औरंगाबाद: बिहार में जातीय जनगणना होने वाला है. इसको लेकर राजनीतिक बयानबाजी शुरू है. जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा औरंगाबाद पहुंचे. वहां उन्होंने कहा कि बिहार सरकार जातीय जनगणना करा रही है. जातीय जनगणना सांवैधानिक रूप से मान्य नहीं होगा. इसके माध्यम से सरकार को आंकड़ा मिल जाएगा.
उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि अभी तक जो भी जातीय जनगणना का कार्य हो रहा है. वह 1931 की जनगणना के आंकड़े के आधार पर किया जा रहा है. कोर्ट ने कई बार कहा कि पिछड़ापन के मापदंड और आधार सरकार आंकड़े के आधार पर ही कर सकती है. इस आंकड़े के बिना कोई उपाय नहीं है. जातीय जनगणना कराना केंद्र सरकार की जवाबदेही है.
संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा कि भले ही तत्कालिक तौर पर राज्य में आयोग बनाया गया है. मगर यह अस्थाई निदान है. यदि पंचायत चुनाव के समय ही यह कार्य हो गया रहता तो आज नगर निकाय चुनाव के समय ऐसी स्थिति नहीं उत्पन्न नहीं हुई होती. स्थाई निदान के लिए जातीय जनगणना कराना जरूरी है और केंद्र सरकार इससे दूर भाग रही है. जब तक केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना नहीं कराई जाएगी, तब तक ऐसी समस्याएं उत्पन्न होती रहेगी.
वहीं, उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा की मंशा जातीय जनगणना कराने की नहीं है. जबकि जदयू शुरू से ही जातीय जनगणना कराने की मांग कर रही है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर आग्रह भी किया ,लेकिन भाजपा की नियत साफ नहीं दिख रही है. वंचित समाज की हिस्सेदारी में खलल पैदा करने की कोशिश की जा रही है.
कुशवाहा ने कहा कि वंचित समाज, दलित महादलित ,अति पिछड़ों को मुख्यधारा से जोड़ने का काम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया है, जिसे समाज ने शांति पूर्वक स्वीकार किया है. आरक्षण देकर सामाजिक व राजनीतिक रूप से इनका उत्पन्न किया गया लेकिन भाजपा साजिश कर इस व्यवस्था को समाप्त करना चाहती है.