ऋताम्बर कुमार सिंह, झाझा. धरातल की सीमा मानवों ने अपने स्वार्थ के लिए सुनिश्चित कर अलग-अलग भागों में विभक्त कर अलग-अलग नाम दे दिया है. किंतु इस सृष्टि में ऐसे भी जीव की उपस्थिति हैं, जो किसी धरती की सीमाओं को स्वीकार नहीं करता. वह तो प्रकृति को समझता है और अपने अनुकूल वातावरण की खोज करता रहता है. वह और कोई नहीं बल्कि नभ में उन्मुक्त विचरण करने वाला प्राणी पक्षी ही है. इस कड़ी जमुई जिले में अवस्थित नागी-नकटी डैम में अपने अनुकूल प्रकृति और परिस्थिति पाकर पक्षियों ने अपना प्रवास करना शुरू कर दिया है. यहां देश के साथ सीमा पार कई देशों के पक्षियों ने अपने कलरव से इस स्थल को गुलजार बना दिया है. वहीं नागी-नकटी पक्षी आश्रयणी में रामसर स्थल की घोषणा के बाद पहली बार एशियाई मध्य शीतकालीन जल पक्षी गणना का कार्य वन, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन विभाग के सहयोग से बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी व जाने-माने पक्षी विशेषज्ञ डॉ अरविंद कुमार मिश्रा की देखरेख में शुरू हुई. अपने टीम के साथ मौजूद डॉ मिश्रा लगातार पक्षियों की गिनती कर रहे हैं.
तीन हजार से अधिक करीब 42 प्रजातियों के पक्षियों को देखा गया
डॉ मिश्रा ने बताया कि मंगलवार को तीन हजार से अधिक पक्षियों करीब 42 प्रजाति के पक्षियों को देखा गया. इसमें लगभग 20 प्रजाति के पक्षियों का आगमन सुदूर देशों से हुआ है. इनमें राजहंस यानि बार हेडेड गूज भी शामिल हैं. अन्य प्रवासी पक्षियों में रेड क्रेस्टेड पोचार्ड यानि लालसर सबसे ज्यादा 14सौ की संख्या में देखे गये. उन्होंने बताया कि अपने देश में यदा-कदा दिखाई देने वाले 2 फाल्केटेड डक यानि काला सिंगुर भी देखे गये. अन्य प्रवासी पक्षियों में वीजन यानि छोटा लालसर, गडवाल यानि मैल, कॉमन पोचार्ड यानि बुरार, नोर्दर्न पिनटेल सींखपर, रूडी शेलडक यानि चकवा, यूरेशियन कूट यानि सरार, ग्रीन सैंडपाइपर यानि हरा रेटाल, टेमिंक्स स्टिंट छोटा पनलव्वा, कॉमन ग्रीन शैंक यानि टिमटिमा के अलावा ब्लैक हेडेड गल यानि छोटा धोमरा, ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीब यानि शिवा हंस, ब्लैक रेडस्टार्ट यानि थिरथिरा और ऑस्प्रे यानि मछलीमार जैसे पक्षी भी पाये गये. स्थानीय पक्षियों में एशियाई ओपेनबिल यानि घोंघिल, ब्लैक हेडेड आइबिस यानि सफ़ेद बुजा, लिटिल कॉर्मोरेंट यानि छोटा पनकौवा, ऐशी क्राउन स्पैरो लार्क यानि दबकचिरी, लेसर व्हिसलिंग डक यानि छोटी सिल्ली, कॉटन पिग्मी गूज यानि गिर्री आदि शामिल रहे. उन्होंने बताया कि एक राजहंस को गर्दन में बीओ5 की लाल रंग की कॉलर पहने हुए देखा गया.
मंगोलिया क्षेत्र के राजहंस ने दोबारा नागी-नकटी को बनाया अपना आश्रय स्थल
बीएनएचएस की शोधकर्ता वर्तिका पटेल ने बताया कि यह कॉलर बीएनएचएस के वैज्ञानिकों ने पिछले वर्ष नागी में ही पहनाई थी. सुदूर मंगोलिया जैसे क्षेत्र में रहने वाले इस राजहंस ने दोबारा नागी-नकटी को ही अपना आश्रय स्थल बनाया है, यह अत्यंत खुशी की बात है. उन्होंने पक्षी अवलोककों से यह भी अनुरोध किया कि जब भी किसी पक्षी के पैर में छल्ले या गर्दन या पीठ पर कोई कॉलर या ट्रांसमीटर दिखाई दे, तुरंत इसकी सूचना वन विभाग को दें. इस दल में डीएफओ तेजस जायसवाल, फॉरेस्टर अनीस कुमार, भागलपुर से आये प्रशांत कुमार, जमुई के अनुभवी बर्ड गाइड संदीप कुमार, मनीष कुमार यादव के साथ वनरक्षी सुधीर चौधरी , मनोरंजन कुमार आदि शामिल थे.
नागी में मिला ग्रेटर स्प्रेड ईगल यानी कालजंघा पक्षी, पक्षी विशेषज्ञों में खुशी
झाझा. नागी में पहली बार ग्रेटर स्प्रेड ईगल यानि कालजंघा पक्षी देखा गया. इसे देखते ही पक्षी विशेषज्ञों में खुशी की लहर दौड़ गई. पक्षी विशेषज्ञ डॉ अरविंद मिश्रा ने बताया कि इस तरह का पक्षी नागी में देखे जाने से न सिर्फ इस क्षेत्र का ऐतिहासिक महत्व बढ़ेगा, बल्कि आसपास के लोगों में अब उसे और भी अधिक सहेजकर रखने की जरूरत है, ताकि यहां आने वाले पक्षियों को किसी तरह की कोई समस्या का सामना न करना पड़े .डीएफओ तेजस जायसवाल ने स्थानीय लोगों व अन्य लोगों से अपील करते हुए कहा कि नागी में रहने वाले जीवों के साथ छेड़छाड़ ना करें. आने वाले दिनों में अब यह भारत ही नहीं विश्व की धरोहर बनने जा रहा है. जहां बिहार का पहला पक्षी म्यूजियम बनने जा रहा है. नागी पक्षी आश्रयणी के रामसर साइट में शामिल होने के बाद पहली बार पक्षी की गणना शुरू हुई है. इस पक्षी गणना का नेतृत्व बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य सह पक्षी विशेषज्ञ डॉ अरविंद मिश्रा, डीएफओ तेजस जायसवाल लगातार अपने दल के साथ कर रहे हैं. इसी दौरान बुधवार को 44 प्रजातियों के लगभग दो हजार पक्षियों की गिनती की गयी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है