पूस के महीने में फागुन सी ठंड आलू-गेहूं की पैदावार पर पड़ेगा प्रतिकूल असरप्रतिनिधि, भभुआ (नगर) मुंशी प्रेमचंद्र की कहानी पूस की रात का मुख्य पात्र हलकू यदि आज होता तो शायद इस बार की ठंड उसके लिए राहत भरी होती. कहानी में जिस ठंड को आधार बनाया गया है उस सरीखे ठंड का इस बार नामो निशान नहीं है. दरअसल इस बार पड़ रही कम ठंड ने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं. दिसंबर के अंत व जनवरी के शुरुआती दिनों में जब हर साल कड़ाके की ठंड पड़ती है, तब इस बार शरीर को कपकपाने वाली ठंड का अहसास भी लोगों को नहीं हुआ. बुजुर्गों की माने तो अपने जीवन में उन्हें याद नहीं की ठंड कभी ऐसी गुजरी हो. आधी रात से सुबह तक मौसम को छोड़ दे, तो इस बार रजाई की भी जरूरत नहीं पड़ रही है. भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों के मुताबिक इस बार के पारा का स्वभाव हैरान करनेवाला हैं. आमतौर पर पहाड़ों मे बर्फीली हवाएं बिहार व उतर प्रदेश के पूर्वांचल तक पहुंचती है और अपने साथ कड़ाके की ठंड लाती है इस बार भी पहाड़ों में बर्फबारी हुई है, लेकिन हवा की गति इतनी नहीं है कि उसका असर यहां तक पहुंचे. यहीं वजह है की पहाड़ के करीब मैदानी इलाके में पारा छह व सात डिग्री सेल्सियस लुढ़का, लेकिन यहां पारा अपेक्षा अनुरूप नीचे नहीं गिरा. ठंड के गरम तेवर का असर कृषि पैदावार पर भी देखने को मिलेगा. कृषि विज्ञान केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार आलू व गेहूं को तापमान नहीं मिलने से फसल प्रभावित हो सकती है. खासतौर पर आलू को कम से कम 15 दिनों तक 14 से 15 डिग्री का औसत तापमान चाहिए.
पूस के महीने में फागुन सी ठंड
पूस के महीने में फागुन सी ठंड आलू-गेहूं की पैदावार पर पड़ेगा प्रतिकूल असरप्रतिनिधि, भभुआ (नगर) मुंशी प्रेमचंद्र की कहानी पूस की रात का मुख्य पात्र हलकू यदि आज होता तो शायद इस बार की ठंड उसके लिए राहत भरी होती. कहानी में जिस ठंड को आधार बनाया गया है उस सरीखे ठंड का इस […]
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