दिव्यांगता सफलता की राह में रुकावट नहीं, नई संभावनाओं का दरवाजा: प्रो गौरी शंकर
अंतरराष्ट्रीय विकलांगता दिवस के अवसर पर नगर परिषद जमुई में विकलांगता और उनके अधिकार विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गयी.
जमुई. अंतरराष्ट्रीय विकलांगता दिवस के अवसर पर नगर परिषद जमुई में विकलांगता और उनके अधिकार विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गयी. इसकी अध्यक्षता स्नातकोत्तर अर्थशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ प्रो गौरी शंकर पासवान ने की. प्रो पासवान ने कहा कि हर वर्ष तीन दिसंबर को विकलांगता दिवस मनाया जाता आ रहा है. इस दिवस का मुख्य उद्देश्य विकलांग लोगों के अधिकारों और कल्याण के प्रति जन जागरूकता फैलाना तथा उनके गरिमा और सम्मान को बढ़ावा देना है. उन्होंने कहा कि दिव्यांगता सफलता की राह में रुकावट नहीं, बल्कि नई संभावनाओं का दरवाजा है. हर दिव्यांग व्यक्ति अपने आप में अद्वितीय और चमत्कारी है.
दिव्यांग की पहचान उनकी हिम्मत से है, न की दिव्यांगता से
परिचर्चा के दौरान प्रो पासवान ने कहा कि दिव्यांगता एक शब्द है. असली ताकत दिव्यांग के तन में नहीं, बल्कि उनके जज्बे में है. उनकी पहचान उनकी हिम्मत से है, न की दिव्यांगता से. विकलांगता विकलांग व्यक्ति के सपनों को रोक नहीं सकता,जब तक वे खुद ना रोके. विकलांगता के प्रति नकारात्मक सोच और धारणाओं को बदलने का प्रयत्न करना चाहिए.परिश्रम और हिम्मत विकलांगता को भी पीछे छोड़ देती है. कहते हैं कि जॉन मिल्टन एक महान कवि थे जो 45 वर्ष की उम्र में ही दोनों आंख से अंधे हो गए थे. लेकिन उन्होंने पैराडाइज लॉस्ट की अंतिम रचना की थी. स्टीफन हॉकिंग महान भौतिक वैज्ञानिक और सूरदास भी दिव्यांग कवि थे. उनसे प्रेरणा ली जा सकती है. वर्ष 2024 में डब्लुएचओ के अनुसार वैश्विक आबादी का 15 प्रतिशत (1.3) बिलियन लोग किसी न किसी प्रकार की विकलांगता से 2 से 4 मिलियन लोग गंभीर विकलांगता के साथ जी रहे हैं. विकलांगता जीवन को समझने का एक नया नजरिया देती है.
दिव्यांग व्यक्ति के प्रति भी आदर भाव रखना आवश्यक
अधिवक्ता रामचंद्र रविदास ने कहा कि विकलांगता अभिशाप नहीं, बल्कि विकलांग व्यक्ति हमारी तरह ही इंसान हैं . विकलांग व्यक्ति को समाज में समान स्थान और सहयोग मिलना चाहिए . विकलांगता के उपरांत भी संयम, परिश्रम, संकल्प और धैर्य हर कठिनाइयों को पार कर सफलता पाई जा सकती है. कहते हैं डिसेबिलिटी इस नॉट इनेबिलिटी अर्थात विकलांगता असमर्थता नहीं है, बल्कि उन्हें समर्थ बनाया जा सकता है. विकलांगता व्यक्ति की कमजोरी नहीं उनकी ताकत है. दिव्यांग व्यक्ति के प्रति भी आदर भाव रखना आवश्यक है.
दिव्यांग व्यक्तियों को सहानुभूति नहीं, अवसर चाहिए
प्रो संजीव कुमार सिंह ने कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों को सहानुभूति की नहीं, बल्कि अवसरों और समानता की आवश्यकता होती है. यदि उन्हें सही मंच और संसाधन उपलब्ध करा दिए जाएं, तो वे अपने हुनर को साबित कर सकते हैं. प्रो आनंद कुमार सिंह ने कहा कि विकलांग बच्चों को शिक्षा देना पुनीत कर्तव्य है. क्योंकि शिक्षा दान एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण कार्य है. उनकी आवश्यकता भिन्न भिन्न होती है. इसलिए उन्हें विशेष शिक्षण पद्धतियों की आवश्यकता होती है.
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