आस्था, संयम व समर्पण भाव से बाबा लक्ष्मीनारायण को अर्पित किया दहियौरी का नैवेद्य

महेश्वरी स्थित प्रसिद्ध बाबा लक्ष्मीनारायण मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन शुक्रवार को हुए वार्षिक पूजनोत्सव अहोरात्रि में लोगों की असीम आस्था, भक्ति, संयम और समर्पण दिखा.

By Prabhat Khabar News Desk | November 15, 2024 9:30 PM
an image

विनय कुमार मिश्र, सोनो

महेश्वरी स्थित प्रसिद्ध बाबा लक्ष्मीनारायण मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा के दिन शुक्रवार को हुए वार्षिक पूजनोत्सव अहोरात्रि में लोगों की असीम आस्था, भक्ति, संयम और समर्पण दिखा. शुक्रवार को बाबा के पूजन के लिए महेश्वरी में भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा. श्रद्धालुओं का मंदिर आने का सिलसिला शाम तक चलता रहा. नौ बजे पूर्वाह्न से ही भक्तों का आगमन प्रारंभ हो गया था और दोपहर होते होते भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. आसपास के दर्जनों गांव से भारी संख्या में श्रद्धालु महेश्वरी पहुंचे जबकि दूरस्थ क्षेत्र से भी हजारों लोग बाबा को नैवेद्य अर्पित करने विभिन्न साधनों से महेश्वरी पहुंचे. श्रद्धालुओं को मंदिर तक जाने के लिए सड़क पर कतारबद्ध किये जा रहे थे. सुबह बाबा लक्ष्मीनारायण के षोड्षोपचार पूजा के बाद मंदिर प्रांगण में ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ ध्वज का आरोहण किया गया. आरती व ब्राह्मण भोजन होते ही पूजा के लिए श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के द्वार खोल दिये गये. ध्वजारोहण के उपरांत श्रद्धालुओं द्वारा नैवेद्य चढ़ाने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह लगातार चलता रहा. वहीं श्रद्धालुओं को कोई असुविधा नहीं हो इसके लिए पूजा समिति सदस्यों के साथ साथ पुलिस बल और एसएसबी जवान भी तैनात दिखे.

बाबा को बेहद प्रिय है तुलसीदल और दहियौरी का नैवेद्य

भक्तों ने शुक्रवार को बाबा लक्ष्मीनारायण को तुलसीदल और दहियौरी सहित अन्य नैवेद्य अर्पित किया. ग्रामीण बताते है कि बाबा को तुलसीदल और दहियौरी बेहद प्रिय है. नैवेद्य में अरवा चावल, गुड़ या चीनी व दही के साथ घी का उपयोग किया जाता है, जो पवित्रता के साथ स्थानीय घरों में महिलाएं बनाती हैं. वैसे तो श्रद्धालु बाबा को लड्डू, पेड़ा, मिसरी व अन्य चीजें भी प्रसाद के रूप में अर्पित करते हैं, लेकिन दहियौरी बाबा का प्रिय नैवेद्य है. इसी कारण महेश्वरी गांव के हर घर में जो चढ़ावा के लिए नैवेद्य बनता है वह दहियौरी ही होता है. नैवेद्य में दहियौरी व अन्य पकवान बनाने के लिए दो तीन दिन पूर्व से ही तैयारी में गांव की महिलाएं लग जाती हैं.

ध्वजारोहण के बाद गांव में 24 घंटे तक नहीं जलेगा चूल्हा

वार्षिक पूजनोत्सव अहोरात्रि में जब दोपहर के समय ध्वजारोहण हो जाता है तब 24 घंटे ले लिये गांव के किसी भी घर में चूल्हा जलाया जाना वर्जित रहेगा. शनिवार की दोपहर जब इस पवित्र आध्यात्मिक ध्वज का अवरोहण के बाद घरों में लोग चूल्हा जलाएंगे और खाना बनाया जायेगा. इस बीच घरों में लोग दही चूड़ा और चना खाते हैं. यह परंपरा यहां पूजा के उद्भव काल से ही चला आ रहा है, जो आज भी पूरी भक्ति भावना के साथ निभाई जाती है.

ओजस्वी ऋषि की जटा में विराजते थे भगवान शालिग्राम

प्रखंड मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित गांव महेश्वरी में कलोथर नदी के समीप बने मंदिर में बाबा लक्ष्मीनारायण शालिग्राम स्वरूप में विराजमान है. पूजा का इतिहास कई सौ वर्षों का है. कहा जाता है कि उस वक्त नदियों से घिरे इस गांव के आसपास जंगल ही जंगल था. इसी जंगल से होते एक तेजस्वी ऋषि का आगमन महेश्वरी गांव में हुआ था. ग्रामीणों ने उनकी खूब सत्कार किया. ग्रामीणों के सत्कार से प्रसन्न ऋषि का मन वहां लग गया. वे कलोथर नदी किनारे तपस्या करने लगे. गांव के राम सिंह व राम पांडेय उनकी सेवा किया करते. उन्हें एक विचित्र चीज कौतूहल में डाल दिया था. जब ऋषि नदी में स्नान करने जाते तो अपनी जटा से कोई चीज निकालते और स्नान के पश्चात बड़े आदर व पवित्र भाव से उसकी पूजा कर पुनः उसे अपनी जटा में छुपा लेते. समय बीतता गया और वह समय भी आया जब ऋषि वहां से जाने लगे. अपने भक्तों की सेवा से प्रसन्न ऋषि ने दोनों से कुछ मांगने को कहा तब राम सिंह ने उनसे उनकी जटा में छिपी हुई उस चीज को मांग लिए जो उनके कौतूहल का केंद्र बिंदु था. पहले तो ऋषि ने उन्हें अन्य कुछ मांगने को कहा लेकिन सेवक की जिद के आगे हारकर उन्होंने अपनी जटा से अलौकिक शालिग्राम को निकाल कर दोनो भक्त को सौंप दिये. उन्होंने दोनों से कहा कि यह कोई साधारण पत्थर नहीं बल्कि शालिग्राम के रूप में साक्षात भगवान लक्ष्मीनारायण है. उन्होंने इनकी विधिवत पूजा की विधि बताकर अंतर्ध्यान हो गए. दोनो भक्त उसी झोपड़ी को मंदिर का शक्ल देकर उसकी पूजा करने लगे. बाद में ग्रामीणों ने वहां मिट्टी का मंदिर बनवा दिया. समय बीतता गया और मिट्टी के मंदिर से पक्के का मंदिर भी बन गया जिसका पुनः जीर्णोद्धार कर मंदिर को विस्तृत स्वरूप दिया गया. इस बीच महेश्वरी गांव के अलावे आसपास के गांव के लोगों में भी बाबा लक्ष्मीनारायण में आस्था बढ़ने लगा. लोग मिन्नत मांगने पहुंचने लगे. मुंडन से लेकर हर शुभ कार्य मे इनके महत्व को लोगों ने सर आंखों पर रखने लगे. बीते दो दशक से प्रखंड व जिला के बाहर से भी श्रद्धालु आने लगे और अब हाल यह है कि कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर इनके वार्षिक पूजनोत्सव में हजारों भक्त यहां उमड़ पड़ते है. आस्था और भक्ति की मिसाल बने बाबा लक्ष्मीनारायण का वार्षिक पूजनोत्सव पूरे इलाके में विख्यात हो गया.

गांव में आतिथ्य सत्कार की है अनूठी परंपरा

बाबा लक्ष्मीनारायण मंदिर महेश्वरी गांव में स्थित है जिस गांव का का पुराना स्वर्णिम इतिहास है. सैकड़ों वर्ष के अपने अस्तित्व को समेटे इस गांव की अपनी कई विशिष्टता और पहचान है. इन्हीं विशिष्टताओं में से एक है यहां का आतिथ्य सत्कार. इसकी झलक यहां होने वाले बाबा लक्ष्मीनारायण वार्षिक पूजनोत्सव में भी देखने को मिलता है. कार्तिक पूर्णिमा को होने वाले इस अहोरात्रि पूजन के समय बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को कोई न कोई ग्रामीण अपने घर ले जाकर न सिर्फ चढ़ावा के नैवेद्य प्रदान करते है बल्कि पूजा करके लौटने के उपरांत अपने घर में बड़ी श्रद्धा से दही चूड़ा भी खिलाते है. इस आतिथ्य में श्रद्धा इतनी अधिक होती है कि लोग मना नहीं कर पाते है. सैकड़ो घर वाले इस बड़े गांव में अधिकांश घरों में दर्जनों बाहर के श्रद्धालु दही चूड़ा ग्रहण करते है. सदियों से चले आ रहे इस स्वस्थ परंपरा के निर्वहन के लिए महेश्वरी के सक्षम निवासी आतिथ्य सत्कार के लिए कई दिन पूर्व से ही तैयारी में लग जाते है. दही के लिए दूध का इंतजाम या फिर सीधे दही के लिए कई दिन पूर्व से ही व्यवस्था में लगना पड़ता है. चूड़ा, गुड़, चीनी और चना की बड़ी मात्रा में खरीदारी की जाती है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Exit mobile version