जूनियर डॉक्टरों ने हड़ताल कर निजी अस्पतालों को दे दिया करोड़ों का कारोबार, खुद भी कर रहे हैं निजी प्रैक्टिस, जानिये एक डॉक्टर बनाने में लगता है जनता का कितना पैसा
निजी क्लिनिक में कोई हड़ताल नहीं है. ऐसे में सरकारी मेडिकल अस्पतालों में मुफ्त या बहुत कम दाम में होने वाल इलाज निजी नर्सिंग होम व निजी प्रैक्टिस करनेवाले डॉक्टरों के पास चला गया है. इस तरह करोड़ों रुपये के इलाज का कारोबार निजी अस्पतालों के पास चला गया है.
पटना. एक ओर जहां, राज्य के मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में 23 दिसंबर से जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल से चिकित्सा सेवाएं चरमरा गयी हैं. वहीं, दूसरी ओर इन अस्पतालों के जूनियर से लेकर सीनियर डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस जारी है.
उनके निजी क्लिनिक में कोई हड़ताल नहीं है. ऐसे में सरकारी मेडिकल अस्पतालों में मुफ्त या बहुत कम दाम में होने वाल इलाज निजी नर्सिंग होम व निजी प्रैक्टिस करनेवाले डॉक्टरों के पास चला गया है. इस तरह करोड़ों रुपये के इलाज का कारोबार निजी अस्पतालों के पास चला गया है.
सरकारी में लगभग मुफ्त या सस्ता इलाज : पीएमसीएच में सामान्य दिनों में इंदिरा गांधी आकस्मिकी में 400-450 मरीज, शिशु रोग इमरजेंसी व लेबर रूम इमरजेंसी में 200-250 मरीज इलाज के लिए आते हैं. इसके अलावा 2200-2500 मरीज ओपीडी में आते हैं.
पीएमसीएच में 215 प्रकार की उपलब्ध रहनेवाली दवाएं मुफ्त में दी जाती हैं. ऑपरेशन के लिए उपकरण मुफ्त में दिये जाते हैं. साथ ही मरीजों को ऑपरेशन थियेटर का पैसा नहीं देना पड़ता है.
इसके अलावा अस्पताल में आइसीयू सेवा भी मुफ्त में मिलती है. अस्पताल में पैथोलॉजी से लेकर एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन और एमआरआइ की राशि बाजार दर से बहुत ही सस्ती है.
ऐसे हो रही निजी अस्पतालों की कमाई
यह माना जा रहा है कि निजी नर्सिंग होम में जानेवाले एक मरीज को ओपीडी में इलाज कराने पर 500-1000 रुपये, पैथोलॉजी में एक हजार से पांच हजार, सीटी स्कैन कराने पर करीब दो हजार और एमआरआइ कराने पर सात-नौ हजार का खर्च आता है.
इमरजेंसी में किसी भी मरीज को निजी नर्सिंग होम में भर्ती होने पर पांच-10 हजार रुपये, आइसीयू में भर्ती होने पर 10-20 हजार रुपये खर्च आते हैं.
इधर, निजी क्षेत्र में इलाज करानेवाले हर मरीज को दवा से लेकर ऑपरेशन में दवा, उपकरण, ओटी खर्च खुद उठाना पड़ रहा है.
पीएमसीएच में आनेवाले मरीजों की संख्या के अनुसार इमरजेंसी के 700 मरीजों के इलाज नहीं कराने पर करीब 70 लाख, ओपीडी मरीजों के इलाज नहीं होने पर करीब 22 लाख, ऑपरेशन ठप होने से करीब 40 लाख, जांच पर करीब 20-30 लाख और मुफ्त दवा नहीं मिलने पर करीब 9-10 लाख रुपये का खर्च होता है.
डॉक्टरों की हड़ताल के कारण गरीब मरीजों को इतनी राशि निजी नर्सिंग होम में खर्च करनी पड़ रही है.
एक पीजी डॉक्टर बनाने में 1.20 करोड़ खर्च
हड़ताल पर जाकर गरीब मरीजों का इलाज ठप करनेवाले जूनियर डॉक्टरों को यह मालूम नहीं कि सरकारी अस्पतालों में उनकी पीजी तक की डिग्री दिलाने में सरकार को कितना पैसा खर्च करना पड़ता है.
स्वास्थ्य विभाग के आधिकारिक सूत्रों की मानें, तो सरकारी मेडिकल कॉलेज से एक चिकित्सक को एमबीबीएस से लेकर स्नातकोत्तर तक डिग्री दिलाने पर एक करोड़ 20 लाख रुपये प्रति छात्र खर्च होता है. सरकार राज्य की गरीब जनता के पैसे से इन डॉक्टरों को प्रशिक्षित करती है.
Posted by Ashish Jha