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पर्यटकों को लुभाती हैं बराबर की ऐतिहासिक गुफाएं

जहानाबाद (नगर) : प्राकृतिक छटाओं से परिपूर्ण बराबर पहाड़ी पर्यटकों के लिए सर्वोत्तम स्थान है. यहां सालों भर पर्यटकों की भीड़ लगती है. बराबर पहाड़ी की प्राकृतिक वादियां, कल-कल करती, नौका विहार, ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व वाले गुफाएं पर्यटकों को खूब आकर्षित करती है. बराबर पहाड़ी की चोटी पर स्थित बाबा सिद्धेश्वर नाथ मंदिर भी […]

जहानाबाद (नगर) : प्राकृतिक छटाओं से परिपूर्ण बराबर पहाड़ी पर्यटकों के लिए सर्वोत्तम स्थान है. यहां सालों भर पर्यटकों की भीड़ लगती है. बराबर पहाड़ी की प्राकृतिक वादियां, कल-कल करती, नौका विहार, ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व वाले गुफाएं पर्यटकों को खूब आकर्षित करती है. बराबर पहाड़ी की चोटी पर स्थित बाबा सिद्धेश्वर नाथ मंदिर भी काफी लोकप्रिय है.
पूरे वर्ष जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव के नवरूपों में बाबा सिद्धनाथ का सर्वोच्च स्थान है. मान्यता है कि यहां आनेवाले श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है. जिला प्रशासन द्वारा इस स्थल को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए कई तरह की आधुनिक सुविधाएं बहाल करायी गयी हैं, जिसमें पाताल गंगा के निकट अत्याधुनिक संग्रहालय, कैफिटेरिया, सुदामा मार्केट कॉम्प्लेक्स, जल नौकाएं की सुविधा व बाबा सिद्धनाथ मंदिर तक जाने-आने के लिए कृत्रिम सीढ़ियों का निर्माण श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है. मखदुमपुर स्टेशन के पास बराबर की पहाड़ी है, जहां सात गुफाएं हैं और इसे लोग सतघरवा कहते हैं.
मान्यता है कि वे सात कंदराएं वही हैं, जिसे पुराणों में सतघर कहा गया है. ये सात गुफाएं – कर्ण चौपट या कर्ण की गुफा, सुदामा की गुफा, लोमश ऋषि गुफा, विश्वामित्र की गुफा, नागाजरुन गुफा, गोपी गुफा व वैदिक गुफा हैं. सातों गुफाएं बराबर पर्वत के दक्षिण धरती से मात्र बीस फुट की ऊंचाई पर है. गुफा के पूरब में पाताल गंगा नामक जलाशय है. पाताल गंगा के एक बड़ा तालाब और गुफा के दक्षिण में दस एकड़ से अधिक क्षेत्र में समतल मैदान है. मैदान और गुफा से एक मील पूरब फल्गू नदी बहती है, जो यहां आनेवाले पर्यटकों व श्रद्धालुओं को काफी आकर्षित करती है. सिद्धेश्वर नाथ मंदिर से दो किलोमीटर पश्चिम दक्षिण किनारे पर कौआकोल पर्वत है.
इसके बारे में कहा जाता है कि यह ऐसा पर्वत है, जो काग या कौआ बैठते ही डोलने लगता था. कहते हैं कि पर्वत की चोटी पर एक बड़ी चट्टान इस ढंग से रखी थी, जो कौआ के वजन से ही हिल जाती थी. जनश्रुति के अनुसार राजा जरासंध ने एक पैर उस पर रखा था और इसी से वह डोल गया और डोलता ही रह गया था. बौद्ध साहित्य में इस पर्वत को शीलभद्र बिहार कहा गया है. शीलभद्र बंगाल के एक कुलीन परिवार से आये थे और बौद्ध धर्म के बड़े विद्वान और प्रचारक थे.
यहां शीलभद्र का निवास स्थल तथा बौद्ध स्तूप भी था. इस पर्वत के आसपास दर्जनों हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को जनरल कनिंघम ने देखा था. इस स्थल का भ्रमण करने आये फ्रांसीसी पर्यटक बुकानन ने भी अपने वृतांत में इसका उल्लेख किया है कि कौआ पर्वत के पास जब वे पहुंचे, तो वहां एक पुजारी मिला, जिसने अपने को क्षत्रिय ब्राrाण बताया था.

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