उम्र पढ़ाई की और चुन रहे कूड़ा
पेट की आग बुझाने के लिए दर-दर की ठोकर खाने को विवश हैं गरीबों के बच्चे दरिद्रता वह कलंक है, जो छुपाये नहीं छुपता, लेकिन इनके गुणों को जरूर छुपा लेता है. गरीबी कितना बड़ा अभिशाप है, जो सड़कों पर कूड़े चुन रहे छोटे-छोटे मासूम बच्चों को देख कर एहसास किया जा सकता है. खेलने-कूदने […]
पेट की आग बुझाने के लिए दर-दर की ठोकर खाने को विवश हैं गरीबों के बच्चे
दरिद्रता वह कलंक है, जो छुपाये नहीं छुपता, लेकिन इनके गुणों को जरूर छुपा लेता है. गरीबी कितना बड़ा अभिशाप है, जो सड़कों पर कूड़े चुन रहे छोटे-छोटे मासूम बच्चों को देख कर एहसास किया जा सकता है.
खेलने-कूदने की उम्र कब बीत गयी इन्हें पता तक नहीं चल पाता. जब इनके नन्हें हाथ किताबों के बोझ संभालने लायक भी नहीं होता कि कंधे पर बड़ा सा बोरा ले कूड़े चुनने घर से निकल पड़ते हैं. आखिरकार इसके लिए दोषी कौन है.
सरकार इनके उत्थान के लिए बड़ी-बड़ी बातें करती रही है, लेकिन इनके जीवन स्तर में आज तक कोई सुधार नहीं हुआ. फर्क आया तो सिर्फ इतना कि कल इनके पिता कूड़ा चुनते थे, आज ये.
जहानाबाद (नगर) : बचपन स्वच्छंद रूप से खेलने और खाने-पीने के लिए जाना जाता है तथा सभी दायित्वों से मुक्त स्वच्छंद जीवन जीने को सिखाता है, लेकिन गरीबों के लिए यह मात्र कोरी कल्पना जैसी है.
पेट पालने की खातिर ये अपना बचपन कूड़ा चुनने तथा होटलों व ढाबों समेत अन्य जगहों पर मजदूरी करने में बीता देते हैं. गरीबी की बोझ तले दबे ये बच्चे उन जगहों पर कूड़ा चुनने को विवश हैं, जहां आम लोग जाना भी पसंद नहीं करते, इन्हें तथा इनके बच्चों को संक्रमण के खतरे का एहसास होता है, परंतु गरीबों के बच्चों का यही रोजी व रोजगार है.
इसके लिए ये दर-दर की ठोकर तो खाते ही हैं, साथ ही लोगों से डांट भी सुननी पड़ती है. खेलने-खाने और पाठशाला जाने के उम्र में ये बच्चे अपनी जिंदगी का बोझ उठाये फिरते हैं. कंधे पर झोला लाद सड़क पर फेंके हुए गंदे-फटे कागज, प्लास्टिक के टुकड़े, पॉलीथिन के लिफाफे चुनना इनकी विवशता है. गंदगी के ढेर को कुरेदकर उसमें से लोहा, प्लास्टिक आदि चुन कर ये बच्चे कबाड़ी की दुकानों पर बेच कर अपनी जीविका चलाते हैं.
क्या कहते हैं पदाधिकारी
देश का भविष्य कहे जाने वाले इन बच्चों को किसी भी कारण से मजदूरी करनी पड़े, इसे मानवीय नहीं कहा जा सकता. ऐसे बच्चों का सर्वे करा कर उनके पठन-पाठन की व्यवस्था करायी जायेगी.
आदित्य कुमार दास, डीएम