Jayaprakash Narayan के नेतृत्व में शुरू हुए जेपी आंदोलन ने केंद्र में बैठी इंदिरा गांधी की कुर्सी तक को हिला दिया. इस आंदोलन की शुरुआत बिहार से हुई. आंदोलन का हिस्सा रहे समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी बताते हैं कि जिस वक्त देश में जेपी का आंदोलन हुआ, उस वक्त पूरी दुनिया में छात्रों के आंदोलन चल रहे थे. बिहार में शुरू हुए इस आंदोलन की पृष्ठ भूमि गुजरात से जुड़ी है. वहां के इंजीनियरिंग कॉलेज में मेस का चार्ज बढ़ा दिया गया. जिसका छात्रों ने विरोध किया. ये आंदोलन इतना व्यापक हुआ कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार को इस्तीफा देना पड़ा. इसे देखते हुए बिहार में भी छात्रों की सभा का आयोजन तब के छात्र संघ के अध्यक्ष लालू यादव के द्वारा पटना विवि में आयोजित किया गया. इसमें बिहार की जनता और छात्रों की समस्या को लेकर सरकार को घेरने का प्लान बनाया गया.
समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी बताते हैं कि 18 मार्च 1974 को बिहार विधानसभा के बजट सत्र का पहला दिन था. इसी दिन छात्रों ने बिहार विधानसभा को घेरने के लिए मार्च निकाला. इस वक्त तक आंदोलन जेपी आंदोलन नहीं था, छात्र आंदोलन था. छात्रों का ये मार्च हिंसक हो गया. सर्चलाइट प्रेस, नूतन पटना नगर निगम, राजस्थान होटल आदि को आग के हवाले कर दिया गया. कई जगह गोलियां चलीं. कई लोग इस गोलीकांड में घायल हुए. कई लोगों ने अपनी जान गवाई. बाद में, छात्र युवा नौजवानों ने ये देखा कि आंदोलन अब उनसे चलने वाला नहीं, तो जयप्रकाश नारायण से इसका नेतृत्व करने की अपील की गयी.
जयप्रकाश नारायण वेल्लूर से इलाज कराकर पटना आए थे. सभी छात्र नेता उनसे मिलने गए. उन्होंने जेपी से अनुरोध किया कि वो इस छात्र आंदोलन का नेतृत्व करें. चूकि, ये आंदोलन पहले हिंसक हो चूका था, ऐसे में जेपी ने सबसे पहले आंदोलन के नेतृत्व के बदले दो शर्त रखी. पहली शर्त थी- आंदोलन अहिंसक होगा. दूसरी शर्त थी- राय-सलाह सबकी होगी मगर जो वो कहेंगे सभी उनकी बात मानेंगे. सभी ने जेपी को अपना समर्थन दिया. यहां से छात्रों का आंदोलन जेपी आंदोलन बन गया.
आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथ में लेने के बाद सबसे पहले जयप्रकाश नारायण ने मौन जुलूस का आयोजन किया. इस जुलूस में सभी के हाथ पीछे थे. मुंह पर पट्टी बंधी थी. इसमें दिनकर और फणीश्वर नाथ रेणु समेत उस वक्त के कई चिंतक और विचारक शामिल थे. इस जुलूस में लोगों की संख्या सीमित थी, मगर ऐसा लग रहा था जैसे पूरा पटना शामिल हो.