आंखों की ज्योति वापस लौटानेवाली देवी की होती है पूजा
जमुई/सिकंदरा : ला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर सिकंदरा प्रखंड क्षेत्र के कुमार गांव स्थित मां नेतुला मंदिर आसपास और दूरदराज के लोगों के लिए सैकड़ों वर्षों न केवल आस्था और श्रद्धा का केंद्र बिंदु बना हुआ है, बल्कि लोगों में मां नेतुला की ख्याति आंखों की खोयी हुई ज्योति वापस लौटाने वाली देवी […]
जमुई/सिकंदरा : ला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर सिकंदरा प्रखंड क्षेत्र के कुमार गांव स्थित मां नेतुला मंदिर आसपास और दूरदराज के लोगों के लिए सैकड़ों वर्षों न केवल आस्था और श्रद्धा का केंद्र बिंदु बना हुआ है, बल्कि लोगों में मां नेतुला की ख्याति आंखों की खोयी हुई ज्योति वापस लौटाने वाली देवी के रूप में भी है.
ऐसी मान्यता है कि फलहार या अरबा भोजन पर अथवा निर्जला रह कर मंदिर परिसर या उसके आस-पास बने धर्मशाला अथवा विद्यालय में रह कर 11 दिन, 21 दिन या एक माह तक मां नेतुला को दंडवत देकर और सच्चे मन से सेवा, पूजा तथा अराधना करने वाले श्रद्धालुओं या उनके परिजनों की आंखों की खोयी हुई ज्योति न केवल वापस मिल जाती है, बल्कि सभी शारीरिक कष्टों से भी मुक्ति मिल जाती है. माता की सेवा से खैरा निवासी राजेश सिंह,बानपुर निवासी मो अकमल,
अकौनी निवासी महेंद्र यादव, कवैया रोड (लखीसराय) निवासी जन्मांध विकास कुमार समेत कई लोगों की आंखों की खोयी हुई ज्योति वापस मिली है. मां नेतुला मंदिर न्यास समिति के कार्यकारी अध्यक्ष हरदेव सिंह, सचिव कृष्णनंदन सिंह, कोषाध्यक्ष उमाशंकर सिंह समेत मंदिर समिति के सदस्यों ने बताया कि प्रत्येक वर्ष दुर्गा पूजा के समय यहां आसपास और दूरदराज से सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु महिलाएं उपवास रख कर या अरवा भोजन करके मंदिर परिसर या मंदिर के समीप बने धर्मशाला में रह कर पूरे नियम
और निष्ठा के साथ दंडवत देकर अपने परिजनों की आंखों की खोयी हुई ज्योति वापस लौटाने और शारीरिक कष्टों से मुक्ति के लिए माता की सेवा और अराधना करती हैं. अपनी मनोकामना पूरी होने के पश्चात श्रद्धालुओं द्वारा दुर्गा पूजा के समय या अन्य दिन बकरे की बलि दी जाती है. दुर्गा पूजा के समय अष्टमी की रात्रि से ही बकरे की बलि प्रारंभ हो जाती है, जो नवमी को संध्या तक दी जाती है. प्रत्येक सप्ताह के मंगलवार और शनिवार को भी बकरे की बलि दी जाती है. मां नेतुला की महिमा अपरंपार है तथा मां नेतुला की कृपा से कई लोगों को शारीरिक कष्टों से भी त्राण मिल चुका है.