JEE Advance Result: किसी ने क्या खूब कहा है कि जब आप ठान लेते हो तो सफलता मिल हीं जाती है. ऐसे में हीं मधुबनी के लाल शेखर ने कमाल कर दिया है. बता दें कि अभी कुछ दिनों पहले ही आयोजित नीट के नतीजे में मधुबनी के लाल तथागत अवतार ने ने देशभर में टॉप कर इतिहास रच दिया था. वहीं, दूसरी ओर जेईई एडवांस की परीक्षा में देशभर में 28वीं रैंक लाकर मधुबनी के शेखर झा ने भी सफलता का परचम लहरा दिया है. उन्हें कुल 322 अंक प्राप्त हुए हैं.
शेखर मूल रूप से मधुबनी के रुद्रपुर के रहने वाले हैं. उनके दादा जीवनाथ झा सरकारी नौकरी में अपना सेवा दे चुके हैं. वहीं, उनके पिता श्यामनाथ झा और माता अल्पना झा गांव में ही रहते हैं. उनकी इस सफलता से पूरा परिवार गदगद है, माता पिता फुले नहीं समा रहे हैं. पिता बताते हैं कि शेखर बचपन से ही पढ़ाई के प्रति सजग और ईमानदार रहा है.
उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई है, इसके बाद उन्होंने मधुबनी में भी पढ़ाई की फिर उच्च शिक्षा के लिए पटना चले गए. उसके बाद उन्होंने दिल्ली से नीट की तैयारी की. रिजल्ट आने के बाद परिवार में खुशी का माहौल है. दादा जीवनाथ झा ने बताया कि रिजल्ट आने से पहले ही शेखर ने कहा था कि उसका रिजल्ट अच्छा आएगा. इसी विश्वास के साथ जब नतीजे आए तो उनको पता चला कि उनका पोता देशभर में 28वीं रैंक लाया है, फिर वो गर्व से अपने पोता का पीठ थपथपाए.
बचपन से ही था इंजीनियर बनने का सपना
बचपन से ही इंजीनियर बनने का ख्वाब लेकर आगे बढ़े शेखर अब आईआईटी मुंबई तक पहुंच गए हैं. उन्हें आईआईटी मुंबई में सीएस ब्रांच मिली है. जो जेईई के एस्पिरेन्ट्स के लिए सपना से कम नहीं होता. पिता बताते हैं कि उसने पढ़ाई को ही अपना पहला साथी माना है. शेखर ने बताया कि मैं एलेन से अपनी पढ़ाई कर रहा था. एग्जाम के नतीजे को लेकर श्योर जरूर था लेकिन यह उम्मीद नहीं थी कि मेरी रैंक इतनी बेहतर आएगी. एग्जाम के बाद उन्होंने कई बार आंसर क्रॉस चेक किए.
सफलता से पूरे गांव में है खुशी का माहौल
मधुबनी शहर से कुछ दूरी पर बसे शेखर के गांव के लोग उनकी सफलता से बेहद खुश हैं. गांव में भी वो प्रशंसा के पात्र रहे हैं, बड़े, बुजुर्ग बच्चे सब उनकी प्रशंसा करते हैं. ऐसे में शेखर की इस उपलब्धि से पूरा गांव गौरवान्वित है. शेखर अपनी इस सफलता का श्रेय परिवार के साथ-साथ अपने गुरु और शिक्षक को भी देते हैं, जहां से इंजीनियरिंग के प्रवेश परीक्षा की तैयारी उन्होंने की थी. शेखर ने कहा कि परिवार वालों का तो साथ मिला लेकिन शिक्षक के बिना यह सफर अधूरा था.