जमुई. जयपुर हाइकोर्ट परिसर में स्थापित महर्षि मनु की प्रतिमा को हटाने की मांग पर सवर्ण एकता मंच ने कड़ा विरोध जताया है. मंच ने इस मांग को तालिबानी मानसिकता का प्रतीक बताया है. मंच के नेताओं का मानना है कि महर्षि मनु और उनके सिद्धांत भारतीय संस्कृति और समाज के आधारभूत स्तंभ हैं, जिन्हें हटाने की मांग समाज में असहिष्णुता को बढ़ावा देने के समान है. सवर्ण एकता मंच के जिला संयोजक मंटू पांडेय ने प्रतिमा हटाने की मांग को खतरनाक बताते हुए कहा कि जिनका इतिहास बाबा साहेब से शुरू होकर चंद्रशेखर रावण पर समाप्त होता है, वे मनु, शत्रुपा और मनुस्मृति के महत्व को नहीं समझ सकते. उन्होंने कहा कि जब भी दुनिया में कोई न्यायसंगत और मानवतावादी विधान बनाया जायेगा, मनुस्मृति प्रासंगिक रहेगी. किताब जलाई जा सकती है, पर सिद्धांत नहीं. मंच के उपाध्यक्ष राजीव सिंह ने महर्षि मनु की व्यवस्थाओं का समर्थन करते हुए कहा कि मनु की व्यवस्था के कारण ही महर्षि वाल्मीकि और वेद व्यास, जो दलित कुल में जन्मे थे, अपने कृतित्व से संपूर्ण सनातन समाज के लिए पूजनीय और प्रेरणा के स्रोत बने. कोषाध्यक्ष दिनकर चौधरी ने कहा कि 1950 में भारतीय संविधान लागू होने के बाद हमारे पूर्वजों और प्रतिनिधियों ने इसे अंगीकृत किया, लेकिन इससे पहले के ग्रंथों और ऐतिहासिक पुरुषों पर अनुचित टिप्पणी करना समाज के भाईचारे के लिए हानिकारक है. उन्होंने सवाल किया कि मूर्तियां हटाकर क्या हम भारत को तालिबान या बांग्लादेश जैसा बनाना चाहते हैं. मीडिया प्रभारी अभिषेक श्रीवास्तव ने इस मांग को असहिष्णुता का प्रतीक बताते हुए कहा कि अपनी राय दूसरों पर थोपने की कोशिश व्यर्थ है, क्योंकि इससे आम जनता को कोई सरोकार नहीं है.
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