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Jayaprakash Narayan: सत्ता से दूर रहकर नायक से लोकनायक बने जय प्रकाश नारायण

भारतीय राजनीति में जय प्रकाश नारायण एक मात्र ऐसे नायक हुए जो न कभी सत्ता का मोह पाला और न कभी किसी पद की जिम्मेदारी ली. गांधी भी कांग्रेस के अध्यक्ष बने, लेकिन जेपी कांग्रेस में शामिल तो हुए लेकिन संगठन में कोई जिम्मेदारी नहीं ली.

भारतीय राजनीति में जय प्रकाश नारायण एक मात्र ऐसे नायक हुए जो न कभी सत्ता का मोह पाला और न कभी किसी पद की जिम्मेदारी ली. गांधी भी कांग्रेस के अध्यक्ष बने, लेकिन जेपी कांग्रेस में शामिल तो हुए लेकिन संगठन में कोई जिम्मेदारी नहीं ली. यहां तक कि जब नेहरू ने उन्हें संविधानसभा में आने का आग्रह किया, तो उन्होंने इस प्रस्ताव को भी नामंजूर करते हुए चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. उन्हें समाजसेवा के लिए 1965 में मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया. लोकनायक के “संपूर्ण क्रांति आंदोलन” के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी. जेपी को 1999 में भारत सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया.

मार्क्सवाद से गांधीवाद तक का तय किया सफर

जयप्रकाश नारायण यानी जेपी का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार में सारन के सिताबदियारा में हुआ था. पटना से शुरुआती पढ़ाई के बाद जय प्रकाश अमेरिका में पढ़ाई की. वहां वामपंथ से वो प्रभावित हुए. 1929 में स्वदेश लौटे और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हुए. तब वे मार्क्सवादी थे. सशस्त्र क्रांति से अंग्रेजों को भगाना चाहते थे. भारत के तत्कालीन वायसराय माउंटबेटन ने अपने कई दस्तावेजों में जेपी को लेकर टिप्पणी की है. उनके क्रांतिकारी विचार से अंग्रेज भी सहमे हुए थे. हालांकि महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने उनका नजरिया बदला. आजादी के वक्त मार्क्सवाद से प्रभावित जेपी 1950 आते-आते समाजवादी बन गये. वैसे जीवन के अंतिम दिनों में वो पूरी तरह गांधीवादी बन गये.

हमेशा सत्ता और पद से दूर रहे जेपी

अपने कालखंड में जेपी भारत में हुए हर प्रकार के आंदोलन का हिस्सा बने. बिना किसी पद की इच्छा किये जेपी विभिन्न संगठन और आंदोलन से जुड़े रहे. नेहरू की सलाह पर कांग्रेस से जुड़े, लेकिन संविधानसभा के लिए हुए चुनाव में हिस्सा नहीं लिया. इतना ही नहीं, आजादी के बाद जेपी को सरकार में आने का न्योता भी दिया गया, लेकिन जेपी इनकार कर गये. नेहरू चाहते थे कि जेपी कैबिनेट में आकर जिम्मेदारी लें, लेकिन जेपी सत्ता से दूर ही रहे.

हर आंदोलन का हिस्सा बने जेपी

आजादी के बाद जय प्रकाश नारायण आचार्य विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन से जुड़े. भूदान का समर्थन किया. जेपी ने विनोबा के साथ मिलकर ग्रामीण भारत में आंदोलन को आगे बढ़ाया. जेपी ने 1950 के दशक में राज्य व्यवस्था की पुनर्रचना नाम से किताब लिखी। इसके बाद ही नेहरू ने मेहता आयोग बनाया और विकेंद्रीकरण पर काम किया।

संपूर्ण क्रांति से दिया दूसरी आजादी का नारा

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जेपी ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ दूसरी आजादी का नारा दिया. अदालत के फैसले के बाद जेपी ने इंदिरा से इस्तीफा मांगा. इस्तीफा नहीं देने पर उन्होंने इंदिरा के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया. उन्होंने इसे संपूर्ण क्रांति नाम दिया. यह आंदोलन इतना प्रभावी हुआ कि इंदिरा को देश में आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी. जेपी के साथ ही अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करना पड़ा.

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