दुर्गावती जलाशय परियोजना से नहीं बुझा रही खेतों की प्यास

र्गावती जलाशय परियोजना की 1976 में बाबू जगजीवन राम ने नींव रखी थी, तो किसानों को लगा था कि पहाड़ी तलहटी के बंजर मिट्टी में भी फसलों की खुशबू गहगहायेगी. लेकिन, पूरे 38 साल इस परियोजना को धरातल पर उतरने का लंबा इंतजार किसानों को करना पड़ा.

By Prabhat Khabar News Desk | June 22, 2024 9:42 PM
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भभुआ. दुर्गावती जलाशय परियोजना की 1976 में बाबू जगजीवन राम ने नींव रखी थी, तो किसानों को लगा था कि पहाड़ी तलहटी के बंजर मिट्टी में भी फसलों की खुशबू गहगहायेगी. लेकिन, पूरे 38 साल इस परियोजना को धरातल पर उतरने का लंबा इंतजार किसानों को करना पड़ा. बावजूद इसके परियोजना की बायें तट नहर केनाल से किसानों के खेतों का प्यास अब तक नहीं बुझ सकी है. तीन दशक पहले पहाड़ी से सटे रामपुर से लेकर भगवानपुर प्रखंड के सुवरन नदी में पानी गिराने वाले खोदी गयी 22 किलोमीटर लंबी नहर हर वर्ष जगह-जगह से टूट जाती है. यही नहीं इस नहर के टेल क्षेत्र के लगभग 12 किलोमीटर बायें तट नहर का स्वरूप ही बदल कर नहर से नाला का हो गया है. मरम्मत के अभाव में नहर के तटबंध तमाम जगहों पर टूट कर नहर के पेटी में मिल गये हैं. तटबंधों की यह मिट्टी बरसात में गिरकर नहर के पेटी को भरने का काम ही कर रही है, यानी पूरे 22 किलोमीटर पटवन के रेंज में मात्र 12-13 किलोमीटर तक सोनांव-पुनांव गांव के किसानों को ही ठीक से नहर का पानी मिल पाता है. शेष 9-10 किलोमीटर के रेंज के किसानों के पटवन की जरूरत आज भी जर्जर नहर के कारण पूरा नहीं हो पा रही है. खडीहा के किसान कचहरी यादव, रमावतपुर के किसान सत्यनारायण साह, राधाखांड के किसान अंशु सिंह, बखारबांध के किसान बच्चन सिंह, बेल्डी के किसान झकरी पासवान, दवनपुर के किसान लाल बिहारी चौधरी सहित तमाम किसानों का कहना है कि जलाशय का नहर पूरी तरह बर्बाद हो गया है. हर वर्ष नहर का तट कभी पुनांव में तो कभी नवगढ़ में, तो कभी हुडरी में टूट जाता है. गौरक्षणी से लेकर राधाखांड तक तो नहर, नहर की तरह दिखायी ही नहीं देता है. तटबंधों की मिट्टी बरसात में गिरकर नहर को ही भरने का काम करती है. मरम्मत के नाम पर विभाग द्वारा फिर मिट्टी निकलवाई जाती है और फिर यह मिट्टी नहर में गिर जाती है. कमजोर होने के कारण तटबंध ढह जाते हैं. इससे किसानों को कोई फायदा नहीं मिलता. जब तक नहर का पक्कीकरण नहीं होता, तब तक पटवन की उम्मीद नहीं की जा सकती. किसानों के अनुसार, इस नहर के भरोसे पानी न बरसे तो धान की खेती भी पार नहीं लगेगी. गेहूं के खेती के पानी के लिए तो बात करना ही बेकार है. क्या कहते हैँ कार्यपालक अभियंता इस संबंध में पिछले दो दिनों से दुर्गावती जलाशय परियोजना के कार्यपालक अभियंता के मोबाइल नंबर 7463889420 पर बात करने का प्रयास किया गया, लेकिन घंटी होने के बावजूद फोन नहीं रिसीव किया जा रहा है. हालांकि, इस नंबर पर 15 जून को नहर में पानी नहीं छोड़े जाने को लेकर बात की गयी, तो तबादला के बाद आये नये कार्यपालक अभियंता द्वारा यह बताया गया था कि नहर की मरम्मत चल रही है. हालांकि, पूर्व में तत्कालीन कार्यपालक अभियंता सुशील कुमार ने बताया था नहर के लाइनिंग का काम कराया जा रहा है. लेकिन, किसानों को यह कहीं दिखायी नहीं दे रहा है. इन्सेट 1 जलाशय के कई माइनरों का काम नहीं हुआ पूरा भभुआ. दुर्गावती जलाशय परियोजना के विभिन्न माइनरों का काम आज तक पूरा नहीं हो सका है. किसानों की मानें तो नहर केनाल से निकाली जाने वाली अमरपुर, नेतपुर, नवगढ्, राधाखांड, जैतपुर, ओरगांव, सेमरा, भगवानपुर, मकरी आदि दर्जन भर वितरणियों का काम लटका हुआ है. इसी तरह सवार, कमदा, हुडरी आदि आधा दर्जन वितरणियों के काम भी या तो लटके हुए हैं या किसी तरह आधा अधूरा करके उसे पूरा बोला जा रहा है. इधर, जलाशय के पूर्व कार्यपालक अभियंताओं के अनुसार, कुछ माइनरों के काम भू समस्या या विवाद के कारण स्थगित कर दिया गया है. कुछ माइनरों का पक्कीकरण का काम कराया जा रहा है. इनसेट 2 नहर पुलिया के अभाव में भी खेतों तक नहीं जा पाते सामान भभुआ. दुर्गावती जलाशय परियोजना के नहर केनाल के पार करने के लिए कई जगह पुलिया नहीं दिये जाने से किसानों को कृषि सामग्री खेतों तक ले जाने में भी दिक्कत होती है. हालांकि, आने जाने के लिए किसान नहर के तटबंधों पर बिजली के खंभे आदि लगाकर काम चला ले जाते हैं. लेकिन अगर खेत में बीहन डालना हो या जुताई के लिए ट्रैक्टर ले जाना हो, तो किसानों को दूर स्थित किसी पुलिया के सहारे नहर पार करने के लिए चक्कर लगाना पड़ता है. रमावतपुर के गवलछनी टोला के किसान महेंद्र साह, रामलाल बिंद आदि का कहना है कि गांव के कई किसानों की खेती नहर के उस पार है. लेकिन गांव के सामने नहर पर कोई पुलिया नहीं दी गयी है. अगर कृषि सामग्री उधर ले जाना है तो किसानों को खडिहां गांव या फिर बडवान घाट के सामने दी गयी पुलिया की सहायता लेनी पड़ती है. इसके चक्कर में खर्च और समय दोनों बढ़ जाता है.

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