भक्त पूरणमल के कष्ट को देख महादेव सिमरिया में स्वयं प्रकट हुए थे बाबा धनेश्वर नाथ
यूं तो देवाधिदेव महादेव शिव के बिहार में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विख्यात जमुई जिला अंतर्गत सिकंदरा प्रखंड क्षेत्र के महादेव सिमरिया स्थित बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है.
सिकंदरा. यूं तो देवाधिदेव महादेव शिव के बिहार में कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, लेकिन स्वयंभू शिवलिंग के रूप में विख्यात जमुई जिला अंतर्गत सिकंदरा प्रखंड क्षेत्र के महादेव सिमरिया स्थित बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर बेहद ही महत्वपूर्ण माना जाता है. सदियों से भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करते आ रहे बाबा धनेश्वर नाथ के प्रति क्षेत्र के लोगों की अगाध श्रद्धा है. धान इस क्षेत्र का प्रमुख फसल है. इसलिए क्षेत्र के किसान आज भी धान की पहली बाली बाबा धनेश्वर नाथ को अर्पित करने की सदियों पुरानी परंपरा को निभाते चले आ रहे हैं. यूं तो पूरे वर्ष बाबा धनेश्वर नाथ की पूजा के लिए दूर दराज से श्रद्धालु आते रहते हैं, वहीं मनोकामना पूरी होने के बाद मुंडन संस्कार के लिये भी मंदिर परिसर सालों भर भक्तों से भरा रहता है. जबकि भगवान शिव को प्रिय सावन माह में जलाभिषेक को लेकर मंदिर परिसर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. सावन माह की सोमवारी पर पूरा क्षेत्र शिव भक्तों से पट जाता है. वहीं शिवरात्रि के अवसर पर भी बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर में मेला लगता है.
ऐतिहासिक महत्व
ऐसी मान्यता है कि यहां भगवान शिव द्वादश ज्योतिर्लिंग में शुमार देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ के कामना लिंग के ही उपलिंग स्वरूप में विराजमान हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर का निर्माण देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में किया था. वहीं महादेव सिमरिया स्थित अन्य मंदिरों का निर्माण 16वीं सदी में गिद्धौर के चंदेल वंशीय राजा पूरणमल ने करवाया था. राजा पूरणमल ने ही देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर का भी निर्माण करवाया था. वर्ष 2015 में धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल ने बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर पहुंच कर भगवान शिव की आराधना की थी. उस समय उन्होंने धनेश्वर नाथ मंदिर को बिहार का सबसे महत्वपूर्ण शिव मंदिर बताते हुए इसको देवघर के बाबा बैद्यनाथ के समान प्रभावशाली माना था और महादेव सिमरिया को बिहार का देवघर कहा था.
क्या है मान्यता
राजशाही के दौर में महादेव सिमरिया गिद्धौर राज रियासत के अंतर्गत आता था. गिद्धौर रियासत के आठवें राजा पूरणमल भगवान शिव के अनन्य भक्त थे. राजा पूरणमल प्रत्येक दिन देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ की पूजा करने जाते थे. देवघर में भगवान शिव के कामना लिंग की पूजा किये बिना वे भोजन ग्रहण नहीं करते थे. कहा जाता है कि एक बार अतिवृष्टि के कारण बाढ़ की स्थिति होने जाने की वजह से राजा पूरणमल पूजा करने देवघर नही जा सके. वे लगातार सात दिनों तक अपने संकल्प के अनुसार नदी किनारे भूखे प्यासे बैठे रहे. इसी दौरान एक रात राजा पूरणमल के स्वप्न में आकर भगवान शिव ने कहा कि अब तुम्हें मेरी पूजा के लिये और कष्ट उठाने की आवश्यकता नहीं है. अब मैं लिंगावतार लेकर तुम्हारे ही राज्य में विराजूंगा.
शिवलिंग की स्थापना व मंदिर निर्माण
कहा जाता है कि कुछ दिनों बाद ही धनवे गांव के समीप धनेश्वर नाम के एक कुम्हार को मिट्टी खोदने के क्रम में एक शिवलिंग के आकार का पत्थर मिला. जिसके बाद उसने पत्थर को कुछ दूर हटा कर रख दिया. दूसरे दिन पुनः मिट्टी खोदने के दौरान धनेश्वर कुम्हार का कुदाल उसी शिवलिंगनुमा पत्थर से टकरा गया. उसने फिर पत्थर को वहां से दूर हटा दिया. कई दिनों तक यह क्रम चलने के बाद एक दिन धनेश्वर कुम्हार ने परेशान होकर वहां से थोड़ी दूरी पर एक गड्ढा खोद कर शिवलिंग को उसी गड्ढे में दबा दिया. कहा जाता है कि वो रात महारात्रि के समान बहुत ही लंबी रात साबित हुई और सुबह होते ही लोग भगवान शिव के चमत्कार को देख दंग रह गए थे. धनेश्वर कुम्हार ने जिस स्थान पर शिवलिंग को गड्ढे में दबाया था वहां देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर के स्वरूप के एक अद्भुत मंदिर का निर्माण हो चुका था. अद्भुत शिवलिंग के प्रकट होने व एक ही रात में चमत्कारी मंदिर के निर्माण की सूचना राजा पूरणमल तक पहुंची. इस अद्भुत चमत्कार की जानकारी पाते ही राजा पूरणमल ने महादेव सिमरिया पहुंच कर अन्य मंदिर, कुआं व शिवगंगा तालाब का निर्माण करवाया. मंदिर निर्माण के उपरांत राजा पूरणमल ने मंदिर की देखरेख धनेश्वर कुम्हार को सौंप दी. तब से आज तक धनेश्वर कुम्हार के वंशज ही इस मंदिर के पुजारी बनते आ रहे हैं.
कैसे पहुंचें मंदिर
एनएच 333ए के जमुई-सिकंदरा मुख्यमार्ग पर स्थित यह मंदिर जिला मुख्यालय व प्रखंड मुख्यालय से 11 किलोमीटर की समान दूरी पर स्थित है. पटना कोलकाता रेलखंड पर स्थित जमुई स्टेशन पर उतर कर बस व ऑटो के माध्यम से बाबा धनेश्वर नाथ मंदिर पहुंचा जा सकता है. जमुई रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 18 किलोमीटर है. वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित होने के कारण राज्य के किसी भी हिस्से से सड़क मार्ग द्वारा मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है.
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