पटना. आजादी के पहले और आजादी के बाद भी जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने बड़ी भूमिका अदा की. चाहे वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम हो या आजाद भारत में किया गया 1974 का छात्र आंदोलन. पहले ने देश की आजादी में योगदान दिया और दूसरे आंदोलन ने तो लोकतांत्रिक परंपराओं के पुनर्स्थापन के लिए सत्ता ही पलट दी. 11अक्टूबर को जेपी जयंती है. उनका बिहार से नाता रहा है. इसलिए उनकी कई यादें भी इस धरती से जुड़ी हुई है. वहीं, जॉर्ज फर्नांडीस से भी उनका पुराना नाता रहा. यहां उनसे जुड़ी एक प्रसंग पर बात करेंगे.
इमरजेंसी खत्म होने के बाद 1977 में आम चुनाव की घोषणा हुई. अविभाजित बिहार में मुजफ्फरपुर समाजवादियों का गढ़ रहा था. कुढ़नी इलाके में जय प्रकाश नारायण ने नक्सल आंदोलन को लेकर कई सामाजिक प्रयोग किये थे. ऐसे में जय प्रकाश नारायण ने जॉर्ज को मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ने का निर्देश दिया. जेपी की सलाह मान कर जेल से ही जॉर्ज ने मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से अपना नामांकन का पर्चा दाखिल किया.
इस चुनाव के दौरान समाजवादियों ने बहुत संघर्ष किया. कहा जाता है कि मुजफ्फरपुर में 1977 के लोकसभा चुनाव में जॉर्ज फर्नांडीस की जीत के लिए युवाओं ने जूता पॉलिश भी किया था. चुनाव के लिए खर्च जुटाने को युवाओं की टोली जूता पॉलिश करने से भी बाज नहीं आयी थी. ये जेपी आंदोलन का ही जूनून था.
इमरजेंसी के तत्काल बाद हुए आम चुनाव में सक्रिय रहे कार्यकर्ता बताते हैं कि जेपी आंदोलन के समय के समाजवादी नेताओं ने आपसी समन्वय से ऐसे हालात पैदा कर दिये थे, जिससे मतदान के दिन क्षेत्र के सभी गांवों से संपर्क जुड़ गया था.
किस बूथ पर कितने वोट पड़े, इसकी वास्तविक संख्या भी घंटे भर में पार्टी के चुनाव कार्यालय तक पहुंच रही थी. चुनाव परिणाम जब आया, तो जॉर्ज भारी वोट से जीत गये. उन्हें कुल 396687 यानी कुल पड़े वोट का 87 प्रतिशत मिला था. कांग्रेस के उम्मीदवार नीतेश्वर प्रसाद सिंह को महज 62 हजार वोट ही मिले. वहीं, जार्ज डाइनामाइट केस में दिल्ली के तिहाड़ जेल में कैद थे. उन्हें जंजीरों में जकड़ कर रखा गया था. बता दें कि इसके चुनाव प्रचार के लिए आयी गाड़ियों पर जॉर्ज के हाथों में बेडियां लगे पोस्टर टांगे गये.