महंगी किताबों से अभिभावक हलकान

निजी स्कूलों में मनमाने तरीके से लागू हो रहीं विभिन्न प्रकाशकों की पुस्तकें जहानाबाद : मानक शिक्षा की होड़ में हर कोई अपने बच्चों को निजी स्कूल में भेजने पर तुले हैं. वहीं, स्कूल प्रबंधन भी अभिभावकों का अलग-अलग तरीके से दोहन करने में जुटा है. नये सत्र में शहर के कई स्कूलों में एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 8, 2015 7:32 AM
निजी स्कूलों में मनमाने तरीके से लागू हो रहीं विभिन्न प्रकाशकों की पुस्तकें
जहानाबाद : मानक शिक्षा की होड़ में हर कोई अपने बच्चों को निजी स्कूल में भेजने पर तुले हैं. वहीं, स्कूल प्रबंधन भी अभिभावकों का अलग-अलग तरीके से दोहन करने में जुटा है. नये सत्र में शहर के कई स्कूलों में एक बार फिर से पुस्तकें बदल दी गयी हैं.
पिछले साल के मुकाबले अब अलग-अलग कक्षाओं में नये-नये प्रकाशन की पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल की गयी हैं. ऐसे में विगत सत्र की किताबें इस बार सेम क्लास के छात्रों के लिए किसी काम की नहीं रही. वहीं, सालाना फीस सहित अन्य शुल्क में भी विद्यालय प्रबंधन द्वारा 20 फीसदी तक का इजाफा कर दिया गया है. यह कोई नये सत्र की बात नहीं है. अमूमन यह हर साल होता रहा है.
खास दुकान पर ही मिलती हैं किताबें : निजी स्कूलों और प्रकाशकों की सेटिंग पर गौर करें, तो खास स्कूलों की किताबें खास दुकान पर ही मिलती हैं. ऐसे में दुकानों से हुईं सांठगांठ के कारण विद्यालय भी एक निश्चित अंशदान लेकर लाभान्वित होता है. तय किताब के लिए मनमानी कीमत चुकाने की लाचारी के बावजूद अभिभावक मजबूरी में कोर्स की सभी किताबें खरीदते हैं. इसके अलावा कुछेक स्कूलों में नोट बुक भी प्रायोजित
की जा रही है. खास कंपनी की कॉपी खरीदने का दबाव स्कूल प्रबंधक द्वारा देने की शिकायत भी कई अभिभावकों से मिली है.
एनसीइआरटी की किताबें बाजार से गायब : नये सेशन में पढ़ाई शुरू तो हो गयी है, लेकिन अधिकतर छात्रों के पास अपने क्लास की पूरी किताबें नहीं आ पायी हैं. खासकर क्लास छह से लेकर नौ तक की एनसीइआरटी की किताबें मार्केट में उपलब्ध नहीं होने से उन पर खास प्रकाशन की पुस्तकें खरीदने का दबाव बन गया है. दसवीं से लेकर 12वीं कक्षा के गणित व विज्ञान के अलावा कई अन्य विषयों की किताबें खोजने पर भी नहीं मिल पा रही हैं.
नहीं रहा मांग कर किताबें पढ़ने का जमाना : पुराने दिनों की बात करें, तो अधिकतर लोग एक क्लास आगे बढ़ने पर अपने साथी-संगत या परिजनों को पुरानी किताबें दे देते थे, ताकि उनकी पढ़ाई पूरी हो सके. रिवाज की तरह पढ़ाई का रस्म पूरा होता और नीचे की पीढ़ी भी एक बार फिर मिले किताबों से ही ज्ञान का उपहार अजिर्त करते थे. हालांकि अब क्लास बदलने के साथ ही किताबें भी बदल जाती हैं, जबकि पुरानी किताबें पीछे की कक्षाओं में काम नहीं आते. क्योंकि सेशन बदलने के साथ ही सिलेबस और प्रकाशन भी बदल दिये जाते हैं.
महंगाई की वजह से बढ़े दाम : विगत वर्ष की तुलना में इस वर्ष किताबों के दाम में करीब 12 से 15 फीसदी दाम बढ़े हैं. पुस्तक विक्रेताओं की माने, तो प्रकाशक द्वारा यह बताया जा रहा है कि कागज के मेटेरियल का दाम, तो बढ़ा ही साथ ही टैक्स भी ज्यादा अदा करना पड़ रहा है. यही वजह है कि पुस्तकों के दामों में व्यापक वृद्धि हुई है.

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