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हाथ में जूता-चप्पल, सिर पर झोला लेकर स्कूल जाते हैं बच्चे

जिले में विद्यालय के विकास पर करोड़ों रुपये खर्च किये गये हैं, ताकि छात्रों को किसी प्रकार की कोई परेशानी ना हो. लेकिन, जिला मुख्यालय से ढाई तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित सैथा विद्यालय पर जाने में छात्रों को नको चना चबाने पड़ता हैं

भभुआ नगर. जिले में विद्यालय के विकास पर करोड़ों रुपये खर्च किये गये हैं, ताकि छात्रों को किसी प्रकार की कोई परेशानी ना हो. लेकिन, जिला मुख्यालय से ढाई तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित सैथा विद्यालय पर जाने में छात्रों को नको चना चबाने पड़ता हैं. छात्रों को प्रतिदिन हाथ में जूता-चप्पल, सिर पर झोला व घुटने तक पैट मोड़कर विद्यालय जाना पड़ता है. खास बात यह है कि शिक्षक व छात्र विद्यालय तो किसी तरह चले जाते हैं, लेकिन महिला शिक्षिका व छात्राओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. क्योंकि, शिक्षिका व छात्राओं को कीचड़ से घुटने भर पानी से होकर जाना पड़ता है. इसके चलते प्रतिदिन शिक्षिका व छात्राओं का कपड़ा गीला हो जाता है, जिसके कारण पूरे दिन गिला कपड़ा में ही विद्यालय में पठन-पाठन करना पड़ता है. गौरतलब है कि विद्यालय निर्माण हुए बरसों बीत गये, लेकिन विद्यालय तक जाने के लिए अब तक रास्ता का निर्माण नहीं हुआ. रास्ता का निर्माण नहीं होने के कारण गर्मी व ठंड के मौसम में तो छात्र- छात्राएं, शिक्षक पगडंडी के सहारे विद्यालय तक पहुंच जाते हैं. लेकिन, बरसात के दिनों में विद्यालय जाने वाले रास्ते वाले खेतों में धान की रोपनी हो जाती है. धान रोपनी होने के बाद विद्यालय जाने वाले पगडंडी रास्ता भी टूट कर इधर से उधर हो जाता है व बरसात के दिनों में पानी ज्यादा होने के कारण प्रतिदिन छात्रों को विद्यालय जाने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है. हद तो तब हो जाती है जब पूरी तरह बरसात हुआ हो व पानी का लेवल बढ़ गया हो, तो उसे समय छोटे-छोटे बच्चे व हाइस्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं व महिला शिक्षिका को विद्यालय जाने में काफी परेशानी होती है. क्योंकि, छात्र या शिक्षक अपने पैट को मोड़ लेते हैं या खोलकर कंधे पर रखकर विद्यालय तक चले जाते हैं. लेकिन, छात्राओं व शिक्षिकाओं को कीचड़ भरे पानी से जाने में कपड़ा भीग जाते हैं. कपड़े भीग जाने के कारण पूरे दिन शिक्षिका व छात्राओं को भीगा कपड़े में पठन-पाठन करना पड़ता है. घर से तो छात्र-छात्राएं विद्यालय जाने के लिए हंसते हुए निकलते हैं, लेकिन जब कीचड़ भरे पानी के पास पहुंचते हैं तो प्रतिदिन कसम कस कर पार करना पड़ता है. हालांकि, छात्र व शिक्षक तो किसी तरह विद्यालय चल जाते हैं, लेकिन छात्राओं व शिक्षिकाओं के विद्यालय जाने में हिम्मत कांप जाता है. लेकिन दूसरा कोई उपाय नहीं रहने के बाद प्रतिदिन 10 से 15 मिनट इंतजार करने के बाद थक हार कर शिक्षिका व छात्राएं विद्यालय जाती हैं. यह केवल एक दिन का मामला नहीं है, पूरे बरसात महीने में शिक्षिकाओं व छात्राओं को यही पीड़ा सहना पड़ता है. लेकिन, इसका निबटारा करने वाला कोई नहीं है, न तो कभी अधिकारियों का ध्यान इस पर गया, न ही पंचायत से लेकर विधायक व सांसद का, यह सिलसिला बरसों से चलते आ रहा है. 1000 छात्र-छात्राएं हैं विद्यालय में नामांकित विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या लगभग 1000 है. विद्यालय कैंपस में प्रथम क्लास से लेकर हाइस्कूल तक की पढ़ाई होती है. विद्यालय में पढ़ने के लिए प्रतिदिन नन्हे मुन्ने बच्चे भी आ जाते हैं, जो बरसात के दिनों में पानी भरे खेतों से होकर गुजरते हैं. अगर खेत में भर पानी में गिर जाये तो दुर्घटना भी हो सकती है, लेकिन इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. छात्रों के साथ खेतवाले करते हैं दुर्व्यवहार भी धान की रोपनी करने के बाद छात्र जब किसानों द्वारा बनाये गये खेतों के मेढ़ से जाते हैं, तो किसानों द्वारा दुर्व्यवहार छात्र-छात्राओं के साथ किया जाता है. किसानों द्वारा अपने खेत वाले रास्ते से आने जाने से छात्रों को रोका जाता है. छात्र किसी तरह लुक छिपकर या टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता घूम कर विद्यालय पहुंचते हैं. इस तरह की व्यवहार से छात्र-छात्राएं प्रतिदिन मर्माहत होते हैं. क्योंकि, विद्यालय में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं सैथा गांव के रहने वाले हैं, लेकिन विद्यालय के चारों तरफ जो खेत है वह दूसरे गांव के किसानों का है. = प्रधानाध्यापक ने विभाग को कई बार लिखा पत्र विद्यालय के प्रधानाध्यापक विद्यालय तक सड़क निर्माण के लिए जिला पदाधिकारी, जिला शिक्षा पदाधिकारी से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि तक भी गुहार लगा चुके हैं. लेकिन उनकी समस्या सुनने वाला अभी तक कोई आगे नहीं आया. = जमीन मालिकों के साथ भी प्रधानाध्यापक ने की बैठक इस संबंध में प्रधानाध्यापक राम प्रवेश कुमार ने कहा कि विद्यालय तक आने के लिए कोई सरकारी भूमि नहीं है. निजी लोगों की जमीन पड़ती है. निजी लोगों से जमीन उपलब्धता के लिए कई बार बैठक कर चुके हैं, लेकिन अब तक कोई निदान नहीं निकल सका. इतना ही नहीं शिक्षक, अभिभावक संगोष्ठी के दौरान भी यह मामला को उठाते हैं, लेकिन लोग जमीन देने के लिए रुचि नहीं ले रहे हैं.

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