रशिक्षण की व्यवस्था है और न ही कोई अनुदान,यहां के किसानों द्वारा तैयार गुड़ को खरीदने के लिए सरकार की ओर से कोई व्यवस्था नहीं है.
इन गांवों में होती है गन्ना की खेती
सोनो प्रखंड के केवाली, मांगेचपरी, पिंडरा, फरका, कोनिया, बलथर, हरिडीह, बाघा केवाल के अलावे खैरा प्रखंड के सीमावर्ती डहुआ, सोनेल, बघमारा, टिहिया, दिनारी, केंदुआ आदि गांवों में गन्ना की खेती की जा रही है. प्रखंड के आठ गांवों में ही तकरीबन सौ बीघे में गन्ना की खेती होती है. जिससे लगभग बारह से पंद्रह हजार टिन गुड़ बनाया जाता है. अकेले केवाली गांव में प्रति वर्ष लगभग दो हजार टिन गुड़ बनाया जाता है. किसान बताते हैं कि एक कट्ठा में उपजने वाले गन्ना से लगभग आठ टिन गुड़ बनता है. जबकि एक कट्ठा खेत में गन्ना लगाकर उसे काटने व गुड़ तैयार करने में लगभग दो हजार की राशि खर्च होती है. इसमें बोने वाले गुल्ले व खाद से लेकर पटवन व गन्ना पेराई आदि शामिल हैं.