उद्घाटन के इंतजार में पब्लिक टॉयलेट हो गये बदहाल

लापरवाही. शहर को खुले में शौचमुक्त करना नगर सरकार के लिए चुनौती भभुआ सदर : आधुनिक सभ्यता में शहर व जनसुविधाएं एक-दूसरे की पर्याय मानी जाती हैं. लोगों की सुविधा तथा स्वच्छता के लिए सार्वजनिक शौचालय शहर में होना अनिवार्य माना जाता है. खुले में शौच की जब भी बात होती है तो लोग गांव […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 11, 2017 6:00 AM

लापरवाही. शहर को खुले में शौचमुक्त करना नगर सरकार के लिए चुनौती

भभुआ सदर : आधुनिक सभ्यता में शहर व जनसुविधाएं एक-दूसरे की पर्याय मानी जाती हैं. लोगों की सुविधा तथा स्वच्छता के लिए सार्वजनिक शौचालय शहर में होना अनिवार्य माना जाता है. खुले में शौच की जब भी बात होती है तो लोग गांव के तरफ ऊंगली उठा देते हैं. लेकिन, हालिया हालात इससे कोसों दूर हैं. स्वच्छता अभियान के दो साल होने के बावजूद भभुआ शहर खुले में शौचमुक्त नहीं हो सका है. शहर के कई वार्ड व मुहल्लों में अब भी बड़ी संख्या में लोग खुले में शौच को मजबूर हैं.
शहर को शौचमुक्त करना भभुआ नगर पर्षद की नयी नगर सरकार के लिए भी बड़ी चुनौती बन सकती है. हालांकि, अभी शहर में बहुत सारे ऐसी जरूरतें हैं जिसे पूरे किये जाने हैं. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने वर्ष 2019 तक पूरे देश को ओडीएफ यानी खुले में शौचमुक्त बनाने की घोषणा की थी.
लेकिन, भभुआ शहर में स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत प्रत्येक घर में शौचालय निर्माण की मुहिम काफी धीमी है. नगर पर्षद ने आठ वार्डों को अब तक ओडीएफ घोषित किया है. लेकिन, अगर इन वार्डों का आज भी निरीक्षण किया जाये, तो यहां गलियों में लोग खुले में शौच करते मिल जायेंगे. हालांकि, जिला प्रशासन ने खुले में शौच पर जुर्माना व जेल भेजे जाने का भी दबाव बना रखा है, पर इसका असर नहीं दिख रहा.
सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को : शहर के मुख्य स्थानों पर नगर पर्षद द्वारा बनाये गये पब्लिक टॉयलेट (सार्वजनिक शौचालय) केवल नाम भर के रह गये हैं. विगत कई माह से ये शौचालय बन कर तैयार हैं, पर उद्घाटन नहीं होने की वजह से अब यह जर्जर स्थिति में पहुंच चुका है. नगर पर्षद द्वारा शहरी योजना के लाखों रुपये की राशि से एकता चौक, अखलासपुर बस स्टैंड, राजेंद्र सरोवर, बाबा जी का पोखरा, देवी मंदिर रोड, पूरब पोखरा बस स्टैंड व जगजीवन स्टेडियम के पास शौचालय बनाया गया है. कुछ स्थानों पर यह जैसे एकता चौक, अखलासपुर स्टैंड में जैसे-तैसे चालू भी हो गया.
लेकिन, देवी मंदिर रोड, बाबाजी का पोखरा, पूरब पोखरा बस स्टैंड में सार्वजनिक शौचालय बन कर तैयार होने के बावजूद नगर पर्षद की लापरवाही से चालू नहीं किया जा सका. शहर में पब्लिक टॉयलेट की कमी लोगों को काफी खलती है. प्रतिदिन हजारों लोग शहर में बाजार करने या अन्य किसी काम से आते हैं. ऐसे में शौच को लेकर काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. शौचालय चालू नहीं होने से सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं को होती है.
प्रतिदिन शहर के आस-पास के गांवों की सैकड़ों महिलाएं बाजार करने भभुआ आती हैं. लेकिन, बाजार में शौचालय की व्यवस्था नहीं होने से उन्हें काफी परेशानी होती है. अमूमन गांव की महिलाओं की तरह शहर की महिलाएं भी प्रतिदिन इस समस्या से फजीहत उठाती है.
ओडीएफ घोषित वार्ड की भी स्थिति ठीक नहीं : भभुआ शहर को ग्रीन सिटी के नाम से जाना जाता है.
यहां आज भी विभिन्न मुहल्लों व इलाकों में बड़ी संख्या में महिला, पुरुष व बच्चे खुले में शौच जाते हैं. नगर पर्षद के दावे पर गौर किया जाये, तो शहर के आठ वार्ड दो, चार, पांच, 11, 12, 13, 17 व 18 ओडीएफ घोषित किये जा चुके हैं. लेकिन, ओडीएफ घोषित इन वार्डों में आज भी कई गरीब परिवार खुले में शौच को मजबूर हैं. घरों में शौचालय नहीं होने की समस्या सबसे ज्यादा महिला वर्ग को पेश आती है. शहर का वार्ड 18 हो या फिर वार्ड 12 का चकबंदी रोड. इन स्थानों पर आज भी सर्वत्र गंदगी पसरी हुई देखी जा सकती है.
नौ दिनों में चले ढाई कोस : नगर पर्षद के जिम्मे भभुआ शहर को खुले में शौचमुक्त करने का काम है. शहर में कुल परिवारों की संख्या सात हजार 588 है. इसमें से छह हजार 145 परिवार के पास पहले से ही शौचालय उपलब्ध है. इस प्रकार पूरे भभुआ शहर को खुले में शौचमुक्त करने के लिए करीब 1500 शौचालय के निर्माण का लक्ष्य नगर पर्षद द्वारा निर्धारित किया गया है. लेकिन, अब तक महज 800 से भी कम शौचालय बनाये जा सके हैं. हालांकि नगर पर्षद के कार्यपालक पदाधिकारी दीनानाथ सिंह का कहना है कि शहर के लगभग 492 लाभुकों को प्रथम किस्त की राशि व 300 लाभुकों को द्वितीय किश्त की राशि का भुगतान कर दिया गया है. लेकिन, इन लाभुकों में से भी अधिकतर का कहना है कि शौचालय के लिए सीट व गड्ढा खुदवा तो दिया गया, लेकिन राशि नहीं दी गयी.
इतना ही नहीं नगर में दर्जनों से अधिक साइबर कैफे तो खुल गये हैं, लेकिन एक अदद क्लब नहीं है. जहां पर लोग जाकर सुकून के दो पल गुजार सकें. क्लब के नाम पर केवल एक रिक्रिएशन क्लब है, लेकिन वह भी मैरेज हाल के रूप में अधिक प्रयोग में लाया जाता है. इसके अलावा नगर के जगजीवन स्टेडियम के नजदीक 62 लाख की लागत से सिटी पार्क का निर्माण कराया गया है. बदहाल स्थिति होने के चलते इसका उपयोग शहरवासी अब कम ही करते हैं. वैसे ही शहर की प्रमुख सड़कों पर एलइडी लाइट लगी है. लेकिन, उनकी रात में लाइट गुम रहती है. कभी कभार दिन में जलती दिखायी पड़ती है. शहरी क्षेत्र में तीन सामुदायिक भवन बने हैं. एक पुरानी लाइब्रेरी जन सहयोग से बनी है, जो आज भी चल रही है. लेकिन प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी वाले किताबों के अभाव में नगर के छात्र-छात्राओं को भारी परेशानी उठानी पड़ रही है. कहने को तो शहर में दो सिनेमा हाल हैं. लेकिन, एक भी हॉल अत्याधुनिक व डिजिटल नहीं है.
स्वच्छता अभियान के दो साल होने के बाद भी भभुआ शहर नहीं हो सका खुले में शौच से मुक्त

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