Bihar News: नौकरी बाधा नहीं, प्रोफेशनल भी अब कर सकेंगे पीएचडी, यूजीसी ने तैयार किया नया रेगुलेशन
यूजीसी काउंसिल की बैठक में पीएचडी रेगुलेशन 2022 के ड्राफ्ट को मंजूरी मिल गयी है. इसमें पीएचडी प्रोग्राम में छह महीने का कोर्स वर्क रेगुलर मोड से करना होगा, जबकि थीसिस समेत अन्य रिसर्च वर्क पार्ट टाइम मोड किया जा सकेगा.
मुजफ्फरपुर. कोई व्यक्ति पीएचडी करना चाहता है, तो अब नौकरी बाधा नहीं बनेगी. यूजीसी ने नया रेगुलेशन तैयार किया है. इसके तहत केवल छह महीने का कोर्स वर्क ही रेगुलर मोड में करना अनिवार्य होगा. इसके बाद अभ्यर्थी अपना रिसर्च वर्क पार्ट टाइम में कर सकेंगे. हालांकि, कुल छह साल में ही पीएचडी पूरा करना होगा. नया रेगुलेशन सत्र 2022-23 से ही लागू किया जायेगा. नौकरी के कारण पीएचडी नहीं कर पाने वाले पेशवरों को यूजीसी ने बड़ी राहत दी है. बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के एक वरीय अधिकारी ने बताया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की नयी पहल के बाद वर्किंग प्रोफेशनल नौकरी के साथ-साथ पार्ट टाइम पीएचडी भी कर सकेंगे.
पीएचडी रेगुलेशन 2022 के ड्राफ्ट को मंजूरी
यूजीसी काउंसिल की बैठक में पीएचडी रेगुलेशन 2022 के ड्राफ्ट को मंजूरी मिल गयी है. इसमें पीएचडी प्रोग्राम में छह महीने का कोर्स वर्क रेगुलर मोड से करना होगा, जबकि थीसिस समेत अन्य रिसर्च वर्क पार्ट टाइम मोड किया जा सकेगा. शैक्षणिक सत्र 2022-23 से विश्वविद्यालयों के साथ ही सीएसआइआर, आइसीएमआर, आइसीएआर आदि इन्हीं नियमों के तहत पीएचडी में दाखिला लेंगे. यूजीसी की ओर से कहा गया है कि विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों को अपनी पीएचडी सीटों का ब्योरा आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड करना होगा. इसमें पीएचडी गाइड से लेकर विषय के बारे में भी जानकारी देनी होगी.
लिखित परीक्षा और इंटरव्यू से होगा दाखिला
पीएचडी में दाखिले के लिए 70 अंक की लिखित परीक्षा और 30 अंक का इंटरव्यू होगा. पीएचडी प्रोग्राम में कम से कम 12 क्रेडिट और अधिक से अधिक 16 क्रेडिट अनिवार्य रहेंगे. इसके अलावा रिटायरमेंट के बाद शिक्षक 70 वर्ष की आयु तक रिसर्च क्षेत्र में शिक्षक के रूप में दोबारा पैरेंट यूनिवर्सिटी में सेवाएं दे सकेंगे. इसमें अलग-अलग वर्ग निर्धारित किये गये हैं. पीएचडी उम्मीदवार अपनी थीसिस को पेटेंट करा सकेंगे. इसके अलावा पीएचडी की रिसर्च फाइडिंग को क्वालिटी जर्नल यानी पीर रिव्यू जर्नल में छपवा सकते हैं.
ऑनलाइन व ऑफलाइन वाइवा का विकल्प
पहली बार पीएचडी वाइवा ऑनलाइन भी होगा. इसका मकसद अभ्यर्थी और विश्वविद्यालय के समय और खर्च बचाना है. वहीं यदि किसी छात्र को किसी प्रकार की दिक्कत हो, तो वाइवा ऑफलाइन दिया जा सकता है.
पीएचडी छह साल में करनी होगी पूरी
पीएचडी को छह साल में पूरी करना होगा. संस्थान दो साल से ज्यादा अतिरिक्त समय नहीं देगा. महिलाओं और विकलांगों (40 प्रतिशत से अधिक) को छह साल के अलावा दो साल अतिरिक्त समय का प्रावधाव किया है.
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