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टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी के सहारे आते-जाते हैं ग्रामीण, गांव में नहीं बनी है एक भी नाली

हुलासगंज : काश कोई तारणहार बन कर आता और हमारे गांव को भी गोद ले लेता, तो यहां की तकदीर व तसवीर दोनों बदल जाती. यह अरमान तीरा पंचायत के गेंदा बिगहा गांव के हर व्यक्ति के दिल में है. गेंदा बिगहा में समस्याओं की झलक गांव में प्रवेश करते ही स्वत: देखने को मिलती […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 5, 2015 5:27 AM

हुलासगंज : काश कोई तारणहार बन कर आता और हमारे गांव को भी गोद ले लेता, तो यहां की तकदीर व तसवीर दोनों बदल जाती. यह अरमान तीरा पंचायत के गेंदा बिगहा गांव के हर व्यक्ति के दिल में है. गेंदा बिगहा में समस्याओं की झलक गांव में प्रवेश करते ही स्वत: देखने को मिलती है. टेढ़े-मेढ़े पगडंडी के सहारे गांव में प्रवेश करने के बाद संकीर्ण एवं गंदगी से भरी गलियों को देख गंतव्य तक पहुंचना बगैर किसी ग्रामीण को साथ लिये शायद ही संभव होगा.

छोटे-छोटे बच्चों के झुंड आंगनबाड़ी केंद्रों एवं स्कूलों के बजाय गलियों में उछल-कूद करते नजर आते हैं, जो किसी अजनबी को देख प्रश्न वाचक मुद्रा में निहारने लगते हैं. गांव के ही 75 वर्षीय विकलांग महावीर यादव कहते हैं कि कई सरकारें आयी और गयीं, लेकिन हमारे गांव की न तो तसवीर बदली और न ही तकदीर.
पूर्व में फैल चुकी है डायरिया की बीमारी
ग्रामीणों ने बताया कि दो वर्ष पूर्व बरसात के सीजन में इस गांव में डायरिया के प्रकोप से अनेकों लोग आक्रांत हुए थे तथा दो लोगों की जानें भी चली गयी थीं. शंकर यादव के घर में पेयजल के लिए चापाकल तो लगाया गया, लेकिन हैंडिल खोल कर इसलिए रखा दिया गया है कि पानी घर में जमा न हो. सांसद-विधायक की बात क्या की जाये, स्थानीय स्तर के जनप्रतिनिधि मुखिया, पंचायत समिति सदस्य एवं जिला पार्षद के नाम पर ग्रामीण आक्रोशित हो जाते हैं.
बीपीएल के लाभार्थियों को नहीं मिलता है लाभ
लोगों ने बताया कि ग्रामीणों व गांव की हालत में सुधार करने के ख्याल से यहां कोई नहीं आता, बल्कि जो आता है, वह वोट के लिए. लोग आते हैं और वादा करते हैं, फिर पूरे पांच साल के लिए भूल जाते हैं.
पानो देवी, गौरी देवी, नोखू यादव समेत कई लोगों ने कहा कि बीपीएल सूची में रहने के बावजूद भी आज तक इन्हें कोई भी लाभ नहीं मिल सका है. मुख्य रूप से खेती पर आधारित इस गांव की दशा में परिवर्तन के लिए ग्रामीणों ने सभी संबंधित अधिकारियों के दरवाजे पर दस्तक दे चुके हैं, लेकिन किसी ने गांव के विकास की दिशा में एक भी कदम नहीं उठाया.

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