राष्ट्र कवि दिनकर ने जन-जन तक पहुंचाया राष्ट्रवाद का संदेश: कामदेव सिंह

कई पुरस्कार व सम्मान से विभूषित हुए थे रामधारी सिंह दिनकर

By Prabhat Khabar News Desk | September 22, 2024 10:15 PM

सोनो. हिंदी साहित्य के मजबूत स्तंभ और राष्ट्रीय चेतना का उद्घोष करने वाले राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती सोमवार को मनायी जाएगी. उनकी जयंती की पूर्व संध्या पर प्रखंड के शिक्षाविद चुरहेत निवासी कामदेव सिंह ने कहा कि दिनकर आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि थे. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दिनकर की भूमिका बेहद प्रशंसनीय रही. 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय सिमरिया में जन्म लेने वाले ये महान विभूति उत्तर छायावाद के प्रमुख कवि थे. राजनीति इतिहास और दर्शनशास्त्र में भी उनकी गहरी रुचि थी. आजादी के पूर्व वे एक विद्रोही कवि के रूप में जाने जाते थे लेकिन आजादी के बाद वे राष्ट्रकवि के रूप में जाने गए. उनके अतीत के संदर्भ में बताया कि मनरूप देवी के सुपुत्र रामधारी सिंह दिनकर ने कविता लेखन की शुरुआत 30 के दशक में ही कर दी थी, लेकिन उनकी ख्याति 40 के दशक में फैली. मो इकबाल और रवींद्र नाथ टैगोर से प्रभावित रामधारी सिंह दिनकर जनसंपर्क विभाग में सब रजिस्ट्रार और सब डायरेक्टर बने. इसके साथ ही बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर व भागलपुर विश्वविद्यालय में उप कुलपति के पद को भी उन्होंने सुशोभित किया. आजादी के बाद 1952 में उन्होंने राज्यसभा के सदस्य के रूप में राजनीति में प्रवेश किया.

1959 में साहित्य अकादमी व 1972 में मिला था ज्ञानपीठ पुरस्कार

कामदेव सिंह ने उनकी विद्वता के संदर्भ में बताया कि दिनकर न केवल हिंदी भाषा के बल्कि उर्दू, संस्कृत, बंगाली और मराठी भाषा के भी ज्ञाता थे. वे आशावाद, आत्मविश्वास और संघर्ष के कवि थे. उनकी कविता मूल रूप से क्रांति, शौर्य और ओजस्वी वाली है. उनकी कविता में जहां एक ओर शौर्य व पराक्रम का बखान है, तो दूसरी ओर ग्रामीण परिवेश मिट्टी से लगा सामाजिक व सांस्कृतिक चेतना का भी बोध होता है. अपनी रचना संस्कृत के चार अध्याय को लेकर उन्हें 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला. उर्वशी को लेकर 1972 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था. सरकार की ओर से उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया, जबकि वर्ष 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनके सम्मान में उनके चित्र को भारतीय संसद के केंद्रीय हाल में लगाया था. कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, हारे को हरिनाम, हुंकार, रेणुका उनकी प्रमुख काव्य रचना है. उन्होंने गद्यकार के रूप में भी काफी नाम कमाया. अर्धनारीश्वर, वट, पीपल दिनकर की डायरी उनकी प्रमुख गद्य कृतियां हैं. सिंहासन खाली करो कि जनता आती है इस पंक्ति ने उन्हें खूब लोकप्रियता दिलायी थी. सदियों की ठंडी बुझी राख सुगबुगा उठी उनकी यह पंक्ति बेहद प्रशंसनीय रही. भारतीय गणतंत्र दिवस के प्रथम अवसर पर उनकी यह पंक्ति सदा स्मरणीय हो गयी. कामदेव सिंह ने आह्वान करते हुए कहा कि ऐसे महान राष्ट्रवादी कवि की जयंती पर उन्हें याद करते हुए उन्हें सम्मान देना हर भारतीय का कर्तव्य होना चाहिए.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version