कलश स्थापना के साथ वासंतिक नवरात्र शुरू

प्रथम दिन शैलपुत्री एवं ब्रहमचारिणी की हुई पूजा जहानाबाद नगर : शक्ति की अधिष्ठात्री देवी की आराधना व उपासना का पर्व वासंतिक नवरात्र शुरू हो गया. कलश स्थापना के साथ नवरात्र आरंभ होने से माता मांडेश्वरी दरवार के साथ ही जिले के अन्य धार्मिक स्थलों एवं देवी मंदिरों को वातावरण भक्तिमय हो गया. बुधवार की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 30, 2017 1:31 AM

प्रथम दिन शैलपुत्री एवं ब्रहमचारिणी की हुई पूजा

जहानाबाद नगर : शक्ति की अधिष्ठात्री देवी की आराधना व उपासना का पर्व वासंतिक नवरात्र शुरू हो गया. कलश स्थापना के साथ नवरात्र आरंभ होने से माता मांडेश्वरी दरवार के साथ ही जिले के अन्य धार्मिक स्थलों एवं देवी मंदिरों को वातावरण भक्तिमय हो गया. बुधवार की अहले सुबह विधि विधान के साथ पूजा अर्चना के साथ कलश की स्थापना हुई. कलश स्थापना को लेकर सुबह 6.33 बजे से शुभ मुहूर्त आरंभ हो गया था जो 12.24 बजे तक रहा.
मीन लग्न में सुबह 6.39 बजे तक तथा स्थिर लग्न में 8.17 बजे से 10.12 बजे तक वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ कलश की स्थापना की गयी. कलश स्थापना को लेकर देवी मंदिरों एवं अन्य धार्मिक स्थलों पर सुबह से हीं तैयारी जोरो पर था. एक तरफ कलश स्थापना को लेकर तैयारी चल रहा था वहीं दूसरी तरफ पुरोहित जजमान को पूजा के संबंध में आवश्यक निर्देश दे रहे थे. कलश स्थापन के साथ हीं भक्त मां देवी की आराधना में लीन हो गये. नवरात्रा को लेकर दरधा-जमुना के संगम तट पर अवस्थित माता मांडेश्वरी का दरवार पूरी तरह सजा हुआ था. भक्तों को आने का सिलसिला भी थम नहीं रहा था. भक्त माता का जयकारा लगाते तथा जयघोष करते थक नहीं रहे थे.
प्रथम दिन शैलपुत्री एवं ब्रहमचारिणी की हुई पूजा : नवरात्र के प्रथम दिन कलश स्थापन के उपरांत माता शैलपुत्री और ब्रहमचारिणी की पूजा की गयी. बताया जाता है कि इस बार देवी दूर्गा का आगमन नौका पर हो रहा है. दसवीं के दिन माता मनुष्य के कंघे पर प्रस्थान करेंगी. माता के आगमन और प्रस्थान दोनों ही भक्तों के लिए शुभदायी है. 3 अप्रैल को महानिशां और 4 अप्रैल को महाअष्ठमी ब्रत होगी. पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की आराधना की गयी. श्वेत व दिव्यस्वरूपा यह माता वृषभ पर आरूढ़ हैं. मां के दाहिने हाथ में त्रिशुल तथा वायें हाथ में कमल का पुष्प शुसोभित है. वहीं मां दुर्गा के द्वितीय स्वरूप ब्रहमचारिणी है. ब्रहम में लीन होकर तप करने के कारण उन्हें ब्रहमचारिणी की संज्ञा दी गयी है.
मां ज्योतिर्मयी एवं भव्य हैं इनके दाहिने हाथ में जप की माला तथा बाएं हाथ में कमंडल है. मां के दोनों स्वरूप की पूजा की गयी.

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