भभुआ : पिछले तीन महीने से महामारी बना कोरोना वायरस लोगों को संक्रमित करने के साथ-साथ अब मानवीय संवेदना को भी अपनी चपेट में ले रहा है. कोरोना वायरस के खौफ के चलते मानवीय संवेदना दम तोड़ने लगी है. महज तीन महीने पहले तक कभी गांव-शहर के आसपास में मौत होने पर मानवीय सहायता के साथ दर्जनों लोग शव के अंतिम संस्कार में भाग लेते थे. अर्थी को कंधा देने की होड़ लगी रहती थी. लेकिन, अब आसपास में होने वाली मौत के बाद शव के दाह संस्कार में भाग लेने से लोग परहेज करने लगे हैं या यूं कहें कि लोग इससे कतरा रहे है. कहीं-कहीं तो सामान्य मौत को भी कोरोना का संदिग्ध मान कर लोग दूरी बनाने लगे हैं. इसके चलते अब कोरोना ने अपनों को पराया कर दिया, तो समाज में भी दूरियां बढ़ने लगी है.
दरअसल, एक ओर जहां आइसीएमआर की गाइडलाइन के मुताबिक कोरोना मरीजों के शवों को जलाया और दफनाया जा रहा है. वहीं, दूसरी ओर इलाज के दौरान मौत के मामले में भी सामाजिक भेदभाव से अपने ही अपनों के शवों को कंधा देने से परहेज करने लगे हैं. एक मौत ही नहीं, कोरोना से संक्रमित मरीज भी समाज में भेदभाव का शिकार हो रहे हैं और कोरोना संक्रमित मरीज रहे व्यक्ति के अगल बगल के लोग ही उनसे मिलने जुलने से कतरा रहे हैं.घर कर रही छुआछूत की भावनाए.
कोरोना वायरस से हो रही मौत से ही दूरी नहीं बना रहे लोग, बल्कि कोरोना संक्रमित मरीज जो ठीक हो चुके हैं, उनसे भी दूरी बनाया जा रहा है. अब छुआछूत की भावना के चलते पूरी तरह से ठीक हो चुके मरीज भी समाज के इस दहशत से अकेलापन महसूस कर रहे हैं. शहर के वार्ड नौ के रहनेवाले और कोरोना को मात दे चुके एक युवक ने बताया कि जब अगल बगल के लोगों को उसके संक्रमित होने की जानकारी मिली, तो लोग उनके परिवार से दूरी बनाने लगे. कई लोग तो दहशत के मारे अपने बीबी बच्चों को लेकर ही गांव पर चले गये. वार्ड तीन के ठीक हो चुके एक मरीज ने बताया कि वह शुरुआती दौर में ही कोरोना की चपेट में आया था. भभुआ में ही इलाज के बाद वह ठीक हो गया. लेकिन, दो महीने से अधिक हो गये अब भी लोग उसे देख शक की निगाह से देखते हैं और बहुत जरूरी होने पर ही लोग उनसे बातचीत करते हैं और ऐसे बरताव करते हैं, जैसे वह कोरोना साथ लेकर चल रहा हो. अब ऐसी स्थिति में उसके अंदर हीन भावना घर करने लगी है और वह भीड़भाड़ या गली मुहल्ले में किसी से मिलने जुलने से परहेज करने लगा है.
posted by ashish jha