ऋतांबर कुमार सिंह, झाझा.
प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत धमना पंचायत के धमना गांव में अवस्थित दक्षिणेश्वरी काली मंदिर सर्व मनोकामना सिद्धि के लिए प्रसिद्ध है. खासकर पुत्र व नेत्र मांगने वाले शुभेच्छु के लिए यह खास मंदिर है. इस मंदिर में पूजा करने के लिए बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश के अलावा कई प्रदेशों के लोग आते हैं. इस मंदिर में पूजा करने की लिए लोगों को नियम पूर्वक उपवास रखना पड़ता है. जानकारी देते मंदिर के पुजारी आचार्य जयनारायण पांडेय ने बताया कि इस मंदिर में जो भी लोग पूरे मनोयोग से मां की आराधना करते हैं, उनकी मनोकामना निश्चित तौर पर पूर्ण होती है. खासकर इस मंदिर में जो लोग पुत्र व नेत्र की कामना लेकर आते हैं, उनकी मन्नत अतिशीघ्र पूरी होती है. यही कारण है कि इस मंदिर में बिहार राज्य के अलावा पश्चिम बंगाल, झारखंड समेत कई प्रदेशों के लोग आकर पूजा -अर्चना करते हैं.1684 से हो रही है पूजा
आचार्य जयनारायण पांडेय ने बताया कि इस मंदिर में 1684 से ही पूजा-अर्चना होती रही है. आज यह जमुई जिले का महत्वपूर्ण मंदिर है. मंदिर की स्थापना वर्ष 1884 में हुई. मंदिर को बनाने में कुमार बैजनाथ प्रसाद सिंह व स्थानीय ग्रामीणों की बड़ी भूमिका रही. इसके पूर्व मिट्टी के पिंड पर ही मां दक्षिणेश्वरी काली मां की पूजा अर्चना की जाती रही है. आज यह मंदिर एक शक्तिपीठ की तरह प्रसिद्ध हो चुका है. इस कारण मंगलवार व शनिवार को भक्तों की काफी भीड़ लगी रहती है.
ज्येष्ठ माह की पूजा है विशेष
दक्षिणेश्वरी काली मंदिर धमना में जेष्ठ माह के प्रथम सोमवार से पूजा की विशेष महत्ता है. इस दौरान पूरे 9 दिनों तक पाठ होता है. इस दौरान जो लोग मन्नत मांगते हैं, वे सभी उपवास में रहकर अपनी पूजा-अर्चना सम्पन्न करते हैं. मन्नत मांगने वाले सुबह से शाम तक मां की आराधना में 9 दिनों तक रहते हैं. नौ दिनों की पूजा के बाद दूसरे मंगलवार को पूरे इलाके के लोग पूरे विधि- विधान के साथ पूजा अर्चना कर अपनी मन्नत की पूर्णाहुति करते हैं. इस कारण इस समय हजारों की भीड़ इकट्ठा होती है. इस पूजा के समय में बिहार के अलावा अन्य प्रदेश के लोग आकर, जिनकी मन्नत पूरी हो जाती है, वे भी अपनी पूजा देते हैं.बलि प्रथा की है व्यवस्था
इस पूजा के दौरान बलि प्रथा की व्यवस्था है. जिन भक्तों की मन्नतें पूर्ण होती हैं, वह इसी दौरान पूजा-अर्चना कर अपने मन्नत को पूर्ण करते हैं. 9 दिनों तक पूजा के बाद लोग अपने अनुसार बलि का भी चढ़ावा देते हैं. इस दौरान आसपास के दर्जनों गांव के लोग भी सुबह से ही पूजा के दिन उपवास में रहते हैं और शाम में बलि की प्रथा होती है. इस कारण इस मंदिर की खास महत्ता है.इन गांवों के लोग रहते हैं सक्रिय
पूजा के दौरान धमना के अलावे काठबजरा, खैरण,नोवाकुरा, सितुचक, बग्धसा, सलैया के अलावा कई गांवों के लोग साली पूजा में होने वाले व्यवस्था को देखने के लिए सक्रिय रहते हैं. जिसमें अन्य ग्रामीणों के अलावा पंडितों की भी खास भीड़ रहती है, जो इस पूजा में आने वाले लोगों भीड़ को कंट्रोल करते हैं .हजारों की भीड़ रहने के कारण दिन से ही गांव के लोग मंदिर के चारों तरफ इकट्ठा होकर अपना मोर्चा संभालते हैं व भीड़ को नियंत्रित करते हैं.
बिना यजमान की होती है पूजा
इस मंदिर में सिर्फ पंडित लोग ही पूजा-पाठ करते हैं. पूजा -पाठ के दौरान किसी भी तरह का कोई यजमान नहीं होते हैं .आचार्य जय नारायण पांडेय व राजकुमार पांडेय ने बताया कि जितने भी लोग उस दिन उपासक होते हैं, वह सभी यजमान के रूप में रहते हैं. लेकिन कोई मुख्य यजमान के रूप में पूजा -अर्चना नहीं करते हैं. सिर्फ पंडित ही इस मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं.18 जून को होगी पूजा
इस मंदिर के अध्यक्ष कुमार धर्मेन्द्र सिंह उर्फ पप्पू जी ने कहा कि इस मंदिर में प्रत्येक वर्ष के जेष्ठ माह की पहली सोमवार से ही पूजा शुरू हो जाती है. ग्रामीणों व अन्य के सहयोग से 10 जून को कलश स्थापना होगी. जबकि 18 जून को पूजा होगी. पूजा की सभी तैयारियां कर ली गयी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है