बिहार के इस मंदिर में दी जाती है रक्तविहीन बलि, तीन बार बदलता है शिवलिंग का रंग, विदेशों से देखने आते हैं भक्त
बिहार में पवरा पहाड़ी की चोटी पर 630 फीट ऊपर विराजमान मां मुंडेश्वरी भवानी के मंदिर में बकरों की खून रहित बलि दी जाती है. बलि देने की यह परंपरा अनोखी है. देश के कोने-कोने सहित विदेशों से लोग इस खून रहित बलि को देखने के लिए पहुंचते हैं. साथ ही यहां पहुंचने वाले मां की कृपा देख मन्नत रखते हैं.
कैमूर जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर भगवानपुर प्रखंड के पवरा पहाड़ी की चोटी पर 630 फीट ऊंचे स्थित माता मुंडेश्वरी मंदिर का इतिहास दो हजार साल पुराना है. शारदीय नवरात्र के दौरान माता मुंडेश्वरी धाम में भक्तों की भारी भीड़ देखी जा रही है. मुंडेश्वरी धाम के दर्शन के लिए देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व से श्रद्धालु पहुंचते है. ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर 635 ईसा पूर्व में पाया गया था, हालांकि मंदिर का निर्माण कब हुआ इसकी जानकारी अभी तक उपलब्ध नहीं है. यह मंदिर अष्टकोणीय है. मंदिर के गर्भगृह के पूर्व में मां मुंडेश्वरी की बारह रूपों की मूर्ति मौजूद है. इसी मंदिर के बीच में चार मुख वाले भगवान शिव की भी एक मूर्ति है, जिसके बारे में लोगों की मान्यता है कि समय के अनुसार दिन में दो से तीन बार अपना रंग बदलता है.
दी जाती है बकरे की रक्तहीन बलि
माता मुंडेश्वरी धाम में बकरे की बलि अहिंसक तरीके से दी जाती है यानी रक्तहीन बलि देने की परंपरा है. बकरे को मन्नत मानने के बाद भक्त बकरे को मंदिर में ले जाते हैं और मंत्र पढ़ने के बाद चावल के गोले और फूल फेंककर बकरे को देवी मां के चरणों में रख दिया जाता है. बकरा बेहोश होकर गिर जाता है और फिर मां की चरणों से अक्षत फूल लेकर और मंत्र पढ़कर बकरे पर मारने से वो जीवित हो जाता है. ऐसा यज्ञानुष्ठान विश्व में कहीं नहीं होता. मां का प्रसाद तंदुल के माध्यम से चढ़ाया जाता है जो शुद्ध घी में चावल से बनाया जाता है.
विदेश से भी आते हैं श्रद्धालु
यहां मां मुंडेश्वरी के दर्शन के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग आते हैं. नवरात्रि के दौरान यहां काफी भीड़ देखने को मिलती है. इसकी सुरक्षा के लिए मंदिर परिसर के चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. पुलिस प्रशासन के साथ-साथ मंदिर के स्वयंसेवक, जिला पुलिस बल के जवान और स्काउट गाइड भी लगे हुए हैं. मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां और सड़क बनी हुई है. कहा जाता है कि 525 सीढ़ियां चढ़ने के बाद मंदिर में प्रवेश किया जा सकता है. सड़क मार्ग से यात्रा करने के बाद मंदिर में प्रवेश के लिए 51 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं.
क्या कहते हैं मंदिर न्यास समिति के कार्यकर्ता
मंदिर न्यास समिति के कार्यकर्ता गोपाल कृष्ण बताते हैं कि यह मंदिर दो हजार वर्ष पुराना है. यहां नवरात्रि के दौरान मंदिर में लाखों भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं. 15 प्वाइंट पर सुरक्षा व्यवस्था की गयी है. सभी जगहों पर मजिस्ट्रेट और पुलिस बल तैनात कर दिए गए हैं, आप दो रास्तों से माता के दर्शन कर सकते हैं, एक सड़क मार्ग और दूसरा सीढ़ियों से.
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माता मुंडेश्वरी मंदिर के पुजारी मुन्ना द्विवेदी ने बताया कि मंदिर अष्टकोणीय है जो पवरा पहाड़ी पर स्थित है, सीढ़ियों के माध्यम से 501 सीढ़ियां चढ़ने के बाद माता मुंडेश्वरी का मंदिर पहुंचा जा सकता है, श्रद्धालु सड़क मार्ग से भी दर्शन करने आते हैं, इसमें मंदिर में शिवलिंग भी है. बिहार के कैमूर जिले में स्थित माता मुंडेश्वरी मंदिर की तुलना किसी भी अन्य मंदिर से नहीं जा सकती है. यह वह मंदिर है जहां देवी मां को बकरे की रक्तहीन बलि दी जाती है और वह भी फूल और चावल से छूने मात्र से बकरा बेहोश हो जाता है जिसे देवी मां की बलि माना जाता है.
क्या कहते है श्रद्धालु
मंदिर पहुंचे एक मानक के एक भक्त बिनती बताते है कि वह पहली बार शारदीय नवरात्र में माता मुंडेश्वरी के दर्शन करने बनारस से पूरे परिवार के साथ आए है ,माता के दर्शन की चाहत कई वर्षों से थी जो आज पूरी हो गई.
कैमूर जिले के श्रद्धालु विवेक और अंजली श्रीवास्तव ने बताया कि माता का कृपा सुनकर हर साल दर्शन करने पहुंचते है, यहां बिना रक्त के बकरे की बलि दी जाती है. आज अपनी आंखों से देख कर आ रही हूं कि किस तरह बकरा अच्छत और फूल से मूर्छित हो जाता है.
मंदिर में सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था
स्काउट गाईड के अधिकारी अरबिंद कुमार सिंह बताते है 40 कि संख्या में स्काउट गाइड के वालंटियर लगाए गए है जो दिव्यांग असहाय श्रध्यालुओ को मंदिर ले जाकर दर्शन करा रहे है. वही भगवानपुर थाने के एस आई आनन्द कुमार ने बताया की 16 जगहों पर सीसीटीवी कैमरा लगाया गया है साथ असमाजिक तत्वों पर भी हम नजर रख रहे है अभी तक सब समान्य है, सुरक्षा पुख्ता है.
रिपोर्ट- भभूआ से रंजीत पटेल