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जमुई जिले में विधानसभा की चार सीटें हैं. पिछले चुनाव में सभी सीटों पर जदयू की जीत हुई थी. इस बार चुनावी संघर्ष अलग है. चुनावी मुकाबला मुख्य रूप से राजग व महागंठबंधन के बीच ही होना है. पिछड़े व अल्पसंख्यक मतदाताओं के साथ राजपूत व यादव मतदाता भी यहां की राजनीति को खूब दिलचस्प […]

जमुई जिले में विधानसभा की चार सीटें हैं. पिछले चुनाव में सभी सीटों पर जदयू की जीत हुई थी. इस बार चुनावी संघर्ष अलग है. चुनावी मुकाबला मुख्य रूप से राजग व महागंठबंधन के बीच ही होना है.

पिछड़े व अल्पसंख्यक मतदाताओं के साथ राजपूत व यादव मतदाता भी यहां की राजनीति को खूब दिलचस्प बनाते हैं. क्षेत्र के कद्दावर नेताओं में नरेद्र सिंह का इस जिले की राजनीति में अच्छी पकड़ रही है. वर्तमान में उनके पुत्र इस जिले से विधायक भी हैं. नरेंद्र सिंह अब हिंदुस्तानी अवाम मोरचा में शामिल हैं. वहीं भवन निर्माण मंत्री दामोदर रावत भी इसी जिले से आते हैं. जिले में राजद का भी प्रभाव है.

जमुई

दलों में टिकट की मारा-मारी

जमुई विधानसभा सीट पर अभी जदयू का कब्जा है. 2010 में अजय प्रताप पहली बार जमुई विधानसभा सीट से विजयी हुए हैं. इसके पूर्व इनके भाई अभय सिंह इस सीट पर विजयी हुए थे. उनके निधन के बाद हुए चुनाव में अजय प्रताप इस सीट से अब तक के सबसे अधिक मत से विजयी हुए थे.

इस बार भी इस सीट से इनका चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है. हालांकि वह नरेंद्र सिंह के पुत्र हैं, जो अभी जदयू छोड़ जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोरचा में हैं, लेकिन अभी तक जमुई विधायक ने पाला नहीं बदला है.

उनके पार्टी बदलने की हवा जोर-शोर से चल रही है. पूर्व मंत्री और बांका सांसद राजद नेता जयप्रकाश नारायण यादव के छोटे भाई विजय प्रकाश भी अपनी दावेदारी मजबूती से रख रहे हैं. पूर्व विस अध्यक्ष के पुत्र व राजद नेता शांतुन सिंह भी टिकट की उम्मीद में हैं. जदयू में टिकट के और भी दावेदार हैं.

अब तक

इस सीट पर 1990 से नरेंद्र सिंह दबदबा रहा है. वर्ष 2005 से अब तक इस सीट इनके पुत्र विजयी हुए हैं. नरेंद्र सिंह पार्टी बदल चुके हैं.

इन दिनों

जदयू घर-घर दस्तक अभियान चला रहा है.भाजपा परिवर्तन रथ लेकर जनता के बीच है.राजद प्रखंड स्तर पर बैठक कर रहा है.

प्रमुख मुद्दे

– शहर में जाम से निजात दिलाने के लिए बाइपास का निर्माण

– तकनीकी शिक्षण संस्थानों की स्थापना

– उच्च शिक्षा का विस्तार

– रोजगार के साधन और सिंचाई सुविधा

– कानून व्यवस्था में सुधार

सिकंदरा (अजा)

सत्ता के साथ चलने का रहा है ट्रेंड

जैन धर्म के 24वें र्तीथकर भगवान महावीर की जन्मस्थली के रूप में देश-विदेशों में विख्यात सिकंदरा बेहद संवेदनशील विधानसभा क्षेत्र है. यह जिले में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इकलौती सीट है.

लिहाजा यहां चुनाव लड़ने और टिकट पाने के दावेदारों की संख्या हमेशा ज्यादा रही है. यह बात दीगर है कि बुनियादी सुविधाओं के मामले में यह जिले का पिछड़ा क्षेत्र है. आज भी सड़क, बिजली व पानी जैसी बुनियादी समस्याओं से यहां के लोग जूझ रहे हैं.

1952 के पहले विधानसभा चुनाव से ही सिकंदरा की जनता सत्ताधारी दल के पक्ष में अपना निर्णय देती रही है. 1990 से 2005 के बीच राजद समर्थित प्रयाग चौधरी ने लगातार तीन बार यहां से जीत हासिल की. वहीं 2005 से अब तक जदयू के रामेश्वर पासवान का इस सीट पर कब्जा है. पासवान ने सात बार सिकंदरा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है. वह आठवीं बार भी विधानसभा पहुंचने की कोशिश में है.

हालांकि इस कोशिश में उनकी उम्र बड़ी बाधक बनती दिखायी पड़ रही है. रामेश्वर पासवान के अलावा जिला जदयू अध्यक्ष शिवशंकर चौधरी व पूर्व प्रखंड प्रमुख सिंधु पासवान भी इस सीट से टिकट पाने की जुगत में हैं.

वहीं, पिछली बार दूसरे नंबर पर रह सुभाष पासवान एक बार फिर लोजपा से टिकट के मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं, जबकि पिछले दो विधानसभा चुनावों में भाकपा के उम्मीदवार के रूप में तीसरा स्थान हासिल करने वाले महादेव मांझी इस बार कमल के सहारे विधानसभा पहुंचने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे है. हालांकि महागंठबंधन और राजग गंठबंधन में सीटों के बंटवारे तक यह कह पाना मुश्किल है कि किस दल से किसे उम्मीदवारी मिलेगी.

अब तक

यहां से ज्यादातर समय सत्तारूढ़ दल के उम्मीदवार जीतते रहे हैं. राजद के प्रयाग चौधरी तीन बार व वर्तमान विधायक सात बार निर्वाचित हुए.

इन दिनों

परिवर्तन रथ के माध्यम से भाजपा ग्रामीण क्षेत्रों में सघन जन संपर्क अभियान चला रही है. जदयू घर-घर दस्तक कार्यक्रम के जरिये संपर्क स्थापित कर रहा है.

लोजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता भी सक्रिय हैं.

प्रमुख मुद्दे

– कुंड घाट जलाशय योजना व अपर किऊल नहर का पानी नहीं पहुंचना

– जलमीनार से पेयजलापूर्ति

– बिजली की नियमित आपूर्ति.

है.

चकाई

नये समीकरण की माथापच्ची

चकाई विधानसभा क्षेत्र झारखंड की सीमा से सटा है और घोर नक्सल प्रभावित है. 2010 के चुनाव में यहां से झामुमो प्रत्याशी सुमित कुमार सिंह निर्वाचित हुए थे. बाद में वह जदयू में शामिल हो गये. पिछले साल उन्होंने फिर पाला बदला और अभी जीतन राम मांझी की पार्टी हम में हैं.

उनके इस बार भी चुनाव लड़ने की उम्मीद है, लेकिन टिकट को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है. पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे लोजपा के विजय कुमार सिंह भी इस सीट पर दावा कर रहे हैं. गत चुनाव में इन दोनों के बीच कांटे की टक्कर हुई थी. इस बार के चुनाव में दोनों की पार्टियां एनडीए के घटक दल हैं. लिहाजा टिकट इनमें से किसी एक को ही मिलनी है.

देखना दिलचस्प होगा कि एनडीए में यह सीट किस दल के खाते में जाती है. महागंठबंधन में भी उम्मीदवारी को लेकर ऊहापोह की स्थिति है. राजद-जदयू के मिलन से जातीय ध्रुवीकरण होगा और टक्कर कांटे की होगी. महागठबंधन से टिकट की दावेदारी के लिये स्थानीय चेहरे भी सामने आ रहे है.

अब तक

झामुमो के टिकट पर पिछला चुनाव जीते सुमित कुमार सिंह अब हम में हैं. दूसरे स्थान पर रही लोजपा के प्रत्याशी भी टिकट का दावा कर रहे हैं.

इन दिनों

जदयू द्वारा नुक्कड़ सभा व घर-घर दस्तक कार्यक्रम जारी. भाजपा का परिवर्तन रथ गांव-गांव घूम कर पार्टी व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश पहुंचा रहा है.

प्रमुख मुद्दे

– बटिया स्थित बरनार जलाशय योजना का निर्माण त्नचकाई को अनुमंडल का दर्जा त्न क्षेत्र की नक्सली गतिविधियों से मुक्ति त्न उच्च और तकनीकी शिक्षण संस्थानों की स्थापना – रोजगार के साधन व पलायन पर रोक

झाझा

सीट बंटवारे तक तसवीर साफ नहीं

झाझा विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल चुका है. 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू के दामोदर रावत यहां निर्वाचित हुए थे. उन्होंने राजद के विनोद यादव को शिकस्त दी थी. रावत अब तक चार बार यहां से विधायक चुने गये हैं. फिलवक्त वह राज्य के भवन निर्माण मंत्री हैं.

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा-जदयू गंठबंधन का उन्हें लाभ मिला था. इस बार दोनों अलग-अलग हैं. इस बार राजद जदयू के साथ है, जिसके उम्मीदवार को पिछले चुनाव में जदयू से करीब सात प्रतिशत ही कम वोट मिले थे.

लोकसभा चुनाव में भी राजद के वोट प्रतिशत में महज एक प्रतिशत के करीब ही गिरावट आयी थी, जबकि भाजपा से अलग होने के बाद जदयू के वोट में भारी कमी आयी. लोकसभा चुनाव में इसे विधानसभा चुनाव में मिले वोट के मुकाबले 9.57 फीसदी कम मत मिले.

गंठबंधन टूटने का नुकसान भाजपा को भी हुआ. इसके समर्थित लोजपा प्रत्याशी को इस विधानसभा क्षेत्र में महज 32.09 फीसदी वोट मिले, जबकि विधानसभा चुनाव में जब जदयू इसके साथ था, तब उसके प्रत्याशी को इससे 6.65 प्रतिशत ज्यादा (38.74 प्रतिशत) वोट मिले थे. पिछले विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस का भी उम्मीदवार था.

हालांकि उसे महज 6.68 फीसदी ही वोट मिले थे. इस बार नये गंठबंधन की राजनीतिक में इस सीट को लेकर मारा-मारी होगी. महागंठबंधन में यह सीट राजद को मिलती है या जदयू को, अभी इस पर ही सब की नजर है. वहीं, राजग में यह सीट भाजपा को मिली है या लोजपा को, यह अभी तय होना बाकी है. फिलवक्त स्थिति यह है कि सभी दलों में टिकट के दावेदारों की फेहरिश्त लंबी है.

अब तक

इस सीट पर चार बार से दामोदर रावत चुनाव जीतते आ रहे हैं. इससे पहले इस सीट पर राष्ट्रीस जनता दल का कब्जा था.

इन दिनों

राजद-जदयू-कांग्रस का साझा प्रचार अभियान जारी. राजग राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ जनता को जागरुक कर रहा है.

भाजपा जदयू का सम्पर्क कार्यक्रम जारी.

प्रमुख मुद्दे

– झाझा को अनुमंडल का दर्जा

– नगर क्षेत्र में पाइपलाइन से पेयजलापूर्ति

– उच्च शिक्षण संस्थानों का विस्तार

– रेलवे पुल का चौड़ीकरण.

लखीसराय

दोनों सीटों पर हर बार बदलते रहे हैं चेहरे

लखीसराय जिले में विधानसभा की दो सीटें हैं. राजनीतिक तौर पर दोनों ही बेहद संवेदनशील हैं. दोनों सीटों पर हमेशा चेहरे बदलते रहे हैं. यह इलाका पहले मुंगेर जिले का हिस्सा था.

तीन जुलाई 1994 लखीसराय जिला बना. उसके बाद से यहां की राजनीति में बड़ा बदलाव आया. यह जिला मूलत: खेती पर आश्रित है. लिहाजा किसानों की समस्याएं यहां का मूल मुद्दा रही हैं. सिंचाई और कृषि उपज का सही मूल्य यहां के किसानों की बड़ी मांग रही है. यहां का बड़ा इलाका बरसात में बाढ़ और कटाव से प्रभावित रहा है. इससे निजात दिलाने की मांग भी होती रही है.

मुंगेर से अलग होने के बाद लखीसराय जिला अस्तित्व में आया. यहां के दोनों सीट किसी एक दल का लंबे समय तक लगातार कब्जा नहीं रहा. यहां की जनता ने हमेशा चुनाव में चेहरों को बदलने का काम किया है. इस बार राजनीतिक दलों के नये गंठबंधन के कारण अभी यह पेंच है कि किस दल को टिकट मिलेगा. यही कारण है कि अभी दावेदारों की लंबी कतार है.

लखीसराय विधानसभा सीट पर लगभग सभी दलों में आपसी खींचतान की स्थिति है. इस सीट पर फिलहाल भाजपा का कब्जा है. 2010 के विधानसभा चुनाव में इसके विजय कुमार सिन्हा ने भारी मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी और सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त कराने का रिकार्ड बनाया था.

उनके निकटतम प्रतिद्वंदी राजद के फुलैना सिंह थे. वह इस बार जदयू का झंडा थामे हुए हैं और महागंठबंधन में टिकट के दावेदार हैं.

भाजपा में भी टिकट को लेकर कई दावेदार हैं. कार्यकर्ता सम्मेलन में स्थानीय उम्मीदवार दिये जाने की मांग को लेकर पार्टी स्पष्ट रूप से दो खेमे में बंटी नजर आयी थी. वर्तमान विधायक लखीसराय जिले से सटे पटना जिला के मरांची थाना क्षेत्र के निवासी हैं. हालांकि वह टिकट को लेकर आश्वत हैं. इसके अलावा भाजपा तकनीकी सेल के जिलाध्यक्ष सुजीत कुमार भी पार्टी टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं.

अब तक

यहां से अब तक कांग्रेस पार्टी तीन बार, सोशलिस्ट पार्टी चार बार जनता पार्टी एक बार, जनता दल दो बार, राजद दो बार और भाजपा दो बार जीती.

इन दिनों

जदयू का हर घर दस्तक कार्यक्रम संपन्न. भाजपा का जनसंपर्क एवं परिवर्तन रथ लगातार चल रहा है. अन्य दल भी स्थानीय स्तर पर बैठकें कर रहे हैं.

नोट : विस चुनाव जदयू-भाजपा साथ लड़े थे. लोस में भाजपा-लोजपा साथ थे. प्रत्याशी लोजपा ने दिया था.

क्या बदलाव

– आंजन नदी, गरसंडा नदी पर पुल त्नपकरी -बल्लोपुर, पतेहपुर गांव को जोड़ने के लिए किउल नदी पर पुल निर्माण त्न जिले में पोलिटेक्निक कालेज की स्थापना त्नदुग्ध शीतलन केंद्र का निर्माणत्न सड़क का निर्माण.

सूर्यगढ़ा

गंठबंधन के पेच में फंसी सीट

सूर्यगढ़ा विधानसभा सीट पर फिलवक्त भाजपा का कब्जा है. इसके प्रदेश प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल यहां से विधायक हैं. उनके इस बार भी यहां से चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है. जदयू व राजद में यह सीट किसे मिलती है, इस पर इन दलों के नेताओं की अभी नजर है. पिछले चुनाव में राजद के प्रह्लाद यादव महज तीन हजार वोट से भाजपा प्रत्याशी से पीछे रहे थे.

हालांकि लोकसभा चुनाव में राजद के वोट प्रतिशत में लगभग नौ प्रतिशत की गिरावट आयी थी, जबकि जदयू को राजग से महज साढ़े नौ सौ वोट ही कम मिले थे. लिहाजा महागंठबंधन के दोनों दलों के नेता टिकट के दावे कर रहे हैं. वैसे महागंठबंधन में यह सीट किसे मिलती है, यह देखना दिलचस्प होगा. राजद से जहां प्रह्लाद यादव फिर से टिकट पाने की उम्मीद कर रहे हैं. वहीं लोकसभा चुनाव के नतीजे के आधार पर जदयू नेता भी इस सीट पर दावे कर रहे हैं.

अब तक

यहां कांग्रेस को चार बार, भाजपा को दो बार, भाकपा को तीन बार, राजद व कांग्रेस को एक-एक बार, निर्दलीय को दो बार, प्रजा सोशलिस्ट एक बार जीत मिली.

इन दिनों

जदयू का हर घर दस्तक कार्यक्रम पूरा. भाजपा का वार्ड स्तर पर बैठक, जनसंपर्क व परिवर्तन रथ का कार्यक्रम चल रहा है. अन्य पार्टियों की भी बैठकें जारी है.

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