सरौन. शिव केवल नाम के नहीं अपितु काम के गुरु हैं. शिव के ओघड़दानी स्वरूप से धन, धान्य, संतान, संपदा आदि प्राप्त करने का व्यापक प्रचलन है, तो उनके गुरु स्वरूप से ज्ञान क्यों नहीं प्राप्त किया जा सकता. यह बातें शिव शिष्य दीदी बरखा आनंद ने मंगलवार को चकाई प्रखंड अंतर्गत कपरीडीह मैदान में आयोजित विराट शिव गुरु महोत्सव में भक्तों को संबोधित करते हुए कही. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि किसी संपत्ति या संपदा का उपयोग ज्ञान के अभाव में घातक हो सकता है. शिव जगतगुरु हैं. जगत का एक-एक व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, संप्रदाय, लिंग का हो शिव को अपना गुरु बना सकता है. शिव का शिष्य होने के लिए किसी पारंपरिक औपचारिकता दीक्षा की आवश्यकता नहीं है. केवल यह विचार कि मेरे गुरु शिव हैं. इसी विचार को स्थायी होना हमें शिव का शिष्य बनाता है. मालूम हो कि यह कार्यक्रम शिव शिष्य परिवार जमुई के तत्वावधान में आयोजित किया गया. दीदी बरखा आनंद ने आगे कहा कि आप सभी को ज्ञात हो कि शिव शिष्य साहब श्रीहरिंद्रानंद जी ने सन 1974 में शिव को अपना गुरु माना. 1980 के दशक तक आते-आते शिव की शिष्यता की अवधारणा भारत भूखंड के विभिन्न स्थानों पर व्यापक तौर पर फैलती चली गयी. शिव शिष्य साहब श्री हरिंद्रानंद जी और उनकी धर्मपत्नी दीदी नीलम आनंद जी ने जाति, धर्म, लिंग, वर्ण, संप्रदाय आदि से परे मानव मात्र को भगवान शिव के गुरु स्वरूप से जुड़ने का आह्वान किया गया.
संसार का प्रत्येक व्यक्ति शिव का शिष्य हो सकता हैं
दीदी बरखा आनंद ने कहा कि यह अवधारणा पूर्णतः आध्यात्मिक है, जो भगवान शिव के गुरु स्वरूप से एक-एक व्यक्ति के जुड़ाव से संबंधित है. उन्होंने कहा कि शिव गुरु हैं और संसार का एक-एक व्यक्ति उनका शिष्य हो सकता है, इसी प्रयोजन से शिव के शिष्य एवं शिष्याएं अपने सभी आयोजन करते हैं. शिव गुरु हैं यह कथ्य बहुत पुराना है. भारत भूखंड के अधिकांश लोग इस बात को जानते हैं कि भगवान शिव गुरु हैं, आदि गुरु एवं जगतगुरु हैं. हमारे साधुओं, शास्त्रों और मनीषियों ने महेश्वर शिव को आदि गुरु, परम गुरु आदि विभिन्न उपाधियों से विभूषित किया गया है.
श्रद्धालुओं को बताये तीन सूत्र
दीदी बरखा आनंद ने कार्यक्रम में भाग लेने आये श्रद्धालुओं को शिव के शिष्य होने के लिए तीन सूत्र बताये. पहला सूत्र अपने गुरु शिव से मन ही मन यह कहे कि हे शिव आप मेरे गुरु हैं. मैं आपका शिष्य हूं, मुझ शिष्य पर दया कीजिये. दूसरा सूत्र, सबको सुनाना और समझाना है कि शिव गुरु हैं, ताकि दूसरे लोग भी शिव को अपना गुरु बनाये. तीसरा सूत्र, अपने गुरु शिव को मन ही मन प्रणाम करना है. इच्छा हो तो नमः शिवाय मंत्र से प्रणाम किया जा सकता है. इन तीनों सूत्रों के अलावा किसी भी अंधविश्वास या आडंबर का कोई स्थान बिल्कुल नहीं है. वही इससे पहले मुख्य वक्ता शिव शिष्य दीदी बरखा आनंद को चंदन सिंह फाउंडेशन प्रमुख चंदन सिंह ने बुके देकर सम्मानित किया. शिव गुरु महोत्सव में बिहार झारखंड से हजारों की श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी थी. कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए सकेंद्र यादव, पूर्व मुखिया सुनील राम, अरुण साव, मनोहर सिंह, रणधीर सिंह, उपेंद्र राम सहित अन्य शिव शिष्यों ने अहम भूमिका निभाई.
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