16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जमुई के लाल गलियारे में हरी सब्जियां उगाने की कोशिश नहीं हो रही सफल, सिंचाई के अभाव में टूट रही ग्रामीणों की आस

जमुई में जंगल के भीतर स्थित सिद्धेश्वरी गांव के लोगों ने हरी सब्जी उपजाने की शुरुआत की थी. यहां के लोगों ने बिना किसी कीटनाशक और बिना रासायनिक खाद के सब्जी की खेती से भाग्य बदलने का सपना देखा था. लेकिन सिंचाई के अभाव में कई एकड़ में लगे सब्जी के पौधे सूख गए, इस वजह से ग्रामीणों की आस टूट रही है.

विनय कुमार मिश्र, सोनो (जमुई)

जमुई के प्रखंड मुख्यालय सोनो से 19 किलोमीटर दूर पश्चिम दक्षिण क्षेत्र के जंगल में स्थित आदिवासियों के दो दर्जन घरों वाले गांव सिद्धेश्वरी के लोगों ने पहाड़ के ऊपर सब्जी की खेती का मन बनाया. कभी अति नक्सल प्रभावित रहे इस क्षेत्र के ग्रामीणों ने बिना कीटनाशक और बिना रासायनिक खाद के हरी सब्जी उगाने की पहल की. लेकिन कभी लाल गलियारे के रूप में देखे जाने वाले इस जंगल के बीच हरी सब्जी की खेती कर अपना भाग्य बदलने का ग्रामीणों का प्रयास असफल हो गया. कई एकड़ में लगाए गए सब्जी के पौधे पानी के अभाव में सूख गए. सिंचाई की व्यवस्था न हो पाने से इस वर्ष उनके सपने अधूरे रह गए.

दरअसल इस पहाड़ी और जंगली इलाके में स्थित छोटे बड़े जल स्रोत गर्मी की वजह से लगभग सूख गया है. घरों में स्थित कुछेक चापाकल से सिंचाई संभव नहीं हो सका. कृषि विभाग की ओर से सिंचाई के लिए बोरिंग करवाने का भरोसा झूठा वादा साबित हुआ. परिणामतः खेतों में लगे सब्जी के हरे भरे पौधे देखते देखते मुरझाने लगे और अंततः सूख गए. ग्रामीणों की मिहनत और पूंजी दोनों बर्बाद हो गए.

जंगलों और पहाड़ों के बीच बसा है छोटा सा गांव सिद्धेश्वरी

बेलंबा पंचायत का छोटा सा आदिवासी गांव सिद्धेश्वरी घने जंगल के बीच अवस्थित है. प्राकृतिक खूबसूरती के बीच बसे इस गांव में संसाधनों का अभाव है. हालांकि अब यहां सड़क, बिजली, स्कूल है फिर भी कई समस्याओं का समाधान न हो सका. पेयजल के लिए कुछ चापाकाल तो है लेकिन सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है. शौचालय व अन्य कई चीजें आज भी गांव की जरूरत है. भौगोलिक स्थिति और जंगल में नक्सलियों के बोलबाला के कारण एक डेढ़ दशक पूर्व यह इलाका नक्सलियों का सेफ जोन था.

दूर दूर तक फैले यह पहाड़ी जंगल का इलाका पूरी तरह नक्सलियों के गिरफ्त में था. समय और ग्रामीणों की सोच बदला और यह इलाका विकास के पथ पर चल कर अपनी एक नई पहचान बनाने में लग गया. ग्रामीणों को समाजसेवी सह चिकित्सक डा एमएस परवाज का साथ मिला. उन्होंने ग्रामीणों को जागरूक करने की मुहिम छेड़ा और उनके आर्थिक विकास के लिए कार्य योजना बनाने में लग गए.

05Jam 4 05052024 66 C661Bha109037643
फरवरी में खेतों में लहलहाता सब्जी का पौधा

सब्जी की खेती से आर्थिक मजबूती की थी सोच

सब्जी की खेती से आर्थिक मजबूती बनाने की सोच के साथ इस वर्ष की शुरुआत में सिद्धेश्वरी के कुछ ग्रामीणों ने अपने खेतों में फूल गोभी, बंधा गोभी, बैगन, टमाटर, मिर्च और पालक साग की खेती शुरू किया. लगभग दस एकड़ में शुरू किए गए सब्जी की खेती के दौरान ग्रामीणों ने तय किया कि सब्जी को उपजाने में वे लोग रासायनिक खाद और कीटनाशक का प्रयोग नहीं करेंगे.

दरअसल इसके पीछे बेहतर मार्केटिंग की सोच थी क्योंकि कंपीटिशन के इस दौर में उनकी सब्जी की मांग तभी ज्यादा हो पाती जब उनकी सब्जी कुछ खास हो लिहाजा ग्रामीणों ने बिना खाद और बिना कीटनाशक के सब्जी को बाजार में लाने हेतु प्रचार प्रसार भी करने लगे. कृषि विभाग के लोग भी ग्रामीणों को प्रोत्साहित किया. जाड़े की शुरुआत में शुरू हुआ सब्जी खेती का सफर अप्रैल खत्म होते होते दम तोड़ दिया. पानी के अभाव में पौधे के साथ साथ ग्रामीणों के अरमान भी सूख गये.

मायूस हुए सिद्धेश्वरी के किसान, लेकिन कुछ अलग करने की उम्मीद नहीं छोड़ा

इस छोटे से खूबसूरत गांव के लोग पत्ता तोड़कर, लकड़ी काटकर और मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते थे. जब बिहार में शराब बंदी नहीं था तब यहां के ग्रामीण महुआ देसी शराब बनाकर आर्थिक उपार्जन करते थे लेकिन शराब बंदी के बाद उनकी आमदनी प्रभावित हो गई. नक्सल के प्रभाव ने भी इस इलाके को विकास से दूर रखा था. धीरे धीरे स्थिति बेहतर हुई और शिक्षा के महत्व को भी लोगों ने समझा.

समाजसेवी डा परवाज के प्रयास के बाद ग्रामीण हरी सब्जी की खेती के लिए राजी हुए. सब्जी उगाने के लिए आगे बढ़ी किसान मनीषा मरांडी, नरेश मुर्मू, सुरेश हांसदा मायूस होकर बताते है कि हमने इस उम्मीद से सब्जी की खेती शुरू की थी कि कृषि विभाग का सहयोग हमें मिलेगा. उस वक्त विभागीय पदाधिकारी द्वारा सिंचाई के लिए बोरिंग की व्यवस्था करने का आश्वासन दिया गया था लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

शुरू में तो यहां के गोभी, बैगन और अन्य सब्जियां लोगों की पसंद बनी जिससे हम पुनः खेतों में पौधे उगाने लगे लेकिन गर्मी बढ़ने के साथ ही पानी का संकट गहराने लगा और लहलहाते पौधे मुरझाने लगे. अब तो ये पौधे मरने के कगार पर है. किसान बताते है कि हम मायूस भले ही हुए है लेकिन कुछ अलग करने की उम्मीद नहीं छोड़ी है. हम चाहते है कि हमें और हमारे गांव को अच्छी पहचान मिले.

मदद मिले तो लाल गलियारे में खूब उपज सकती है हरी सब्जियां

ग्रामीण कहते है कि यदि हमें प्रशासनिक मदद मिले तो इन जंगलों और पहाड़ों पर भी हरी सब्जियां भरपूर उगायी जा सकती है. बस हमें सिंचाई के लिए बोरिंग और बिक्री के लिए बाजार उपलब्ध हो जाए. हम अपनी मेहनत से अधिक पैदावार कर सकेंगे.

जंगल में बसे ऐसे गांव जाकर ग्रामीणों के जीवन पर काम करने वाले डा परवाज बताते है कि यह सच है कि जंगल के ये लोग खूब मेहनती है. यदि यहां हरी सब्जी की खेती सफल हो जाता है तब जंगल में बसे अन्य कई आदिवासी गांव के लोग भी ऐसे खेती करके अपनी जीवन को सुधार सकते हैं. सब्जी की खेती के लिए सिंचाई हेतु बोरिंग की व्यवस्था हो जाने से इस क्षेत्र के लोगों की जिंदगी में बड़ा बदलाव होगा और लोग प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकेंगे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें