श्री कृष्ण के महारास लीला प्रसंग को सुन भाव-विह्वल हुए श्रोता

प्रखंड के उरवा गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन श्रद्धालुओं ने भगवान श्रीकृष्ण की महारास लीला का दिव्य वर्णन का श्रवण किया.

By Prabhat Khabar News Desk | November 13, 2024 7:38 PM

चकाई. प्रखंड के उरवा गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन श्रद्धालुओं ने भगवान श्रीकृष्ण की महारास लीला का दिव्य वर्णन सुना. कथावाचक अनादि महराज जी ने अपने प्रवचन में श्री कृष्ण के रास लीला के गूढ़ अर्थों को स्पष्ट करते हुए भक्तों को अध्यात्मिक मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी. महाराज ने बताया कि शरद पूर्णिमा की रात भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया. इस अवसर पर भगवान ने अपनी दिव्य बासुरी बजाई, जिसका स्वर केवल गोपियों ने सुना. जब गोपियां बासुरी की आवाज सुनकर अपने कार्यों को छोड़कर भगवान के पास पहुंची और रास लीला शुरू हुई, तब गोपियों को सौंदर्य का अभिमान हो गया. इस कारण भगवान श्री कृष्ण अंतर्ध्यान हो गए. तब गोपियां भगवान के दर्शन के लिए गोपी गीत गाने लगीं और रोने लगीं, जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण पुनः प्रकट हुए और रास लीला की. उन्होंने आगे बताया कि रास और महारास के बीच अंतर है. रास वह स्थिति है जब भक्त भगवान से मिलने की इच्छा रखते हैं, जबकि महारास उस स्थिति को कहा जाता है जब भगवान स्वयं अपने भक्तों से मिलने के लिए आते हैं. महाराज जी ने इसे जीवात्मा और परमात्मा के मिलन के रूप में समझाया. कथा के दौरान महराज जी ने कंस के अत्याचारों का भी जिक्र किया. उन्होंने बताया कि कैसे कंस ने भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए अक्रूर जी को गोकुल भेजा, लेकिन जब भगवान श्री कृष्ण मथुरा की ओर प्रस्थान करने लगे, तो गोपियां अत्यधिक शोकित हो उठीं. भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह फिर कभी लौटकर आएंगे, लेकिन वह कभी नहीं लौटे. मथुरा पहुंचकर भगवान ने कंस का वध किया और उसे परमगति प्रदान की. कथा के अंत में भक्तों ने दिव्य झांकी का पूजन-अर्चन कर पुण्य लाभ प्राप्त किया. आयोजकों ने आगामी दिन कथा के विश्राम दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की और सभी भक्तों से अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होने की अपील की.

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