Jayaprakash Narayan के नेतृत्व में बिहार का छात्र आंदोलन ने देश में बड़े बदलाव किये. जेपी आंदोलन को दबाने के लिए आपातकाल के दौरान बर्बर तरीकों का इस्तेमाल किया गया. मगर युवाओं ने इस दौरान गजब का साहस दिखाया. इस दौरान कई मजेदार किस्से भी हुए. भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव भी इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे. वो बताते हैं कि 18 मार्च के बाद सरकार और पुलिस प्रशासन छात्रों को लेकर काफी सख्त हो गयी. मगर आंदोलन जारी रहा. मेरी शादी 2 मई को होनी थी. इस दौरान एक विरोध में मैं पटना सिटी कोर्ट के गेट पर चढ़कर भाषण दे रहा था. ये मेरी होने वाली सास ने देख लिया. उन्होंने कहा कि लड़का अच्छा नहीं है और शादी कट गयी. हालांकि, शादी फिर भी दो मई को दूसरी लड़की से हुई.
आपातकाल में अखबारों सेंसर किया जाता था. सरकार के विरोध में खबर छपती नहीं थी. नंदकिशोर यादव बताते हैं कि कई अखबारों ने अपना पूरा संपादकीय पेज काला कर दिया. ऐसे में संगठन ने तय किया कि अखबार निकाला जाएगा. इसका लक्ष्य था कि आंदोलन का समाचार लोगों तक पहुंच जाए. इसकी जिम्मेदारी विद्यार्थी परिषद के कोषाध्यक्ष अशोक सिंह, श्याम जी सहाय और मुझे मिली. अखबार का नाम लोकवाणी रखा गया. मगर सबसे बड़ी समस्या थी कि अखबार छापा कहां जाए. उपर से पुलिस का खतरा भी रहता था. सबसे पहले हमने महेंद्रू में एक प्रेस देखा, वहां अखबार छपना शुरू हुआ. छूपकर अखबार कंपोज करने के लिए हमने आलमगंज थाना के ठीक बगल में पंचानंद विश्वकर्मा के घर में ठिकाना बनाया. थाने के ठीक बगल में ऐसा काम होगा कोई सोच भी नहीं सकता था. हमने पूरे आपातकाल अखबार निकाला.
नंद किशोर यादव ने बताया कि आंदोलनकारियों के साथ पुलिस सख्त और क्रूर व्यवहार करती थी. कई लोगों को अकारण जेल में डाल दिया गया. कई लोगों की मौत जेल में ही हो गयी. नेता का पता पूछने के लिए कई लोगों की खूब पिटाई की गयी. हालांकि, बाद में सरकार को झूकना पड़ा. आपातकाल खत्म हुई.