सीएस ने तीन जीएनएम को किया निलंबित, निदेशक प्रमुख ने आदेश किया रद्द

मोहनिया अनुमंडलीय अस्पताल का ऐसा लग रहा है कि भगवान ही मालिक है. यहां की व्यवस्था सुधरने का नाम नहीं ले रही है. बीते 19 मई को अनुमंडलीय अस्पताल में प्रसव के लिए आयी मोहनिया के आर्रा गांव निवासी धर्मेंद्र कुमार सिंह की पत्नी संध्या कुमारी की मौत हो गयी थी.

By Prabhat Khabar News Desk | July 6, 2024 8:48 PM

मोहनिया शहर. मोहनिया अनुमंडलीय अस्पताल का ऐसा लग रहा है कि भगवान ही मालिक है. यहां की व्यवस्था सुधरने का नाम नहीं ले रही है. बीते 19 मई को अनुमंडलीय अस्पताल में प्रसव के लिए आयी मोहनिया के आर्रा गांव निवासी धर्मेंद्र कुमार सिंह की पत्नी संध्या कुमारी की मौत हो गयी थी. लगातार अनुमंडलीय अस्पताल में प्रसव के लिए आयी महिलाओं की मौत के मामले को डीएम ने गंभीरता से लेते हुए सिविल सर्जन को जांच कर कार्रवाई का आदेश दिया था. जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि प्रसव के लिए आयी महिला क तबीयत लगातार बिगड़ रही थी. लेकिनए डयूटी में तैनात जीएनएम विजेता कर्मोकार, स्वीटी कुमारी व बिंदु कुमारी द्वारा ऑन कॉल डयूटी पर तैनात डॉक्टर को किसी तरह की सूचना नहीं दी गयी. उन्हें फोन तक नहीं किया गया. उनकी यह लापरवाही जांच में सामने आयी. इस रिपोर्ट पर सिविल सर्जन ने उक्त तीनों जीएनएम को निलंबित कर दिया था. लेकिन, अब उक्त मामले में नया मोड़ आ गया है. स्वास्थ्य विभाग के निदेशक प्रमुख डॉ सुनील कुमार झा ने उक्त तीनों ग्रेड ए नर्सों का निलंबन रद्द कर दिया है. उन्होंने अपने पत्र में कहा है कि विभागीय नियमों के मुताबिक सिविल सर्जन को उक्त तीनों ग्रेड ए नर्सों को निलंबित करने का अधिकार ही नहीं हैं. ऐसे में सिविल सर्जन द्वारा किये गये निलंबन के आदेश को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाता है. साथ ही उक्त तीनों के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई के लिए आरोप पत्र व प्रस्ताव भेजने का निर्देश सिविल सर्जन को दिया है. – निदेशक प्रमुख को निलंबित नर्सों ने दिया था आवेदन दरअसल, अनुमंडलीय अस्पताल में 19 मई 2024 को प्रसव के दौरान प्रसूता की मौत मामले में निलंबित की गयी तीनों जीएनएम का निलंबन रद्द करते हुए स्वास्थ्य विभाग के निदेशक प्रमुख डॉ सुनील कुमार झा द्वारा सीएस को पत्र जारी किया है. इसमें बताया है कि विजेता कर्मोंकार, परिचारिका श्रेणी ””””ए”””” अनुमंडलीय अस्पताल मोहनिया द्वारा समर्पित अभ्यावेदन में सिविल सर्जन के कार्यालय आदेश ज्ञापांक द्वारा विजेता कर्मोकार, स्वीटी कुमारी, बिंदू कुमारी, सभी परिचारिका श्रेणी ””””ए””””, अनुमंडलीय अस्पताल मोहनिया के निलंबनादेश को निरस्त करते हुए निष्पक्ष जांच कराने की मांग की गयी है. परिचारिका श्रेणी ””””ए”””” के नियुक्ति प्राधिकार संयुक्त निदेशक हैं. बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण व अपील) नियमावली, 2005 के नियम -9 में निहित प्रावधान के आलोक में नियुक्ति प्राधिकार अथवा नियुक्ति प्राधिकार जिसके अधिनस्थ हो, उसी प्राधिकार के स्तर से ही किसी सरकारी सेवक को निलंबित किया जा सकता है. स्पष्ट है कि सिविल सर्जन परिचारिका श्रेणी ””””ए”””” के निलंबन हेतु सक्षम प्राधिकार नहीं है. अतः सम्यक विचारोपरांत सिविल सर्जन के आदेश ज्ञापांक 1215, 20 जून 2024 द्वारा किये गये उक्त तीनों परिचारिकाओं के निलंबन को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाता है. साथ ही उक्त कर्मियों द्वारा किये गये कृत्य के लिए उनके विरुद्ध नियमानुसार कार्रवाई हेतु आरोप पत्र व प्रस्ताव उपलब्ध कराने का निदेश दिया जाता है. जबकि, इसकी जानकारी सीएस, अनुमंडल अस्पताल के उपाधीक्षक सहित तीनों जीएनएम को पत्र जारी कर दिया गया है. # क्या था मामला 19 मई 2024 को मोहनिया के आर्रा गांव निवासी धर्मेंद्र कुमार सिंह की पत्नी संध्या कुमारी प्रसव के लिए अस्पताल आयी थी. प्रसूता ने एक बच्चे को जन्म दी. इसके बाद जच्चा और बच्चा दोनों ठीक थे. लेकिन, कुछ देर बाद महिला का रक्त स्राव होने लगा, जिससे धीरे धीरे तबीयत बिगड़ने लगी. अंतिम समय में आनन फानन में अस्पताल कर्मी द्वारा रेफर किया गया. लेकिन, कुछ देर बाद ही निजी अस्पताल ले जाते ही महिला ने दम तोड़ दिया था. इसके बाद महिला के शव को लेकर परिजन अस्पताल पहुंचे और अस्पताल के कर्मी पर लापरवाही लगते हुए हंगामा किया था. साथ ही अस्पताल कर्मी की लापरवाही मानते हुए लिखित आवेदन उपाधीक्षक को भी दिया गया था. – आमलोगों के अधिकारों को आखिर कौन देखेगा? मोहनिया अनुमंडलीय अस्पताल में प्रसव के लिए आयी महिला की मौत का यह कोई पहला मामला नहीं है. इसके पहले भी कई बार वहां के स्वास्थ्य कर्मियों की लापरवाही से जच्चा-बच्चा की मौत हो चुकी है. पिछले वर्ष भी जच्चे-बच्चे की मौत मामले को मुख्य सचिव अमीर सुबहानी ने गंभीरता से लिया था और उक्त मामले में वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से डीएम को कार्रवाई करने का निर्देश दिया था. जिले के अधिकारियों ने भी यह पाया था कि मोहनिया अस्पताल में चिकित्सक व स्वास्थ्य कर्मियों की लापरवाही कई बार सामने आयी है. इसमें कार्रवाई के लिए भी विभाग को लिखा गया है. लेकिन, बड़ी बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग का हाल यह है कि यहां पर सिर्फ स्वास्थ्य कर्मी व अधिकारियों के अधिकार की बातें हमेशा की जाती है. लेकिन, मरीजों के अधिकार की बात शायद ही कभी होती है. मोहनिया अनुमंडलीय अस्पताल की स्थिति जिले में किसी से छुपी हुई नहीं है. जांच रिपोर्ट में लापरवाही उजागर होने के बाद जिस तरह से जीएनएम के निलंबन को लेकर सिविल सर्जन के अधिकार याद दिलायी गयी है. वैसे शायद मरीजों के भी अधिकार की बात स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों द्वारा की जाती, तो शायद मोहनिया अनुमंडलीय अस्पताल की स्थिति सुधर जाती. लेकिन, मोहनिया अनुमंडलीय अस्पताल की स्थिति ऐसी है कि वहां से छोटे-छोटे से कर्मी का स्थानांतरण हो, निलंबन हो या फिर कोई कार्रवाई सभी मामले में वरीय से वरीय अधिकारियों का ऐसा हस्तक्षेप होता है. आम तौर पर यह देखा जाता है कि जुगाड़ तंत्र वाले कर्मी व अधिकारी हमेशा भारी पड़ते हैं. अगर यहीं स्थिति रही तो मोहनिया अनुमंडलीय अस्पताल की स्थिति शायद ही सुधरे. मोहनिया अनुमंडलीय अस्पताल की स्थिति इस कदर बिगड़ गयी है कि वहां पर कोई प्रभारी नहीं बनना चाहता है. पिछले दो से तीन वर्षों में आधा दर्जन से अधिक प्रभारी बदले जा चुके हैं. लेकिन, इन सब के बावजूद स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रहा है. वहां के कर्मियों में भी कार्रवाई का भय समाप्त हो चुका है. शायद उन्हें यह विश्वास हो चुका है कि वे अपने जुगाड़ तंत्र पर हर मामले को मैनेज कर सकते हैं.

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