खाद के अधिक प्रयोग से बंजर हो जायेंगे खेत
भभुआ सदर : दिल्ली सहित देश के कई शहरों में बढ़ रहे प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक पहुंचाने में धान के अवशेषों को जलाने का कारण माना जा रहा है. इधर, धान की कटाई के बाद जिले में भी खेतों में बचे डंठल को जिले के किसान धड़ल्ले से जला रहे हैं. पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि डंठल जलाना तो आसान है, लेकिन इससे खेतों की जान निकल रही है.
इसके चलते किसानों को भी हर साल खाद की मात्रा बढ़ानी पड़ रही है. ऐसा ही चलता रहा, तो आनेवाली पीढ़ी को बीमार और बंजर खेत ही नसीब होंगे.
अगलगी का भी रहता है खतरा : पिछले साल जिले में खलिहान में रखी फसलों के जलने की कई घटनाएं हुईं. अधिकतर मामलों में अगलगी की घटना डंठल जलाने की वजह से मानी गयी. जलते डंठलों से निकली चिनगारी से कई किसानों के खलिहान में आग लग गयी. जिले के किसान मुन्ना सिंह, वाल्मीकि पांडेय, अनिल राम आदि बताते हैं कि खेतों में पराली (धान का डंठल) जलाने से पर्यावरण को नुकसान के साथ किसानों को आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ता है. गांव में किसी एक किसान की गलती का खामियाजा दूसरे को भुगतना पड़ता है. लेकिन, कानून के लचर होने से किसानों को ऐसा करने से रोका नहीं जा रहा है.
मृदा विशेषज्ञ की राय
कृषि विज्ञान केंद्र के मृदा विशेषज्ञ डॉ. दिनेश सिंह का कहना है कि फसल अवशेषों को जलाये जाने से न केवल मिट्टी की उर्वरा शक्ति में कमी आती है. बल्कि, इससे निकलने वाला धुआं पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहा है. वे लोग गांवों में जाकर इससे हो रहे नुकसान के बारे में किसानों को जागरूक करते हैं. लेकिन, किसान जागरूकता की ओर बढ़ने के बावजूद खेतों में डंठल जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं.
थोड़ी समझदारी बदल सकती है स्थिति
जिला कृषि विज्ञान केंद्र की जांच में भी डंठल जलाने से खेतों को हो रहे नुकसान की भयावह स्थिति का पता चला है. विशेषज्ञों की मानें, तो जिन खेतों में डंठल जलाये जा रहे हैं, उन खेतों को फिर से फसल के लायक उर्वरा बनाने के लिए उनकी मिट्टी में उपचार ज्यादा करना पड़ रहा है. हालांकि, किसान थोड़ी समझदारी बरतें, तो यह स्थिति बदल सकती है. जहां खेतों की मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होगा. वहीं, महंगे रासायनिक उर्वरक के खर्च से भी बचेंगे.
कृषि वैज्ञानिक अमित कुमार का कहना है कि खेतों में डंठल जलाने से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है. फसल की कटाई किये जाने के बाद बचे अवशेषों को खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है. अवशेषों को खाद के रूप में प्रयोग से पर्यावरण को स्वस्थ रखने में मदद मिलेगी. खेतों में डंठल जलाने में विशेष बात यह है कि खर-पतवारों को आग में नष्ट किये जाने के बाद खेतों की उर्वरा शक्ति भी घटती है.