पूर्व विधानसभा स्पीकर त्रिपुरारी बाबू को किया याद
पुण्यतिथि पर दी श्रद्धांजलि
जमुई. प्रखर समाजवादी नेता तथा पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व त्रिपुरारी सिंह की 37वीं पुण्यतिथि पर उन्हें याद किया गया. शनिवार को किऊल नदी के तट पर स्थित त्रिपुरारी घाट स्थित सर्वप्रथम उनके समाधि स्थल पर पुष्पांजलि अर्पित किया गया. जिसमें जिले के गणमान्य लोगों ने भाग लिया. इसके बाद कचहरी रोड स्थित उनकी प्रतिमा स्थल पर लोगों ने पुष्पांजलि की. जिसके बाद महिसौडी स्थित टीपी सिंह रोड स्थित उनके आवास पर भी श्रद्धांजलि सभा कर लोगों ने उन्हें याद किया. मौके पर स्व सिंह के पुत्र, पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता तथा जदयू नेता शांतनु सिंह ने कहा कि स्व सिंह ने जमुई जिले के लिए जो किया वह अविस्मरणीय है. उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष बनाकर जमुई का नाम रोशन किया. इतना ही नहीं जमुई, खैरा व सिकंदरा प्रखंड के किसानों की लाइफ लाइन गरही डैम भी उनकी ही देन है. उन्होंने कहा कि गरही डैम का निर्माण पहले चकाई में होने वाला था, लेकिन उनके प्रयासों के कारण वह खैरा प्रखंड के गरही में बनाया गया. उन्होंने कहा कि स्व सिंह ने समाजवादी नेता के रूप में अपनी अमिट पहचान बनायी थी और हमेशा लोगों के दुख दर्द में शरीक होते थे. पुष्पांजलि करने वालों में स्व सिंह की पत्नी तथा विधान परिषद की पूर्व सदस्य इंदु सिंह, उनके सुपुत्र शांतनु सिंह, जदयू जिलाध्यक्ष शैलेंद्र महतो, पूर्व जदयू जिलाध्यक्ष इं. शंभू शरण, पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष भास्कर सिंह, वैश्य महासभा के संरक्षक बृजेश बरनवाल, नगर परिषद के अध्यक्ष लोलो मियां उर्फ हलीम, जदयू नेत्री स्नेह लता, रामानंद सिंह, बृजेश सिंह, लोजपा नेता चंदन सिंह समेत जिले के दर्जनों गणमान्य लोग शामिल थे.
57 वर्ष की उम्र में हो गया था आकस्मिक निधन हो गया
बताते चलें कि त्रिपुरारी बाबू एक साधारण किसान परिवार में 6 अक्तूबर 1930 में पैदा हुए थे. 1967 में पहली बार प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जमुई के विधायक चुने गये थे. 1967 से लेकर 1980 तक वे चार बार जमुई के विधायक चुने गये. 1980 से 1988 तक मृत्यु पर्यंत दो बार बिहार विधान परिषद के सदस्य रहे. 1971 में कर्पूरी ठाकुर मंत्रिमंडल में बिहार सरकार के कैबिनेट मंत्री बनाया गया. 1977 में जनता पार्टी सरकार में निर्विरोध बिहार विधानसभा के अध्यक्ष बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. इसके अलावा 1984 में जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर संभालते हुए उन्होंने कुशल संगठनकर्ता की पहचान बनायी. 25 जनवरी 1988 को महज 57 वर्ष की उम्र में उनका आकस्मिक निधन हो गया.
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