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स्वाधीनता संग्राम व सामाजिक उत्थान के लिए समर्पित था बिरसा मुंडा का संपूर्ण जीवन

भगवान बिरसा मुंडा की 150 वीं जयंती पर उन्हें याद करते हुए सोनो निवासी डा सुबोध गुप्ता कहते हैं कि बिरसा मुंडा का सम्पूर्ण जीवन स्वाधीनता संग्राम, सामाजिक उत्थान व जनजातीय वर्गों के कल्याण के लिए समर्पित रहा था.

सोनो. अपना सर्वस्व त्यागकर समाज को न्याय, समानता और स्वतंत्रता का मार्ग दिखाने वाले भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी समाज के नायक भगवान बिरसा मुंडा की 150 वीं जयंती पर उन्हें याद करते हुए सोनो निवासी डा सुबोध गुप्ता कहते हैं कि बिरसा मुंडा का सम्पूर्ण जीवन स्वाधीनता संग्राम, सामाजिक उत्थान व जनजातीय वर्गों के कल्याण के लिए समर्पित रहा था. उन्होंने आदिवासी समाज को सामाजिक व आर्थिक रूप से सशक्त करने के साथ-साथ ‘उलगुलान’ आंदोलन के माध्यम से अंग्रेजों के विरुद्ध ऐतिहासिक संघर्ष किया. उनकी शौर्य गाथाएं युग-युगान्तर तक समस्त देशवासियों को राष्ट्र रक्षा के लिए प्रेरित करती रहेंगी. आजादी की लड़ाई में उन्होंने जिस अदम्य वीरता का परिचय दिया और आदिवासी समुदाय को लेकर अंग्रेजों से जिस तरह मुकाबला किया उस पर हर भारतीय को गर्व है. झारखंड के वीर सपूत और महानायक बिरसा मुंडा भारतीय इतिहास में एक ऐसे नायक रहे जिन्होंने 19 वीं शताब्दी में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों से समाज की दशा और दिशा बदलकर रख दी. आज बिरसा मुंडा की जयंती पर पूरा देश उन्हें नमन कर रहा है क्योंकि वे ना सिर्फ आदिवासी समुदाय बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष के महानायक हैं. आजादी और अपनी धरती की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों की आहूति दे दी. अंग्रेजी शासक इस क्रांतिकारी के शौर्य से कांपती थी. ये क्रांतिकारी भले ही कम उम्र में ही देश के लिए न्योछावर हो गये, लेकिन उन्होंने आजादी और आदिवासियों के हक के लिए जो मशाल जलायी वह युगों-युगों तक रोशन होती रहेगी. मुंडा के समाज के लिए किये गये उल्लेखनीय कार्यों के लिए आज के दिन को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में भगवान बिरसा मुंडा की जयंती मनायी जाती है. बिरसा मुंडा के जनसंघर्ष को समझते हुए यह कहा जा सकता है कि आदिवासी समाज को शोषण के नारकीय यातनाओं से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने तीन स्तर पर काम करने की कोशिश की. सामाजिक स्तर पर उन्होंने अंधविश्वास और पाखंडों से निकलने के लिए शिक्षा और स्वच्छता के संस्कार पर अधिक ज़ोर दिया. वहीं ज़मींदारों के आर्थिक शोषण से मुक्ति के लिए सामाजिक स्तर पर चेतना विकसित करने की कोशिश की और बेगारी प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया, जबकि राजनीतिक स्तर पर आदिवासियों को संगठित व एकत्रित करने का भी उन्होंने काम किया था. उन्होंने अंग्रेजों के ‘इंडियन फॉरेस्ट एक्ट’ जिसके तहत आदिवासियों को ज़मीन के लिए जंगल से बेदखल करना शुरू किया जाने लगा था का प्रतिरोध करते हुए आदिवासी समाज को संगठित कर उन्हें आंदोलन के लिए प्रेरित किया और अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई छेड़ दी. बिरसा मुंडा के संघर्षों की वजह से ही छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट 1908 (सीएनटी) झारखंड क्षेत्र में लागू हुआ जो आज भी बरकरार है. यह एक्ट आदिवासी भूमि को गैर आदिवासियों में हस्तांतरित करने पर प्रतिबंध लगाता है और साथ ही आदिवासियों के मूल अधिकारों की रक्षा करता है.

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