Jamui News : कंधे पर बिठाकर बच्चों को स्कूल पहुंचाते हैं अभिभावक
जमुई जिले के खैरा प्रखंड क्षेत्र का जतहर गांव पिछड़ेपन का दंश झेल रहा है. लोग नदी की तेज धार से गुजरकर गांव से बाहर जाते हैं. साल के छह महीने अपने ही गांव में कैद होकर रह जाते हैं. कोई बीमार हो, तो चारपाई पर अस्पताल ले जाना पड़ता है. इस दिशा में प्रशासनिक पहल नहीं हो रही है.
Jamui News : राहुल सिंह, जमुई. भारत ने आजादी के बाद कई क्षेत्रों में तरक्की की है. लेकिन जमुई जिले का जतहर गांव आज भी पिछड़ेपन का शिकार है. इस गांव के लोग साल के छह महीने अपने ही गांव में कैद होकर रह जाते हैं. इस स्थिति ने गांववासियों की रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से प्रभावित हो जाती है. खैरा प्रखंड क्षेत्र के जतहर गांव के रहने वाले लोगों का जीवन एक नदी पर निर्भर है. गांव के मुख्य रास्ते पर बहने वाली यह नदी बरसात के मौसम में उफाना जाती है. नदी का पानी इतनी तेजी से बहता है कि डर के मारे गांववासी भगवान भरोसे निकलते हैं. इस नदी की वजह से गांव में कोई सड़क नहीं है. नदी को ही पार करना एकमात्र तरीका है. पानी का तेज बहाव और नदी का उफान गांववासियों के लिए स्थायी संकट बना हुआ है. इसके निदान का कोई उपाय नहीं निकल पा रहा है.
जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते हैं बच्चे
इस गांव के बच्चों को भी अपनी शिक्षा के लिए जान जोखिम में डालना पड़ताहै. बरसात के मौसम में जब नदी का बहाव सबसे तेज होता है, तब बच्चों को स्कूल जाने के लिए नदी पार करनी पड़तीहै. हाल ही में एक बच्चा और उसकी मां नदी में बह गये थे, लेकिन गांववासियों की तत्परता से उनकी जान बचायी जा सकी थी. इस तरह की घटनाएं न केवल बच्चों के लिए खतरे की घंटी हैं, बल्कि परिवारों के लिए भी असहज स्थिति उत्पन्न करती है. शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच के बिना, गांव के लोगों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है.
समय पर नहीं मिल पाता चिकित्सा का लाभ
जमुई के इस गांव में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी अत्यंत खराब है. गांव में अगर किसी की तबीयत बिगड़ जाती है, तो उसे चारपाई पर उठाकर अस्पताल पहुंचाना पड़ताहै. यह स्थिति ग्रामीणों के लिए बहुत ही कठिन और खतरनाक होती है. खराब मौसम में नदी का तेज बहाव और जंगलों के बीच का रास्ता, मरीजों की जिंदगी के लिए खतरा उत्पन्न कर देता है. ग्रामीणों ने कहा कि प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से इस मुद्दे पर कई बार शिकायत की गयी है, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान सामने नहीं आया है.
अपने समस्या के निराकरण की आस में हैं ग्रामीण
पिछले सत्तर सालों से भी अधिक समय से इस गांव के लोग प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से इस समस्या के समाधान की उम्मीद लगाए हुए हैं, लेकिन आज तक कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई है. ग्रामीणों ने बताया कि हमने कई बार इस स्थिति की जानकारी दी है, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई प्रभावी कदम नहीं उठाये गये हैं. गांव में लगभग 500 घर हैं और 3000 की आबादी निवास करती है, जो छह महीने तक एक टापू पर तरह कैद रहती है. इस स्थिति ने गांववासियों की जीवनशैली को पूरी तरह से प्रभावित कर दिया है. सरकार से राहत की उम्मीद में ग्रामीण लगातार अपने अधिकारों की लड़ाईलड़ रहे हैं.