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किऊल नदी में स्नान के बाद मिट्टी के चूल्हे पर बना कद्दू भात

नहाय-खाय के साथ ही मंगलवार से चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ प्रारंभ हो गया, जबकि बुधवार को छठव्रती खरना का प्रसाद बनायेंगी.

जमुई. नहाय-खाय के साथ ही मंगलवार से चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ प्रारंभ हो गया, जबकि बुधवार को छठव्रती खरना का प्रसाद बनायेंगी. छठ पर्व पर स्नान करने के लिए सुबह से ही महिलाएं नगर परिषद क्षेत्र के किऊल नदी तट पर स्थित पत्नेश्वर घाट, त्रिपुरारी घाट एवं हनुमान घाट पर छठ व्रतियों की भीड़ लगी रही. श्रद्धालु भक्तजन घर सहित पूजन स्थल को गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया. छठव्रती घरों की सफाई कर मिट्टी के चूल्हे एवं आम की लकड़ी से कद्दू की सब्जी, चना का दाल, भात बनाकर सूर्यदेव को अर्पण कर प्रसाद ग्रहण किया. महिलाएं चावल, गेहूं धोने और उसे सुखाने का काम कर रही थीं.

व्रत को लेकर प्रचलित हैं ये कथाएं

व्रत के पीछे कई मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि देवासुर लड़ाई में जब देवता हार गये तो देव माता अदिति ने पुत्र प्राप्ति के लिए देव के जंगलों में मैया छठी की पूजा अर्चना की थी. इस पूजा से खुश होकर छठी मैया ने आदित्य को पुत्र दिया और उसके बाद छठी मैया की देन इस पुत्र ने सभी देवतागण को जीत दिलायी तभी से मान्यता चली आ रही कि छठ मैया की पूजा-अर्चना करने से सभी दुखों का निवारण होता है. इसके अलावा एक और कथा प्रचलित है कि माता सीता ने भी भगवान सूर्य की आराधना की थी. इस कथा के अनुसार, भगवान श्रीराम और माता सीता जब 14 वर्ष का वनवास काट कर लौटे थे, तब माता सीता ने इस व्रत को किया था.

चार दिवसीय महापर्व छठ

नहाय खाय के दिन व्रती तालाब, नहर या नदी में स्नान करते हैं. इसके बाद लौकी आदि खाने की परंपरा है. छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन व्रती गुड़ की खीर बना कर खाते हैं. इसके बाद से 36 घंटे तक व्रती कुछ नहीं खाते हैं. उपवास के दौरान व्रती शुद्धता और पवित्रता का पूरा ख्याल रखते हैं. खरना के अगले दिन संध्या अर्घ यानी शाम को डूबते सूर्य को अर्घ दिया जाता है. साथ ही छठी मैया की पूजा होती है. सभी व्रती नदी किनारे फल-फूल और पकवान बना कर सूर्य के साथ छठी मैया की पूजा करते हैं. इस दौरान लोग छठी मैया की गीत भी गाते हैं. छठ पूजा का चौथे दिन भोर या ऊषा के अर्घ का होता है. इस दिन सूर्योदय से पहले नदी के किनारे जाते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ देते हैं.

छठ गीत से बन रहा भक्तिमय माहौल

आस्था के इस महापर्व को लेकर बज रहे छठ गीत से पूरा माहौल महक रहा है. इन गीतों में छठ से जुड़ी लोक कथाएं, पूजा के विधि-विधान व लोक परंपराएं भी समाई हैं जो कि छठ पर्व का एहसास कराती है. शहर के गलियों, दुकानों एवं घरों से ‘कांच ही बांस की बहंगिया, बहंगी लचकत जाए’ समां बांध रहे हैं. ””””केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेडराय…””””, ””””उगी है सुरुजदेव…””””, ””””हे छठी मइया तोहर महिमा अपार…”””” आदि पारंपरिक लोक गीतों से गिद्धौर का पूरा माहौल छठमय हो गया है.

शुद्ध घी से तैयार होता है व्रत का भोजन

छठ पूजा की शुरुआत चतुर्थी तिथि बुधवार से हो गयी है. इस दिन को नहाय-खाय कहा जाता है. व्रती पूरे दिन उपवास रहकर घाट पर जाते हैं और वहां पूजा-अर्चना करने के बाद शुद्ध घी में तैयार चना की दाल, कद्दू की सब्जी व चावल प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. लोहंडा-खरना लोहंडा और खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है. यह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है. इस दिन व्रती घाट पर जाकर पूजा-अर्चना करते हैं तथा संध्या काल में घी से चुपड़ी दोहत्थी रोटी, नया गुड़-चावल से बनी खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं और अन्य लोगों को भी कराते हैं. लोक आस्था के महापर्व के तीसरे दिन भगवान भास्कर को संध्या अर्घ दिया जाता है. व्रती के साथ महिलाएं अपने घर से छठ मइया व सूर्य देव का गीत गाते हुए घाट तक जाती हैं. घाट पर मेला जैसा दृश्य रहता है.

छठ पूजा का अंतिम दिन सप्तमी तिथि को सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ अर्पित किया जाता है. इसके उपरांत पूजा-अर्चना कर पारण कर व्रत को पूरा किया जाता है.

जो न कर सकें व्रत, वे इस नियम का पालन कर सकते हैं

– छठ व्रत ना रखने वाले लोग चार दिन सूर्य की पूजा करें

– सूर्य को तांबे के लोटे से गुड़ और जल से अर्घ दें, सूर्य को धूप-दीपक दिखाएं

– भगवान सूर्य को फल-मिठाई, नारियल, लाल सिन्दूर चढ़ाएं

– छठ पर्व के दौरान चारों दिन पूरी सफाई और सात्विक भाव रखें

– किसी छठ व्रतियों की सेवा और सहायता करें

– छठ के दोनों ही समय यानी प्रात व सायं सूर्य को अर्घ दें

– छठ का व्रत रखने वाले लोगों के चरण छूकर उनका आशीर्वाद लें

– अगर हर साल आप छठ व्रत को करते हैं और इस साल नहीं कर पा रहे हैं तो आप किसी दूसरे व्रती से भी अपना प्रसाद चढ़वा सकते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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