अंग्रेजों ने रामचरण लोहार, सहदेव हलवाई एवं मिश्री नौनिया को 10 वर्ष और 10 बेंत की सजा की थी मुकर्रर

आजादी के इन दीवानों को अंग्रेजी हुकूमत ने 10 वर्ष और 10 बेंत की सजा दी थी. देश के आजाद होने के बाद गरीबी की जिंदगी में ही रामचरण लोहार का देहांत हो गया तथा इनके परिजनों की हालत आज भी गंभीर बनी हुई है.

By Prabhat Khabar News Desk | August 9, 2024 9:40 PM

अर्जुन अरनव,

जमुई. देश अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में जुटा है. देश को आजादी दिलाने में ना जाने कितने लोगों ने अपनी जान दी है तब जाकर देश आजाद हुआ. देश के 77वें स्वतंत्रता दिवस पर आजादी के उन दीवानों को सलाम जिन्होंने जंग-ए-आजादी में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. वैसे तो देश को आजाद कराने में कितने लोगों ने अपनी जान की बाजी लगायी है कहा नहीं जा सकता. लेकिन जिले के बरहट प्रखंड क्षेत्र के दर्जनों युवक देश को आजाद कराने के लिए अपने घर-परिवार को छोड़ आजादी की जंग में कूद पड़े थे. इनमें कुछ वीर क्रांतिकारियों को कभी भुलाया नहीं जा सकता. इनमें मलयपुर के रामचरण लोहार, सहदेव हलवाई और मिश्री नोनिया प्रमुख हैं. आजादी के इन दीवानों को अंग्रेजी हुकूमत ने 10 वर्ष और 10 बेंत की सजा दी थी. देश के आजाद होने के बाद गरीबी की जिंदगी में ही रामचरण लोहार का देहांत हो गया तथा इनके परिजनों की हालत आज भी गंभीर बनी हुई है. जब 1942 में देश में क्रांति की लहर चल चुकी तो रामचरण लोहार, सहदेव हलवाई, कामा सिंह, महादेव सिंह, संत कुमार सिंह, कैलाश रावत, मोहन सिंह, मिश्री नोनिया ने मिलकर नवयुवकों की टोली बनाई और अंग्रेजी हुकूमत को ललकारते हुए भारत को आजाद कराने की कसम लेकर आजादी की जंग में कूद पड़े. इन युवकों ने रेलवे लाइन में तोड़- फोड़, आगजनी, तार काट कर अंग्रजों को हिला दिया था तब अंग्रेजी हुकूमत ने जमुई रेलवे स्टेशन पर अंग्रेजी फौज को उतारकर इन युवकों के मंसूबों को कुचलने का आदेश दिया.

जहां मौका मिला अंग्रेजों को ललकारते रहे

क्रांतिकारियों ने अपने घर को त्याग कर जहां मौका मिला बगावत का बिगूल फूंककर अंग्रेजों को ललकारते रहे. इनको पकड़ने के लिए अंग्रेजी फौज ने स्थानीय मुखबिर को पैसे का लालच दिया. तब रामचरण लोहार को उनके घर से, सहदेव हलवाई एवं मिश्री नोनिया को गिद्वेश्वर के जंगल से गिरफ्तार किया जा सका. इसके उपरांत एक-एक कर इनके सारे साथी भी मुखबिरी के कारण पकड़े जाते रहे. अंग्रेजी हुकूमत ने रामचरण लोहार, सहदेव हलवाई एवं मिश्री नौनिया को 10 वर्ष और 10 बेंत की सजा मुकर्रर की. आजादी के बाद भारत सरकार ने इन लोगों को ताम्र पत्र तथा प्रशस्ति पत्र देकर गौरवान्वित किया. लेकिन इनके परिवार आज भी दाने-दाने को मोहताज है. आर्थिक तंगी के कारण इनके परिवार के लोग असमय काल के गाल में समाते चले गये. आज इनके पौत्र अपना पुरानी पुश्तैनी धंधा लोहार का काम कर जीवन गुजर करने को मजबूर हैं. परिवार के सदस्य कहते हैं कि आर्थिक तंगी के कारण बच्चों को उचित शिक्षा भी नहीं दे पाये.

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