भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं मां पतसंडा

लोक आस्था का केंद्र रहा है गिद्धौर में स्थापित पतसंडा दुर्गा माता मंदिर

By Prabhat Khabar News Desk | September 29, 2024 9:44 PM

गिद्धौर. चंदेल राज की ओर से स्थापित पतसंडा दुर्गा माता का मंदिर अराधना, भक्ति व लोक आस्था का केंद्र रहा है. हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी शारदीय नवरात्र के अवसर पूजा को लेकर यहां जोर-शोर से तैयारी की जा रही है. शारदीय दुर्गा पूजा सह लक्ष्मी पूजा समिति के सभी सदस्य इसे लेकर तत्परता से लगे हैं. पूजा को लेकर प्रशासनिक पदाधिकारियों के द्वारा भी आवश्यक तैयारी की जा रही है. जानकारी के अनुसार श्रद्धालु भक्तों की आस्था का आलम है कि नवरात्र के पहले दिन से ही लोगों की भीड़ यहां उमड़ पड़ती है. अहले सुबह से ही लोग उलाय नदी में स्नान कर मंदिर तक दंड देते हैं और मां से सुख-शांति की कामना करते हैं. शाम होते ही आरती पूजन को लेकर महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ती है. गिद्धौर स्थित माता दुर्गा मंदिर तप, जप, साधना स्थल के रूप में भी विख्यात है.

गिद्धौर की है ऐतिहासिक पहचान

इस इलाके की ऐतिहासिक रूप से दो ही पहचान रही है, एक यहां की रियासत तो दूसरा यहां की दशहरा पूजा. इस अवसर पर देश-विदेश में रहने वाले लोग भी यहां आ जाते हैं माता का दर्शन-पूजन करते हैं. गिद्धौर के इस प्राचीन दुर्गा मंदिर को लेकर एक कहावत शादियों से प्रचलित रही है. काली है कलकत्ते की मां दुर्गा है पतसंडे की. ज्योतिषाचार्य डॉ बिभूति नाथ झा बताते हैं कि चंदेल राजवंश की ओर से स्थापित मां पतसंडा की महिमा अपरंपार है. जो भी भक्त सच्चे मन से माता की आराधना करते हैं उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है. यही कारण है कि यहां आने वाले भक्तों की संख्या में लाखों में रहती है. नवरात्र के अवसर पर रोज हजारों श्रद्धालु श्रद्धा व विश्वास के साथ मां की आराधना करते हैं.

1566 में चंदेल राजवंश ने कराया था निर्माण

गिद्धौर राज के आठवें वंशज पूरणमल ने 1566 में अलीगढ़ के स्थापत्य कला से जुड़े शिल्पकारों से मंदिर का निर्माण करवाया था. तब से इस मंदिर में मां दुर्गा की पूजा अर्चना रियासत की परंपरा के अनुरूप होती चली आ रही है. गिद्धौर महाराजा जयमंगल सिंह, महाराजा रावणेश्वर सिंह, महाराजा चंद्रचूड़ सिंह ने भी यहां की दशहरा को लोकप्रिय बनाये रखने में लगातार सहयोग किया था. इस रियासत के अंतिम उत्तराधिकारी महाराजा बहादुर प्रताप सिंह ने वर्ष 1996 में मंदिर को जनाश्रित घोषित कर दिया था, तब से शारदीय दुर्गा पूजा सह लक्ष्मी पूजा समिति की ओर से मां दुर्गा की अराधना विधि विधान व लोक परंपरा अनुरूप करायी जा रही है.

पुरोहित व पूजक का कराया जाता है अभिषेक

विद्वान पंडित महेश्वर चरण महाराज बताते हैं कि इस मंदिर में वही पुरोहित पूजा करा सकते हैं जिनका संपूर्ण मंत्राभिषेक हुआ हो, पूजक का भी अभिषेक अनिवार्य होता है. दशहरे में महाष्टमी तिथि को मां भगवती को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है. ऐसी मान्यता रहा है कि उलाय नदी में स्नान कर मां दुर्गा मंदिर में हरिवंश पुराण का श्रवण करने से निः संतान दंपती को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है.

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