भगवान श्री कृष्ण ने दो मुट्ठी चावल में सुदामा को प्रदान की सुदामा नगरी : अनादि जी महराज
प्रखंड के उरवा गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिवस को कथा का वर्णन करते हुए अनादि जी महराज ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण में गरीब-अमीर, छोटे-बड़े का कोई भेद भाव नही.
चकाई. प्रखंड के उरवा गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिवस को कथा का वर्णन करते हुए अनादि जी महराज ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण में गरीब-अमीर, छोटे-बड़े का कोई भेद भाव नही. उन्होंने कृष्ण-सुदामा की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि सुदामा जी भगवान कृष्ण के बचपन के मित्र थे. एक ही गुरुकुल में विद्या अध्ययन किया. विद्या अध्ययन के दौरान एक दिन जंगल में लकड़ी काटने के दौरान गुरु मां द्वारा दिए गये चने चबेना को बारिश के दौरान कृष्ण के हिस्से का चना भी सुदामा उनसे छुपाकर खा गये लेकिन अपने मित्र श्रीकृष्ण को नहीं खाने दिये. जिसके कारण सुदामा जी अति निर्धन हो गये. वहीं सुदामा जी भगवान श्रीकृष्ण के मित्र होते हुए भी उनसे कभी कुछ नहीं मांगा जबकि वे जानते थे कि उनके बचपन के मित्र द्वारिकाधीश हैं. मांगने पर पल भर में ही उनकी गरीबी दूर कर सकते हैं लेकिन स्वाभिमानी होने के कारण उन्होंने ऐसा नही किया. परंतु पत्नी के बार-बार कहने पर चार घरों से चार मुट्ठी चावल ले कर भगवान का दर्शन करने के लिए वे पैदल ही मित्र से मिलने द्वारिका जा पहुंचे. जैसे ही द्वारिकाधीश को पता चला कि हमारा मित्र सुदामा हमसे मिलने के लिए आया है तो बिना चरण पादुका पहने और बिना अंग वस्त्र के दौड़ कर उनसे मिलने जा पहुंचे और उन्हें अपने गले लगाकर अपने आंसुओं से अपने मित्र के चरण धोएं. फिर उनका पूरा आदर सत्कार कर उनके लाये तंदुल के मोटरी में बंधे चावल को खाया. चावल खाते ही दीन सुदामा का उद्धार हो गया. बिन मांगे ही सुदामा का घर महल में तब्दील हो गया. धन धन्य से घर भर गया. ऐसे कृपालु और भक्त वत्सल हैं प्रभु. उनके नजर में ऊंच नीच का कोई भेद नही. जो उन्हें सच्चे मन से तथा भक्ति से उनकी आराधना करता है उसका बेड़ा पार हो जाता है. यज्ञ का आयोजन सुभाष राय एवं प्रमोद राय की मां सुनैना देवी के द्वारा किया गया. मौके पर मिथलेश राय, रोहित राय, पंचानन राय, तारणी चौधरी, विजय सिन्हा, पप्पू ठाकुर, पप्पू राय, देवानंद राय, परमानंद राय, सत्यम राय, केशव राय, महादेव राय सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु लोग मौजूद थे.
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