जमुई. दीपों का उत्सव दीपावली अधर्म पर धर्म की और अंधेरे पर प्रकाश के जीत का पर्व है. इस पर्व में मिट्टी से बने दीये का पारंपारिक महत्व रहा है, पर बदलते परिवेश में बिजली से जलने वाले चाइनीज झालरों ने दीये की इस पौराणिक परंपरा को लुप्त सा कर दिया है. मिट्टी के दीये के बगैर इस पर्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. दीपावली में दीयों के उपयोग का आर्थिक व सामाजिक फायदा तो था ही. दीप बनाने वाले कुम्हार समाज के लोग भी इसको लेकर खुश रहते थे. कालांतर में भौतिकता की चमक-दमक में इस कदर खो गये हैं कि अपनी पुरानी परंपरा को ही पीछे छोड़ दिया है. बिजली के जगमगाते बल्ब मनभावन लगने लगे हैं और दीये पूजा घरों की औपचारिकता बनकर रह गये हैं. सदियों पुरानी परंपरा को भूल लोग रंग-बिरंगे लाइटों से घर और मुहल्ले रोशन करने लगे थे, लेकिन विगत कुछ वर्षों से लोकल फॉर वोकल के स्लोगन के बाद अब लोगों ने अपनी खोई हुई परंपरा को फिर से अपनाना शुरू कर दिया है.
बढ़ गयी मिट्टी के दीये की डिमांड
मिट्टी के दीये की डिमांड बढ़ने से इस पेशे में लगे कुम्हार की धीमी पड़ी चाक ने गति पकड़ना शुरू कर दिया है. मिट्टी के दीये की डिमांड बढ़ने के साथ ही निर्माण भी युद्ध स्तर पर शुरू हो गया है, ताकि दीपावली तक ज्यादा से ज्यादा स्टॉक रखा जा सके. दीपावली के अवसर पर मिट्टी के दीये में तेल डाल कर जलाना काफी शुभ माना जाता है. वहीं दीये का प्रयोग छठ के मौके पर भी होता है.
80-100 रुपये में मिल रहे मिट्टी के 100 दीये
डिमांड बढ़ने से दीये के दाम में भी वृद्धि हुई है. पहले दीये 50 रुपये में 100 पीस मिलते थे. लेकिन, डिमांड बढ़ने से इस वर्ष 80 से 100 रुपये में 100 दीये मिल रहे हैं. अलग-अलग आकार के दीये की अलग-अलग कीमत हैं. अब आकर्षक और डिजाइनर दीये भी बाजार में उपलब्ध हैं.
मिट्टी के दीये जलाने का धार्मिक महत्व
मिट्टी के दीये का काफी धार्मिक महत्त्व है. पूजा पाठ से लेकर हर जगह मिट्टी के दीये जलाये जाते हैं. इसका अध्यात्मिक महत्व भी है. मान्यता है कि दीये से निकलने वाली रंग बिरंगी रोशनी लोगों के जीवन में खुशियां का प्रतीक है. दीये जलाने से बरसात के बाद उत्पन्न कीड़े मकोड़े इसमें जल जाते हैं. वहीं इसका आर्थिक फायदा भी है इस धंधे से जुड़े लोगों को भी रोजगार मिल जाता है.
अब इलेक्ट्रिक चाक पर बनते हैं दीये
जैसे-जैसे समाज में आधुनिक हुआ है वैसे-वैसे लोग भी समय के अनुसार अपने को ढाल रहे हैं. पहले जहां कुम्हार हाथ के चाक पर मिट्टी के बर्तन और दीये का निर्माण करते थे, लेकिन अब इलेक्ट्रिक चाक पर दीये का निर्माण कार्य किया जा रहा है. इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की मानें तो पहले मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने में काफी समय लग जाता था. और समय पर दीये और बर्तन बाजार नहीं पहुंच पाते थे, लेकिन अब इलेक्ट्रिक चाक से कम समय में अधिक दीये और मिट्टी के बर्तन बन जाते हैं और समय पर बाजार में पहुंच जाते हैं. इलेक्ट्रिक चाक से काफी सहूलियत हुई है.
मिट्टी नहीं मिलने से होती है परेशानी
इस कारोबार में लगे पवन पंडित, राहुल कुमार, दीपू पंडित, हजारी पंडित समेत अन्य लोगों ने बताया कि वर्तमान में दीये बनाने के लिए मिट्टी नहीं मिलने से काफी परेशानी होती है. दूर दराज के इलाके से मिट्टी लाते हैं. इसमें खर्च भी ज्यादा आता है, इसलिए मिट्टी के दीये का दाम बढ़ गया है.
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