पटना: जेपी आज इसलिए प्रासंगिक हैं और हमेशा प्रासंगिक रहेंगे, क्योंकि उन्होंने सत्ता में हिस्सेदारी के लिए राजनीति नहीं की, बल्कि अपने विचारों के लिए की. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जेपी के लिए लिखते है कि जयप्रकाश वह नाम जिसे, इतिहास समादर देता है, बढ़ कर जिसके पदचिह्नों को उर पर अंकित कर लेता है. ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है…’ जेपी के आंदोलन की हुंकार बन गयी.
1. आधुनिक लोकतंत्र की सफलता नैतिक साधनों से ही संभव हो सकती हैं.
2. जब तक जनता में आध्यात्मिक गुणों का विकास नहीं होगा, तब तक इसमें संदेह ही रहेगा कि लोकतंत्र शासन सफल हो सकता हैं.
3. लोकतंत्र के ये आधार है– सत्य, प्रेम, सहयोग, अहिंसा, कर्तव्य परायणता, उत्तरदायित्व एवं सह-अस्तित्व की भावना.
4. लोकतंत्र तभी सफल हो सकता हैं, जब स्थानीय संस्थाओं, जनता के विचारों, इच्छाओं और आवश्यकताओं के अनुकूल हो.
5. सच्चे लोकतंत्र की स्थापना के लिए नागरिकों के हितों में समानता होनी आवश्यक है. हितों की समानता के आधार पर ही राज्य विहीन तथा वर्ग विहीन समाज की स्थापना संभव हैं.
6. हम वास्तविक लोकतंत्र शासन पद्धित का अनुभव तभी कर सकते हैं, जब विश्व-बंधुत्व की भावना का विकास हो जाए.
7. दल विहीन लोकतंत्र की स्थापना होनी चाहिए, क्योंकि राजनीतिक दलों के कारण लोकतंत्र भ्रष्ट हो चुका हैं और उसका विकास अवरुद्ध हो गया हैं.
8. वयस्क मताधिकार लोकतंत्र के लिए उपयुक्त नहीं हैं. भारतीय लोकतंत्र ग्राम समाज की राजनीतिक इकाइयों पर आधारित होना चाहिए.
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जयप्रकाश नारायण आधुनिक लोकतंत्र की नौकरशाही को ब्रिटिश कालीन राजतंत्र के अनुरूप समझते थे.
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मेरी रुचि सत्ता के कब्जे में नहीं, बल्कि लोगों द्वारा सत्ता के नियंत्रण में है.
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एक हिंसक क्रांति हमेशा किसी न किसी तरह की तानाशाही लेकर आई है… क्रांति के बाद, धीरे-धीरे एक नया विशेषाधिकार प्राप्त शासकों एवं शोषकों का वर्ग खड़ा हो जाता है, लोग एक बार फिर जिसके अधीन हो जाते हैं.
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ये (साम्यवाद) इस सवाल का जवाब नहीं देता: कोई आदमी अच्छा क्यों हो?
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अगर आप सचमुच स्वतंत्रता, स्वाधीनता की परवाह करते हैं, तो बिना राजनीति के कोई लोकतंत्र या उदार संस्था नहीं हो सकती. राजनीति के रोग का सही मारक और अधिक और बेहतर राजनीति ही हो सकती है. राजनीति का अपवर्जन नहीं.
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सच्ची राजनीति मानवीय प्रसन्नता को बढ़ावा देने बारे में हैं.