पटना. जेपी का निधन 8 अक्टूबर 1979 को हुआ, लेकिन इस तारीख से करीब छह माह पहले ही उनकी मृत्यु की अफवाह फैली थी. 23 मार्च को आकाशवाणी ने उनके निधन की खबर दी थी. संसद में उन्हें श्रद्धांजलि देने के बाद कार्यवाही स्थगित हुई. शहर-शहर जेपी के समर्थकों ने उन्हें श्रद्धांजलि देने का काम शुरू कर दिया. पटना में भीड़ चरखा समिति की ओर आने लगी. इस बीच, जेपी के जिंदा होने की बात जब लोगों के बीच पहुंची तो एक ओर जहां लोगों ने राहत की सांस ली, वहीं इस पूरे मामले में सरकार की उस वक्त खूब भद्द पिटी थी.
जेपी के चिकित्सक रहे डॉ सीपी ठाकुर पत्रकारों से बात करते हुए कहते हैं कि जब 8 अक्टूबर को वाकई जेपी नहीं रहे, तो सबने मुझसे कहा कि आप लिखकर दीजिए, तभी मृत्यु की घोषणा होगी. यही हुआ. दरअसल, कोई भी 23 मार्च वाली गलती दोहराना नहीं चाहता था. मैं भी नहीं. इसलिए लिख कर देने से पहले मैंने उनकी पूरी बॉडी चेक की. छाती दबाकर देखा. सांस चलाने की भरपूर कोशिश की. जब मैं उन्हें जिंदा साबित करने में नाकामयाब रहा फिर डेथ सार्टिफिकेट साइन कर दिया.
डॉ सीपी ठाकुर कहते हैं कि चार बजे सुबह में उनकी तबीयत खराब होने की खबर आयी थी. मैंने तुरंत जाकर उनका चेकअप किया, पल्स नहीं था. शायद हृदयगति रूक गई थी. मैंने वहां कुछ और कहे बस इतना कहा कि घर से आता हूं. तब फाइनल बात कहूंगा. इसी बीच उनके निधन की खबर लीक हो गयी. मैंने डीएम, एसपी को फोन किया. दोनों तुरंत आये. पार्थिव शरीर को श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में रखने पर सहमति बनी.
जेपी और उनके कुछ करीबी लोगों को संदेह था कि उनको मारने की साजिश हुई, इसका तरीका ऐसा रखा गया कि बिल्कुल शक न हो, सबकुछ स्वाभाविक लगे. लेकिन मैंने यह बात कभी नहीं मानी. एकाध मौके पर जब ऐसी बात आई भी, तो मैंने जेपी से यही कहा कि कोई डॉक्टर अपने मरीज और वह भी आपके साथ ऐसा कर ही नहीं सकता. अंततः ये लाइनें खारिज हुईं.