अस्पताल में दवा नहीं, चंदे से हो रहा विधवा का इलाज

19 अक्तूबर को झुलस गयी थी महिला भभुआ सदर : एक तरफ जहां सरकार गरीबों के लिए मुफ्त इलाज और शिक्षा की व्यवस्था जन-जन तक पहुंचाने के लिए लगातार प्रयास करने में जुटी हुई है, वहीं दूसरी तरफ सरकार के अधिकारी गरीबों तक पहुंचाने वाली इन योजनाओं के प्रति अब तक संवेदनशील नहीं हो सके […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 27, 2016 8:34 AM
19 अक्तूबर को झुलस गयी थी महिला
भभुआ सदर : एक तरफ जहां सरकार गरीबों के लिए मुफ्त इलाज और शिक्षा की व्यवस्था जन-जन तक पहुंचाने के लिए लगातार प्रयास करने में जुटी हुई है, वहीं दूसरी तरफ सरकार के अधिकारी गरीबों तक पहुंचाने वाली इन योजनाओं के प्रति अब तक संवेदनशील नहीं हो सके हैं.
इसका खामियाजा गरीब लोगों को भुगतना पड़ता है. सरकार के आंख-कान मानें जानेवाले इन्हीं अधिकारियों की असंवेदनशीलता का शिकार हो कर सदर अस्पताल में जली हालत में विधवा मीना कुंवर जीवन और मौत के बीच झूल रही है. भगवानपुर प्रखंड के ओरगांव गांव की रहनेवाली विधवा को अस्पताल से दवा नहीं मिल रही है. इसके चलते डॉक्टर उसके परिजनों को बाहर से दवा और जीवन रक्षक सूई खरीदने को कहा है लेकिन, हालात की मारी और घोर गरीबी में जीवनयापन करनेवाली विधवा के परिजनों के पास इलाज के पैसे नहीं जुट रहे इसके चलते परिजन इसका इलाज मजबूरन अब चंदे से करा रहे हैं.
घर की सफाई के दौरान हुआ था हादसा : 19 अक्तूबर को विधवा महिला घर की साफ-सफाई करने के दौरान दीये की चपेट में आकर गंभीर रूप से जल गयी थी. महिला को परिजनों द्वारा ला कर सदर अस्पताल में इलाज के लिए भरती कराया गया. अस्पताल प्रबंधन द्वारा इलाज के लिए भरती तो कर लिया लेकिन, दवा की व्यवस्था गरीब मरीजों के लिए नहीं होने के चलते उन्हें बाहर से दवा खरीदने को डॉक्टर द्वारा लिख दिया गया.
बेटियों ने थामी मां के इलाज की बागडोर
जली महिला मीना कुंवर को कुछ दिनों तक अस्पताल में भरती हालत में परिजनों द्वारा जैसे-तैसे चंदे इकट्ठे कर उसका इलाज कराया गया. गौरतलब है कि विधवा मीना कुंवर के चार बच्चे हैं, जिसमें सबसे बड़ा बेटा अपने परिवार के साथ अलग रहता है.
विधवा की दो बेटियां शादीशुदा हैु, जबकि, महिला अपने तीन छोटे-छोटे बच्चों का स्वयं ही लालन-पालन कर रही थी. इस बीच महिला की दोनों बेटियां 24 अक्तूबर को मां की हालत जान कर ससुराल से लौटी तो मां की हालत देख उन्होंने इलाज का स्वयं बीड़ा उठाया लेकिन, एक सप्ताह तक इलाज कराने और बाजार से महंगी दवा और सूई खरीदने के बाद उनके भी हौंसले पस्त हो चुके हैं.
दिल्ली से लौटी विधवा की बेटी सुमन कहती है कि अस्पताल की ओर से मरीजों के लिए मात्र स्लाइन की बोतल और बेड है. कई बार अस्पताल के अधिकारियों को मां के इलाज में मदद करने व दवा की व्यवस्था करने को कहा गया लेकिन, अधिकारी और कर्मचारी सुनने को तैयार नहीं. वहीं महिला के दामाद संजय ठाकुर का कहना था कि अब हमलोग के पास भी दवा खरीदने के पैसे नहीं बचे हैं मजबूरन फूफा राजेंद्र ठाकुर को गांव चंदा कर पैसा जुटाने को भेजा गया है.
जिला कार्यक्रम प्रबंधक ने दिया इलाज में मदद का भरोसा
इस बीच जब बुधवार को जली महिला के इलाज में दवाओं की खरीद में आ रही बाधा से जिला कार्यक्रम प्रबंधक डाॅ विवेक कुमार सिंह को अवगत कराया गया तो उन्होंने पहले तो ऐसी किसी भी जानकारी से इनकार किया लेकिन उन्होंने इसकी जानकारी होते ही जली महिला के परिजनों को इलाज में सहयोग करने का भरोसा देते हुए दवाओं की व्यवस्था करने को कहा. उनका कहना था कि जब तक उक्त महिला सदर अस्पताल में इलाजरत रहेगी तब तक उन्हें विभाग की ओर से सभी दवाइयां मुफ्त दी जायेगी.

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