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समय बढ़ा, पर ईंट भट्ठा मालिकों को अपनानी होगी जिग-जैक तकनीक
डिप्टी सीएम के बयान के बाद ईंट व्यवसायियों को मिली थोड़ी राहत 31 अगस्त 2018 तक पुराने ढर्रे पर चिमनी चलाने की मिली अनुमति भभुआ नगर : ईंट भट्ठा मालिकों को अपनानी हर हाल में जिग-जैक तकनीक अपनानी होगी. इस नयी तकनीकी से चिमनी बनाये जाने के सरकारी फरमान के बाद ईंट उद्योग से जुड़े […]
डिप्टी सीएम के बयान के बाद ईंट व्यवसायियों को मिली थोड़ी राहत
31 अगस्त 2018 तक पुराने ढर्रे पर चिमनी चलाने की मिली अनुमति
भभुआ नगर : ईंट भट्ठा मालिकों को अपनानी हर हाल में जिग-जैक तकनीक अपनानी होगी. इस नयी तकनीकी से चिमनी बनाये जाने के सरकारी फरमान के बाद ईंट उद्योग से जुड़े लोगों में ऊहापोह की स्थिति है.
लेकिन, इसी बीच डिप्टी सीएम सह वन व पर्यावरण मंत्री सुशील मोदी ने व्यवसायियों को थोड़ी राहत देते हुए 31 अगस्त 2018 तक समय सीमा बढ़ा दी है. सभी ईंट भट्ठों को अगस्त 2017 तक उन्नत व स्वच्छ तकनीक (जिग-जैग सिस्टम) में परिवर्तित करने की समयसीमा को बढ़ा कर 31 अगस्त 2018 कर दिया गया है.
निर्धारित अवधि में ईंट भट्ठों को नयी तकनीक में परिवर्तित करने में संचालकों ने असमर्थता जताते हुए वर्तमान ईंट निर्माण सत्र तक के लिए समयसीमा विस्तारित करने के लिए आवेदन दिया था, जिन ईंट भट्ठों के संचालन हेतु आवेदन विचाराधीन है अथवा संचालन की सहमति प्राप्त है, उनको अब 31 अगस्त 2018 तक स्वच्छ तकनीक में अपने ईंट भट्ठों का परिवर्तन कराना होगा. इस आशय का शपथपत्र देने के बाद औपबंधिक तौर पर 31 अगस्त 2018 तक के लिए संचालन की अनुमति दी जायेगी. हालांकि, नयी तकनीक से ईंट भट्ठा संचालित करने को लेकर व्यवसायियों में ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है.
कई ईंट व्यवसायियों का कहना है कि सिस्टम बदल रहा है तो इसके लिए हम तैयार हैं. लेकिन, वर्तमान में लगाये गये खर्च को देखते हुए हमें दो से तीन साल का समय दिया जाता तो अच्छा होता. इसके अलावे प्राप्त जानकारी के अनुसार, लाल ईंट 2019 तक बंद कर दिया जायेगा और पुराने भट्ठे अब संचालित नहीं होंगे.
जिग-जैग तकनीक है फायदेमंद
पर्यावरण प्रदूषण को कम करने और ईंट की गुणवत्ता को लेकर ईंट भट्ठों को जिग जैग तकनीक के साथ संचालित किये जाने की योजना है.
पुराने ढर्रे पर चल रहे ईंट भट्ठों में आमतौर पर ईंट पकाने में 25-30 टन कोयला खर्च होता है. नयी तकनीक में मात्र 16 टन में काम हो जायेगा. इसके अलावे जिग-जैग तकनीक के आने से जहां एक ओर साधारण ईंट भट्ठों में आमतौर पर ईंट पकाने के लिए छल्लियों में सीधी हवा दी जाती है. वहीं जिग-जैग में टेढ़ी मेढ़ी लाइन बना कर हवा दी जाती है. इससे लागत खर्च कम आयेगा. साथ ही ईंटों की गुणवत्ता भी अच्छी होगी और 90 से 95 फीसदी ईंट अच्छी निकलेगी.
अब तो लाइसेंस का नवीकरण तभी होगा, जब चिमनी जिग-जैग तकनीक पर बनायी जायेगी. नयी प्रक्रिया को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. विभाग से भी मदद नहीं मिल रही.
कुंदन पटेल, प्रोपराइटर माता ईंट उद्योग
पुराने मॉडल पर चिमनी बना लिया गया है. डिप्टी सीएम के बयान के बाद थोड़ी राहत मिली है. लेकिन, नये सिस्टम को अपनाने में कुछ वक्त लगेगा. सरकार को इस मामले में गंभीरता से विचार करना चाहिए.
उमेश सिंह, प्रोपराइटर, जय मां मुंडेश्वरी ईंट उद्योग
कागज करा लें दुरुस्त
जिग-जैग तकनीक से ही आनेवाले दिनों में ईंट भट्ठा संचालित होंगे. यह तकनीक प्रदूषण कम करने में काफी मददगार होगी. प्रदूषण पर्यावरण खनन सेल टैक्स से परमिट संबंधी कागजात को दुरुस्त कराना होगा.
दिलीप कुमार, माइनिंग ऑफिस
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